सहज योग आज का महायोग कैसे

Mataji Nirmala Deviमानव इतिहास में यह पहली बार घटित हुआ है कि बिना किसी प्रयत्न के, पूर्ण हृदय से की गयी प्रार्थना मात्र से ही आप अपना आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करते हैं व आपका चित्त पूर्ण रूप से शांत हो जाता है। आप निर्विचारिता के साथ-साथ हाथों में शीतल चैतन्य लहरियों का अनुभव करते हैं जो कि पहले के योगियों को घर-बार छोड़कर वनों व आश्रमों में वर्षों तपस्या करने के बाद हजारों में से एक-दो को ही इसकी अनुभूति होती थी। निर्विचार अवस्था में व्यक्ति वर्तमान क्षण में होता है जो कि एकमात्र वास्तविकता है। परम पूज्य माता जी श्री निर्मला देवी पृथ्वी पर अवतरित आदि शक्ति का अवतरण हैं। उनके सम्मुख पूर्ण हृदय से की गयी याचना करने मात्र से व्यक्ति को अपना आत्मसाक्षात्कार प्राप्त होता है, वह ज्योतिर्मय हो उठता है। यही सहजयोग आज महायोग है, क्योंकि आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के पश्र्चात् मनुष्य अपनी आत्मा से एकाकारिता प्राप्त कर आत्मस्वरूप चेतन को महसूस करता है। हाथों से बह रही ठंडी-ठंडी चैतन्य की लहरियॉं उसे वास्तविकता का ज्ञान कराती हैं। यह चैतन्य लहरियां विद्युत चुम्बकीय तरंगों की तरह होती हैं, जिसका स्त्रोत हृदय में स्थित आत्मा है। इन तरंगों को हम माप सकते हैं। एक स्टेशन (ब्रह्मशक्ति) से ये संचालित होता है और एक एन्टीना (आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति के हाथ व सहस्त्रार) इन्हें ग्रहण करके दूरदर्शन उपकरण (व्यक्ति की बुद्धि, विचार) तक भेजता है। विद्युत चुम्बकीय लहरें केवल त्रिआयामी होती हैं जबकि सहजयोग में प्राप्त होने वाली चैतन्य लहरियॉं बहुआयामी होती हैं। इनमें भावनात्मक, मानसिक एवं शारीरिक शक्तियॉं मिश्रित होती हैं। ये सर्वव्यापी हैं। मनुष्य एक एन्टीना की तरह इन्हें प्राप्त कर पुनः संचारित करता है। दूसरे किसी व्यक्ति से आते हुए इन चैतन्य लहरियों को हम महसूस कर सकते हैं व उस व्यक्ति के चाों एवं नाड़ियों की स्थिति बगैर उसके पास जाए, उससे चर्चा किए बिना ही जान सकते हैं। यह बात अत्यन्त अविश्र्वसनीय प्रतीत होती है, परन्तु हमारे मस्तिष्क का सृजन इन्हीं तरंगों (चैतन्य लहरियॉं) से हुआ है तो ऐसा होना ही था। अन्य लोगों को यह चैतन्य लहरियॉं देने से ये तरंगें और भी अच्छी तरह से प्रवाहित होने लगती हैं, क्योंकि इनका स्रोत सामुहिकता को, पूर्ण को चाहता है।

परमपूज्य श्री माता जी निर्मला देवी की कृपा द्वारा इस महायोग से प्राप्त चैतन्य लहरियों के माध्यम से आज लाखों लोग अपने शरीर के पंच तत्वों में संतुलन स्थापित कर पूर्ण रूप से शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक व आत्मिक उन्नति की ओर अग्रसर हो रहे हैं। इस महायोग में व्यक्ति अकेले व्यष्ठि में साधना करके बहुत अधिक उन्नति नहीं कर सकता। सामुहिकता में ही इस साधना का वरदान है। चैतन्य का आदान-प्रदान कर हम आज के इस महायोग का पूर्ण लाभ अर्जित कर सकते हैं जिसका कि वर्णन सभी धर्मग्रन्थों में हमें मिलता है कि कलयुग में ही यह महायोग घटित होगा जबकि आदिशक्ति मानव रूप में अवतरित होंगी जो कि उनका “महामाया’ रूप होगा।

 

