सभी के प्रतिरक्षा तंत्र में बहुत से गुण होते हैं। लेकिन एक गुण ऐसा भी है, जिसके कारण कैंसर जैसी भयानक बीमारी होने का पता कई सालों तक नहीं लग पाता है। यह तथ्य एक नयी खोज से सामने आया है, जिसमें पता चला है कि कुछ जानवरों में छोटा व हानिरहित कैंसर ट्यूमर कई सालों तक अज्ञात पड़ा रहा।
आमतौर पर ट्यूमर और प्रतिरक्षा तंत्र एक तरह के संतुलन में रहता है। ऐसे में ट्यूमर न तो खत्म होता है और न ही बढ़ता है। ट्यूमर का बढ़ना तब शुरू होता है, जब किसी म्यूटेशन के कारण उसके बाहरी रूप में ऐसा परिवर्तन हो जाता है कि वह प्रतिरक्षा तंत्र को नज़र आना बंद हो जाता है या प्रतिरक्षा तंत्र के निगरानी वाले स्वभाव में परिवर्तन आ जाता है। ऐसा तब होता है, जब वह व्यक्ति शारीरिक या मानसिक रूप से तनाव में रहा हो।
शोधकर्ता यह खोजने की कोशिश कर रहे हैं कि कौन-से अणु ट्यूमर को पहचानते हैं या फिर प्रतिरक्षा तंत्र की सतर्कता को कैसे बढ़ाया जाए। इसके द्वारा कैंसर से लड़ने में नयी राह सामने आएगी, जिससे बीमारी को बढ़ने से पहले ही रोका जा सकेगा।
इसका पता लगाने के लिए वॉशिंगटन विश्र्वविद्यालय के रॉबर्ट सीबर और उनके साथियों ने कुछ चूहे लिए। उनमें मेथिलकोलेनथ्रिन नामक कैंसरकारी पदार्थ प्रविष्ट करवाया, जो ट्यूमर की वृद्धि को उत्तेजित करता है। शोधकर्ताओं ने पाया कि कृत्रिम एंटीबॉडीज को जब प्रतिरक्षा तंत्र में प्रविष्ट कराते हैं, तब उसका संतुलन गड़बड़ा जाता है और ट्यूमर बढ़ने लगता है। उन्होंने श्र्वेत रक्त कोशिकाओं सीडी4 और सीडी8 या गामा इंटरफेरन को नष्ट कर दिया तो ट्यूमर बढ़ने लगा। सीबर कहते हैं कि यदि बढ़ती उम्र के कारण किसी व्यक्ति का प्रतिरक्षा तंत्र प्राकृतिक रूप से ठप्प हो जाए या जब कोई व्यक्ति अंग प्रत्यारोपण के बाद प्रतिरक्षा तंत्र को दबाने वाली दवाइयॉं ले रहा हो, तो ऐसा प्राकृतिक रूप से भी हो सकता है।
अर्थात् प्रतिरक्षा तंत्र ट्यूमर को ऐसी निषिय अवस्था में रख सकता है कि उसका शारीरिक रूप से एहसास न हो और वह नुकसान न करे। हमारे बीच ऐसे कई लोग हैं, जिन्हें ट्यूमर है, लेकिन वे संतुलित अवस्था में हैं।
यह स्थिति भी हो सकती है कि यदि हम उन कारकों को पहचान पाएँ, जो बीमारी को संतुलन में रखते हैं, तो कैंसर का विकास ही नहीं हो पाएगा, तब शायद कैंसर एक लंबे समय तक रहने वाला मगर नियंत्रित रोग बन जाएगा।
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