दोस्तों, आपने यह कहावत तो सुनी होगी कि आप लिखें और खुदा बॉंचें। अर्थात् ऐसा लिखा जाना, जिसे दूसरे तो क्या बाद में लिखने वाला स्वयं ही नहीं पढ़ सके। ऐसी लिखावट को तो बस ईश्वर ही पढ़ सकता है। कम पढ़े-लिखे तो ठीक, कई उच्च शिक्षित लोग भी अपनी लिखावट के प्रति लापरवाह होते हैं। ऐसे लोग उनकी खराब लिखावट के लिए क्षमा मॉंगते अथवा शर्म महसूस करते देखे जा सकते हैं।
लिखना भी एक कला है। सुंदर लिखावट लेखन को असरकारक एवं आकर्षक बनाती है। पढ़ने वाला देखते ही इसे पढ़ने के लिए मजबूर हो जाता है। जीवन के कई महत्वपूर्ण अवसरों पर, जैसे परीक्षाओं, प्रतियोगिताओं, नौकरियों व लेखकीय कार्यों में इसके जरिए सफलता प्राप्त की जा सकती है।
सुंदर लिखावट की प्रशंसा तो होती ही है, यह लिखने वाले के नाम व उसके व्यक्तित्व की पहचान भी बनाती है। इस कला के लिए किसी प्रकार के प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती। हम स्वयं ही सतत अभ्यास या कलम को साधकर इस कला में माहिर हो सकते हैं। निम्न बातों को ध्यान में रखकर हम अपनी वर्तनी को इस काबिल बना सकते हैं –
- वर्णों के मानक स्वरूप पर ध्यान जमाएँ व लिखते समय उन्हें वैसा ही लिखने का प्रयास करें।
- वर्णों के छोर, स्ट्रोक्स तथा मात्राओं को अनावश्यक विस्तार न दें।
- सभी वर्णों को समान लंबाई-गोलाई में लिखें।
- वर्णों-शब्दों को सीधा, सीधी रेखा व समान अंतर में लिखें।
- शब्दों की शिरोरेखा अवश्य बॉंधें।
- विराम चिह्नों को उचित आकृति व लंबाई के अनुसार लगाएँ।
- कागज़ के दोनों ओर हाशिया छोड़कर लिखें।
- अंतरा बदलने पर प्रारंभ पहले अंतरे की समान दूरी से करें।
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