महॅंगाई इस सीमा तक बढ़ चुकी है कि परिवार के परिवार भुखमरी से तंग आकर आत्महत्या कर रहे हैं। दैनिक उपयोग की वस्तुएं गरीब व्यक्ति की पहुँच से बाहर हो चुकी हैं। सड़कों पर कारें बहुत दौड़ रही हैं किन्तु अधिकतर बैंक से कर्जा लेकर खरीदी गई हैं। और जब बैंक का कर्जा देना संभव नहीं होता तो आत्मदाह ही करना पड़ता है। गेहूँ, चावल, चीनी, कपड़ा, नमक, सब्जी, फल आदि सभी वस्तुएँ गरीब आदमी के लिए तो सपना हैं ही, मध्यमवर्ग के लिए भी दुश्र्वार हो गई हैं। रोज अखबारों में पढ़ने को मिलता है कि भुखमरी से तंग आकर किसी व्यक्ति ने परिवार सहित आत्महत्या कर ली। किसान, जो सारे समाज के लिए अन्न उगाता है वह भी भूख से पीड़ित है। कहीं-कहीं पर तो न खाने को है और ना पहनने को। आदमी और जानवर तड़प-तड़प कर जान दे रहे हैं। इस सबके लिए आदमी खुद जिम्मेदार है। लेकिन यदि प्रमुख रूप से देखा जाए तो यह जिम्मेदारी उन तीन विधाओं पर है जो देश की संस्कृति को नष्ट कर रही हैं, देश के नौजवानों की कार्यक्षमता को घटा रही हैं तथा व्यक्ति को आलसी और कामचोर बना रही हैं। देश की आर्थिक असमानता भी इसके लिए जिम्मेदार है।
िाकेट के खेल पर हज़ारों करोड़ रुपये खर्च किये जाते हैं। बजट में जो धन आवंटित होता हैं उसमें सभी का हिस्सा होता है। िाकेट का खेल जब शुरू होता है तो कार्यालयों में काम बन्द हो जाता है। अधिकारी से लेकर कर्मचारी तक िाकेट का मैच देखने में व्यस्त हो जाते हैं। फलतः दफ्तर का कार्य रुक जाता है। विशेष रूप से कार्य कराने के लिए कुछ विशेष करना पड़ता है। जिससे भ्रष्टाचार बढ़ता है और तदनुसार भ्रष्टाचारी की ाय शक्ति भी बढ़ जाती है जो महॅंगाई को जन्म देती है। एक-एक िाकेटर को वर्षभर में करोड़ों रुपये मिलते हैं। वह पैसा पानी की तरह बहाते हैं जिससे महॅंगाई का जन्म होता है क्योंकि करोड़पति किसी भी वस्तु को खरीदने के लिए मोलभाव नहीं करता और खरीदता भी इतनी अधिक मात्रा में है कि वह वस्तु उसके स्टोर में पड़े-पड़े नष्ट भले हो जाए लेकिन कम नहीं पड़ती। वर्तमान में बड़े-बड़े नामी-गिरामी करोड़पतियों ने िाकेटर्स को खरीद लिया है और अपनी टीमें बना ली हैं। यह करोड़पति िाकेटर्स जिस शहर में जाते हैं वहॉं वस्तुओं का भाव बढ़ जाता है और एक बार बढ़ा हुआ भाव आसानी से नीचे नहीं आता।
महॅंगाई को बढ़ाने में दूसरा स्थान सिनेमा और टीवी का है। सिनेमा का एक अभिनेता एक फिल्म में काम करने के कई-कई करोड़ रुपये लेता है और मुँहमांगे दाम देकर वस्तुएं खरीदता है। प्याज चाहे 500 रु. किलो हो, उसकी आँख में आँसू नहीं आते जबकि गरीब 10 रु. किलो प्याज खरीदने में ही रो पड़ता है।
