सच्चा मित्र

The True Friendप्रभात के पिता जिला कचहरी में क्लर्क के पद पर कार्यरत थे। अभी हाल ही में उनका तबादला एक कस्बाई शहर से इस जिला मुख्यालय में हुआ था। प्रभात भाई-बहनों में सबसे बड़ा था। उसके पिता रमाशंकर जी सीधे-सादे इंसान थे। रिश्वत-घूस की दुनिया में उन्होंने कभी कदम न रखा था। घर-गृहस्थी की गाड़ी किसी तरह खिंची चली जा रही थी।

प्रभात पढ़ने में प्रखर बुद्धि वाला एक स्वस्थ एवं सुदर्शन किशोर था। वह दसवीं कक्षा का छात्र था। उसका नामांकन शहर के एक मशहूर विद्यालय में करवा दिया गया था।

प्रभात की कक्षा में बड़े-बड़े हाकिमों और सेठ-साहूकारों के बच्चे पढ़ते थे। प्रभात ने उनसे परिचय एवं मेल-जोल बढ़ाना चाहा था, परन्तु अपनी अमीरी एवं भौतिक सम्पन्नता के कारण वे प्रभात को एक निम्न कोटि का जीव समझते थे। खासकर जिला कलेक्टर का लड़का रॉकी तो उसे हमेशा नफरत की नज़र से ही देखता था। वह अपनी मित्र मंडली के साथ हमेशा प्रभात की वेशभूषा एवं उसकी खटारा साइकिल का मज़ाक उड़ाया करता था। समय अपनी गति से बढ़ता चला जा रहा था। प्रभात और उसके सहपाठी मैट्रिक की परीक्षा हेतु फार्म भर चुके थे। एक दिन किसी कार्यवश प्रभात शहर के मशहूर चौक तक गया हुआ था। तभी अपनी-अपनी चमचमाती मोटर साइकिलों पर सवार होकर रॉकी, विनय, अजीत एवं समीर भी चौक तक आए और एक मशहूर रेस्तरां में जलपान करने के बाद वे लोग सिगरेट का धुआँ उड़ाते वहॉं मटरगश्ती करने लगे। ठीक उसी समय एक काले रंग की बुलेरो गाड़ी आकर उनके पास रुकी। उससे तीन-चार हट्टे-कट्टे व्यक्ति उतरे। उन्होंने रॉकी के बारे में पूछा। उसको पहचानने के बाद उनमें से दो लोगों ने रॉकी की कनपटी पर रिवाल्वर लगा दी और उसे अपने साथ गाड़ी में बिठाकर चलते बने।

रॉकी का दिनदहाड़े अपहरण हो चुका था। उसके तीनों जिगरी दोस्त दम साधे यह नजारा देखते रहे, लेकिन मोटर साइकिल होते हुए भी उन्होंने अपहरणकर्ताओं की कार का पीछा करने का साहस नहीं जुटाया। उधर प्रभात भी खड़ा-खड़ा सब कुछ देख रहा था, लेकिन वह रॉकी के दोस्तों की तरह बुजदिल नहीं था। प्रभात अपनी पुरानी साइकिल से ही उस काली कार का पीछा करने लगा मगर वह अपनी खटारा साइकिल से कब तक उनका पीछा करता। गाड़ी शीघ्र ही उसकी आँखों से ओझल हो गई, लेकिन तब तक प्रभात ने उस गाड़ी का नंबर अपनी डायरी में नोट कर लिया था।

प्रभात तुरंत नगर थाना जा पहुँचा, लेकिन तब तक प्रभात के मित्र भी फोन के जरिये रॉकी के अपहरण की सूचना दे चुके थे। प्रभात के कलेक्टर पिता मि. वर्मा., एसपी मि. शर्मा के साथ थाने पहुँच चुके थे। पूरा प्रशासन बौखलाया हुआ था। दिनदहाड़े जिला कलेक्टर के इकलौते पुत्र के अपहरण का मामला जो ठहरा। परन्तु अपराधियों तक पहुँचने का पुलिस के पास कोई सूत्र नहीं था। तभी प्रभात ने पुलिस को उस काली बुलेरो गाड़ी का नंबर अपनी नोटबुक में से लिखवा दिया। बस, फिर क्या था, उस नंबर के सहारे पुलिस उनके गुप्त ठिकानों पर जा पहुँची और 24 घंटों के अंदर पुलिस ने रॉकी को अपहरणकर्ताओं के चंगुल से मुक्त करा लिया। तीनों अपराधी भी दबोच लिए गए। इस घटना के बाद चारों ओर प्रभात की चर्चा होने लगी। कलेक्टर मि. वर्मा अपनी पत्नी आशा के साथ स्वयं रमाशंकर के आवास पर जा पहुँचे और उन्होंने प्रभात को सीने से लगा लिया। उन्होंने प्रभात का हाथ पकड़कर अपने बेटे रॉकी के हाथों में थमा दिया और अपने बेटे की ओर मुखातिब होते हुए बोले, “”लो बेटे, अपने सच्चे मित्र को संभालो। अरे, तू तो बड़ा किस्मत वाला है, जो तुझे प्रभात जैसा सच्चा मित्र मिला है।” उस दिन से रॉकी और प्रभात सच्चे मित्र बन गए। रॉकी अब अपने पुराने कायर मित्रों से दूर रहने लगा।

– रंजन कुमार शर्मा “रंजन’

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