सहजयोग में आत्म साक्षात्कार पाने के पश्र्चात हमें सच व झूठ का ज्ञान होने लगता है। पहले हम प्रत्यक्ष में अनुभव करते हैं, तत्पश्र्चात् हमारा विश्र्वास बढ़ जाता है और हमारी शंका भी दूर हो जाती है तब हम सत्य के अंग-प्रत्यंग बन जाते हैं। सहजयोग को हमें अपने जीवन में धारण करना है, क्योंकि यह एक जीवन्त प्रिाया है। यह जीवन जीने की अपूर्व कला है और जीवन रक्षा की परम औषधी है। सभी कर्मों में योग करना श्रेष्ठ बताया गया है, क्योंकि इसके बिना हमारा व्यक्तित्व अधूरा रह जाता है, पर योग वही हो जो आत्म साक्षात्कार प्रदान करे, हमें परमपिता परमेश्र्वर से मिलाए। सहजयोग में यह कार्य सहज ही हो जाता है। इसीलिए इसे महायोग भी कहा गया है। हमारा व्यक्तित्व जड़ और चेतन दोनों के मेल से बना है। इसमें चेतना ही सत्य है, क्योंकि वह अपरिवर्तनशील है – केवल शरीर रमता है। हमें यह जानना है कि हम इन दोनों में से कौन हैं। आत्म साक्षात्कार के बाद हम जानते हैं कि हम शरीर नहीं “आत्मा’ हैं, जो कि अमर है। इस सत्य को पाने का नाम ही योग है। अतः योग हमें मृत्यु पर विजय दिलाता है और जीवन की शाश्र्वत सत्ता की हम में स्थापना करता है। अपनी चेतना में हम सत्य रूपी आत्मा को पा जाते हैं। श्रीमाताजी “निर्मला देवी’ की असीम अनुकंपा से यह अब संभव हो गया है। परमात्मा ही सत्य है तथा वे समस्त ब्रह्माण्ड के एकमात्र स्वामी, रचयिता, पालनकर्ता और संहार कर्ता हैं। हम लोग उनके अंग-प्रत्यंग हैं। कहीं कोई चिंता, भय, आशंका और मृत्यु नहीं है। केवल आनन्द ही आनन्द है और अमरता है। जीवन ही सत्य है और अंनत है। मौत तो केवल भ्रम है, मिथ्या है, कृत्रिम है।

अंधकार है कहॉं? नर्क है कहॉं? अज्ञानता है कहॉं? केवल प्रकाश ही प्रकाश है स्वर्ग का आनंद है, ज्ञान है। अखंड चेतना का साम्राज्य फैला हुआ है। प्रभु के साम्राज्य में मुक्त विचरण जैसा आनंद और कहॉं है? परमात्मा ने हमें यह सब कुछ दिया है जिसका कि प्रत्यक्ष अनुभव आज विश्र्व के 130 से भी अधिक देशों के लोगों ने सहज में ही सहजयोग द्वारा पाया है।

महासागर ने बूंद को अपने को दिया है, पर बूंद अत्यंत विनम्रता से समर्पण करके महासागर को प्राप्त कर सकती है, और वह हो सकता है। आज नजर उठा कर जहॉं देखिए, वहॉं हम पाते हैं कि सब कुछ कृत्रिम बनता जा रहा है। कृत्रिम मानव, कृत्रिम वर्षा, कृत्रिम हृदय आदि। कृत्रिमता से असंतुलन और प्रदूषण फैल रहे हैं जो कि जीवन के लिए एक बड़ा खतरा है। आत्म साक्षात्कार के बिना आज का मानव अंधेरे में चल रहा है। वह अपने आपको असहाय और असुरक्षित महसूस करता है। आज वह जो कुछ भी कर रहा है, उससे वह विनाश की ओर अग्रसर है। मानवीय चेतना के प्रदूषित हो जाने से वातावरण प्रदूषित हो रहा है। खाद्य, जल, वायु, ध्वनि आदि अनेक प्रकार के प्रदूषण हो रहे हैं। नैतिकता या चारित्रिक प्रदूषण समाज को कमजोर बना रहे हैं। व्यापारिकता में फंस कर धन-दौलत और झूठी प्रतिष्ठा अर्जित करने के लालच में इन्सान यह सब कर रहा है तथा इसके दुष्परिणाम की ओर उसका ध्यान नहीं है। आज अन्तरिक्ष में जाना कोई महान कार्य नहीं है। उत्तरी, दक्षिणी ध्रुव की खोज करना, भू-गर्भ और सागर के तल में जाना, हिमालय की चोटी पर चढ़ना आज कोई विशेष बात नहीं है। विशेष बात तो अपने तत्व को पाना है। सहज योग द्वारा यदि अन्तरिक्ष और अन्य ग्रहों जैसे चन्द्रमा, मंगल आदि पर जाने से स्वर्ग (स्वःग) अर्थात् “स्वः में जाने’ को मिलता तो वहॉं से लौटकर धरती पर वापस क्यों आना चाहिए? यदि दूसरे ग्रहों पर जाने के बाद भी आदमी मरेगा तो इससे अच्छा है कि धरती मॉं की गोद पर ही प्राण त्यागे। इसके लिए इतना अधिक परिश्रम, पैसे और समय की बर्बादी करना कौन-सी बुद्धिमानी है? यह सब अतिामण है। अपनी मौत को बुलावा देना है, पाना है तो अपने तत्व को पाना, अपनी अमरता को पाना, आनन्द को पाना चाहिए। आज सहजयोगी कितने भाग्यशाली हैं जो अपने आस-पास इतने असन्तुलित वातावरण व विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अमर जीवन-ज्योति को पा आनन्द में जीवन जी रहे हैं।

– माता जी निर्मला देवी

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