केन्द्र सरकार से मेरा आग्रह है कि वह देश के तमाम खबरिया चैनलों पर अंकुश लगाने हेतु नियम-कानून बनाये। ये चैनल समाचार कम, भूत-प्रेत, हत्या, बलात्कार और टोना-टोटका को प्रसारित करने का माध्यम ज्यादा बनते जा रहे हैं।
आज ये कहते हैं कि अमुक वर्ष में दुनिया खत्म हो जाएगी तो कल शनि महाराज की कुदृष्टि का वर्णन करने लगते हैं। किसी की हत्या की खबर पर आते हैं तो वीभत्सतम रिपोर्टिंग तक से परहेज नहीं करते। चौबीस घंटों में से लगभग 18 घंटे इनकी खबरों का केन्द्रबिन्दु सनसनी फैलाना-दिखाना ही रह गया है। यही नहीं, विभिन्न ग्रह-नक्षत्रों, कुत्ते, बिल्लियों का विश्र्लेषण कर जनता को और अधिक वहमी बनाने का कार्य कर रहे हैं ये चैनल। सवाल है कि इन सब खबरों का बच्चों, किशोरों के कोमल मस्तिष्क पर क्या असर पड़ेगा? उन्हें किस दिशा में ले जाना चाहते हैं ये? स्वाभाविक है कि हजार शब्द जो प्रभाव नहीं डाल पाते वो एक छोटा सा चित्रात्मक वर्णन डाल जाता है। और फिर ये तो बाकायदा नाट्य रूपांतरण कर-करके बता रहे हैं कि अमुक सन् में अमुक तारीख को ये दुनिया खत्म हो जाएगी।
अमुक मंदिर में अमुक देवता को अमुक दिशा में खड़े होकर जल-तेल चढ़ाने से सारी कामनाएँ पूर्ण हो जाएँगी। हमारे सौरमंडल में हजारों तारे, ग्रह-नक्षत्र हैं।
अब ये ग्रह-नक्षत्र अपनी दिशा-दशा तो बदलेंगे ही। ये लोग हैं कि बस पड़ जा रहे हैं उनके पीछे कि आज फलां ग्रह ने फलां राशि में कदम बढ़ाया है तो फलां-फलां पर मारक या तारक असर पड़ने वाला है। बेहतर होता इन चैनलों का नाम ग्रहों, नक्षत्रों के नाम पर रख दिया जाता अथवा सनसनी, जलजला या कुछ और। इससे एक फायदा तो होता कि वह चैनल लगाने से पहले हमारे दिमाग में एक स्पष्ट तस्वीर रहती कि हम जादू-टोना, टोटका या हत्या, फरेब और भूत-प्रेतों को देखने जा रहे हैं। समाचार के नाम पर लोगों की मानसिकता से खिलवाड़ तो नहीं होता। जैसे जब हम आस्था चैनल लगाते हैं तो हमें पता होता है कि हम क्या देखने जा रहे हैं और ये क्या दिखायेंगे।
सरकार से मेरा अनुरोध है कि वे या तो इन खबरिया चैनलों (हालांकि सभी ऐसे नहीं हैं) को स्पष्ट करने को कहें कि वह जो दिखाएँ वही नाम दें अन्यथा वहम और अंधविश्र्वास फैलाने वाले इन चैनलों पर कड़ा अंकुश लगाये।
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