बहुत पुरानी बात है। दोपहर का समय था। एक चूहा जंगल में से होकर गुजर रहा था कि तभी उसे आवाज़ सुनाई दी, बचाओ, मुझे आज़ाद करो।
उस चूहे ने चारों ओर देखा। तभी उसे एक साँप नज़र आया। साँप ही बचाओ-बचाओ चिल्ला रहा था। साँप के ऊपर एक बड़ा-सा पत्थर रखा था।
चूहे को देखकर साँप ने कहा, चूहे भाई, मुझे आज़ाद करो। इस पत्थर के नीचे दबा होने के कारण में रेंग नहीं पा रहा हूँ।
लेकिन यह पत्थर तुम्हारे ऊपर कैसे आ गया? चूहे ने पूछा।
एक शैतान जानवर ने पत्थर को मेरे ऊपर रख दिया। अब तुम्हीं मेरी रक्षा कर सकते हो, दर्द के मारे जान निकल रही है। यदि थोड़ी देर तक यह पत्थर मेरे ऊपर यूँ ही पड़ा रहा, तो मेरी जान निकल जायेगी। मुझे बचा लो। साँप गिड़गिड़ाया। चूहा कुछ सोच कर बोला, तुम तो साँप हो, अगर मैंने तुम्हें स्वतंत्र करा दिया तो तुम मुझे काट लोगे।
तुम सोचते हो कि मैं इतना मतलबी हूँ। भई, अगर मेरी रक्षा करोगे तो मैं तुम्हें क्यों काटूंगा। मैं वादा करता हूँ कि तुम्हें नुकसान नहीं पहुँचाऊँगा। बस, मुझे बचा लो। साँप ने कहा।
चूहे को साँप पर दया आ गई। उसने उसकी सहायता करने का निश्र्चय कर लिया। उसने पत्थर हटा दिया और साँप आज़ाद हो गया। वह साँप बहुत बड़ा था। उसका मुँह इतना चौड़ा था कि पूरी बकरी साबुत निगल सकता था।
साँप अब चूहे की तरफ ललचाई नज़रों से देखने लगा क्योंकि वह बहुत भूखा था। उसने उसे खा जाने की ठान ली। वह मुँह खोलकर धीरे-धीरे चूहे की ओर बढ़ने लगा। अब डर के मारे चूहे का बुरा हाल हो गया। उसने पीछे हटते हुए पूछा, यह क्या कर रहे हो?
मैं तुम्हें खाऊँगा। मुझे बहुत ज़ोर से भूख लगी है। साँप फुंफकारा। लेकिन तुमने तो वादा किया था कि मुझे नहीं खाओगे।
हा… हा… हा… कैसा वादा, जब भूख सताती है तो जानवर क्या, इन्सान भी सब वादे भूल जाते हैं। मैं तुम्हें आज नहीं छोड़ूँगा। अच्छा, एक शर्त है। हम 3 लोगों से पूछेंगे कि तुम मुझे खा सकते हो या नहीं। अगर उनका फैसला तुम्हारे हक में हुआ तो मुझे खा लेना, नहीं तो मुझे छोड़ना पड़ेगा। चूहा बोला।
मंजूर है। साँप ने कहा।
चूहा अब 3 लोगों की तलाश करने लगा। पास ही एक नदी थी। उसके किनारे एक पेड़ था और पेड़ के नीचे एक चींटी बैठी थी।
चलो, पेड़, चींटी और नदी से ही पूछते हैं। सांप बोला। चूहा बोला, ठीक है… उसे तो पूरा यकीन था कि तीनों ही उसके पक्ष में बोलेंगे।
उसने पूरा किस्सा तीनों को सुनाया। फिर बोला, अच्छा, आप ही बताओ कि साँप को मुझे खाना चाहिए या नहीं?
पेड़ बोला, साँप को तुम्हें खाने का पूरा अधिकार है।
यह क्या कह रहे हो? चूहा आश्र्चर्य से बोला।
बात साफ है। अगर तुम साँप को नहीं बचाते तो मौत से बच जाते। सॉंपों का आहार चूहे और मेंढक ही तो हैं, इसलिए साँप तुम्हें खा सकता है। पेड़ बोला।
तुम तो बहुत बुद्धिमान हो, साँप बोला, चींटी तुम क्या कहना चाहती हो?
पेड़ ने अभी जो कहा वह एकदम सच है। मैं पेड़ के विचारों से पूरी तरह सहमत हूँ। तुम चूहे को खा सकते हो। चींटी ने कहा।
अब नदी से पूछने की बारी थी। वह बोली, मैं पेड़ और चींटी से सहमत हूँ। मुझे ही देखो, मैं जंगल के जीव-जंतुओं को पीने के लिये पानी देती हूँ, लेकिन स्वार्थी जीव-जंतु बदले में मुझमें गंदगी फेंकते हैं, जिससे मेरा दम घुटता है। मुझमें रहने वाली मछलियां और पौधे समय से पहले ही मर जाते हैं। जब जीव-जंतु स्वयं स्वार्थी हैं तो उनके साथ भलाई क्यों?
चूहा खामोश हो गया। अब उसे अपने बचाव की जुगत खुद ही भिड़ानी थी। साँप उसकी ओर बढ़ने लगा। तभी चूहा बोला, ठहरो, तुम मुझे ज़रूर खाना… बस एक बार मैं बिल में जाकर अपनी बूढ़ी मॉं को प्रणाम कर आऊँ।
ठीक है, लेकिन मैं भी तुम्हारे साथ चलूँगा। साँप ने कहा। वे दोनों अब बिल की ओर चल दिये।
बिल के पास पहुँच कर चूहा बोला, साँप भाई, तुम भी मेरी मॉं से मिल लो।
साँप तैयार हो गया और वह चूहे के आगे-आगे बिल में घुसने लगा। बिल के अंदर कोई नहीं था। वहॉं चूहा अकेला रहता था। जैसे ही साँप बिल के अंदर गया, चूहे ने एक बड़ा-सा पत्थर लाकर बिल के ऊपर रख दिया। साँप चूहे को पुकारता रह गया। चूहा वहॉं से भाग गया और दूसरी जगह पर अपना बिल बना लिया। तब से साँप चूहे के बिलों में रहते हैं। साँप जिस चूहे के बिल पर अपना अधिकार जमा लेता है, वह चूहा उस बिल को छोड़कर दूसरी जगह बिल बना लेता है।
– नरेंद्र देवांगन
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