तीसरा प्रमुख कारण जो महॅंगाई के लिए बराबर का जिम्मेदार है, वह है भ्रष्टाचार, जिसका दूसरा नाम है रिश्र्वतखोरी। रिश्र्वत लेने वाले की अबाध आमदनी होती है और वह इच्छित वस्तुओं को प्राप्त करने के लिए कोई भी कीमत देने को तैयार रहते हैं। रिश्र्वत की मोटी कमाई करने वाला व्यक्ति भी प्रत्येक कीमत देकर इच्छित वस्तु खरीदने का प्रयास करता है। उस पर कोई असर नहीं पड़ता कि दूध 50 रु. लीटर है या 15 रु. लीटर। ऐसे व्यक्ति के यहॉं सस्ती से सस्ती चीज महंगी होकर प्रवेश करती है। जितना खाना फेंका जाता है उससे कई गरीब लोगों का पेट भर सकता हैं। मुँहमांगे दाम पर वस्तु खरीदने वाला रिश्र्वतखोर अधिकारी, नेता, कर्मचारी महॅंगाई को बढ़ाने में पूर्णतः सहायक होते हैं।
महॅंगाई बढ़ने के अन्य बहुत से कारण हैं किन्तु उपरोक्त तीन कारण प्रमुख हैं क्योंकि तीनों माध्यम से बेतहाशा पैसा आता है जिसे खर्च करने वाले को खर्च करने का कोई दर्द नहीं होता। यदि किसी िाकेटर, अभिनेता, अभिनेत्री अथवा रिश्र्वतखोर नेता या अधिकारी का ड्राइवर 50 रु. किलो का आलू खरीदकर लाता है तो फिर वह दुकानदार किसी गरीब को वही आलू 10 रु. किलो देने को तैयार नहीं होता।
यदि हम महॅंगाई खत्म करना चाहते हैं तो सिनेमा का, िाकेट का राष्ट्रीयकरण किया जाना चाहिए। अभिनेताओं और िाकेटरों की आय निश्र्चित होनी चाहिए। महंगाई अपने आप नीचे आ जायेगी। रिश्र्वतखोर अधिकारियों का, नेताओं का सामाजिक बहिष्कार होना चाहिए। यदि िाकेट और सिनेमा का राष्ट्रीयकरण करके इनकी आय निश्र्चित कर दी जाये और लगातार 3 बार मैच हारने पर अथवा खराब प्रदर्शन करने पर िाकेटर और अभिनेता को बाहर निकाल दिया जाये तो सामाजिक सुधार भी होगा और महॅंगाई भी कम होगी। यह दर्दनाक और अफसोसनाक बात है कि जिस देश के राष्ट्रपति को वेतन एक करोड़ रुपये सालाना नहीं मिलता वहॉं एक िाकेटर को साल भर में 40 से 50 करोड़ रुपये तक मिल जाते हैं। एक अभिनेता और अभिनेत्री को 10 से 20 करोड़ रुपये मिलना आम बात है। इन िाकेटरों और अभिनेताओं के कर्मचारी भी महॅंगाई से अप्रभावित रहते हैं क्योंकि इनको मिलने वाला वेतन सामान्य वेतन से कई गुना अधिक होता है। इसी प्रकार विज्ञापनों पर भी प्रतिबन्ध होना चाहिए। क्योंकि जिस वस्तु के विज्ञापन पर करोड़ों रुपये िाकेटर, अभिनेता या नेता को दिये जाते हैं उतने ही रुपये उस वस्तु का मूल्य बढ़ जाता है। आजकल विद्यालयों में भी प्रवेश के लिए रिश्र्वत अथवा तथाकथित डोनेशन का प्रचलन बढ़ गया है। डोनेशन भी एक प्रकार से रिश्र्वत ही है। जब कोई डॉक्टर या इन्जीनियर डोनेशन या रिश्र्वत देकर विद्यालय में प्रवेश लेता है तो डॉक्टर या इन्जीनियर बनकर वह उस डोनेशन की राशि को वसूल करने के लिए अपना मूल्य बढ़ा देता है। फलस्वरूप पूरे समाज पर इसका असर पड़ता है और डॉक्टर की फीस तथा इन्जीनियर की रिश्र्वत का रेट बढ़ जाने के कारण अन्य वस्तुओं की कीमतों पर फर्क पड़ता है। फलतः महॅंगाई आसमान छूने लगती है।
– हितेश कुमार शर्मा
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