कहते हैं, हर ध्वंस में भी एक संभावना छिपी होती है। लगता है, मौसम और जलवायु में हो रहा तेजी से पर्यावरणीय परिवर्तन ऐसा ही ध्वंस है जिसने बड़े पैमाने पर रोजगार की संभावनाएं भी पैदा कर दी हैं। अभी एक दशक पहले तक सोचा भी नहीं जा सकता था कि मौसम और जलवायु में होने वाला परिवर्तन भी किसी रोजगार का जरिया बन सकता है। लेकिन आज यह हकीकत है। न सिर्फ क्लाइमेट चेंज में जीविकोपार्जन के अवसर पैदा हुए हैं, बल्कि अच्छा-खासा पैसा बनाने का जरिया भी यह क्षेत्र बन गया है।
जलवायु परिवर्तन या ग्लोबल वार्मिंग में रोजगार की संभावना एक तरफ जहां नौकरी उपलब्ध करा रही है, वहीं दूसरी तरफ हमें उस बड़े अभियान का हिस्सेदार भी बनाती है, जो अभियान धरती की रक्षा के लिए शुरू किया गया है ताकि इस खूबसूरत ग्रह को बचाया जा सके। सरकार और निजी दोनों ही क्षेत्रों ने इस बात को मान्यता दी है कि ग्लोबल वार्मिंग एक बड़ी और वैश्र्विक समस्या है। जिस पर बिना व्यापक जन-भागीदारी के काबू नहीं पाया जा सकता। सरकार और निजी क्षेत्र के उद्योग-धंधे इस समस्या से निपटने के लिए कार्बन धुएं को लगातार कम से कम उत्सर्जित करने के तरीके सीख रहे हैं और इन्हीं तौर-तरीकों को लागू करने के तहत बड़े पैमाने पर नौकरियां पैदा हुई हैं।
जलवायु परिवर्तन ने कई स्तरों पर रोजगार पैदा किए हैं। पहला और मूल क्षेत्र कार्बन डाईऑक्साइड को उत्सर्जित करने की दर को कम से कम करने में माहिरी हासिल करने से जुड़ा है। दूसरा क्षेत्र ऐसी तकनीक का विकास करना है, जो पर्यावरण और पारिस्थितिकी के अनुकूल हो। तीसरा क्षेत्र आम लोगों की जीवन-शैली, पर्यावरण को बेहतर बनाने, उसे प्रदूषित करने से रोकने में सहायक गतिविधियों से जुड़ा है। इसके लिए लोगों को सचेत करना है। कुल मिलाकर कहने का मतलब यह है कि पर्यावरण और जलवायु में होने वाले इस बदलाव में कई तरह के रोजगारों ने दुनिया के दरवाजे खोल दिये हैं।
जिस तरह से ब्लू कॉलर और व्हाइट कॉलर जॉब की शब्दावली का चलन मौजूद है, उसी तरीके से अब ग्रीन कॉलर जॉब भी रोजगार की दुनिया में एक नयी शब्दावली बनकर उभरा है। यह ग्रीन कॉलर जॉब वास्तव में बदलते पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन जैसे क्षेत्र से ही जुड़ा है। इसमें हर तरह के लोगों के लिए रोजगार की संभावनाएं हैं। बहुत पढ़े-लिखे, कम पढ़े-लिखे और बिल्कुल कम पढ़े-लिखे लोगों के लिए भी। जैसे वनीकरण, कम पानी वाली खेती-किसानी करना, पर्यावरण को संरक्षित रखने में मदद करना। इसके अलावा इंजीनियरिंग और ट्रांसपोर्टेशन भी क्लाइमेट चेंज या जलवायु परिवर्तन से जुड़े वह क्षेत्र हैं, जहां बड़े पैमाने पर नौकरियां पैदा हुई हैं।
बड़े-बड़े महानगरों में कचरे को इकट्ठा करने के तौर-तरीकों में अब तेजी से बदलाव हो रहे हैं। इन बदलावों में जलवायु परिवर्तन का हाथ है। अभी एक दशक पहले तक जहां किसी भी तरह के कचरे को सिर्फ और सिर्फ कचरा ही माना जाता था, वहीं अब लाखों-लाख लोगों को एक ऐसी नयी अर्थव्यवस्था में रोजगार मिल रहा है, जो कचरे पर आधारित है। यह दरअसल घरों के कचरे को जैविक और गैर-जैविक कचरों के रूप में एकत्र करना और फिर उनके अलग-अलग पर्यावरण के इस्तेमालों पर आधारित है। ब्राजील, भारत और अमेरिका जैसे बड़े देशों में ग्रीन एनर्जी के नाम पर अब बायोफ्यूल (जैविक ईंधन) का तेजी से इस्तेमाल बढ़ा है। इस ईंधन के उत्पादन से जुड़ने वाले हजारों लोगों को रोजगार मिल रहा है। सन् 2005 में अमेरिका में 53 लाख लोगों को क्लाइमेट चेंज या जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए उठाये गये विभिन्न कदमों से रोजगार मिला था। आप अंदाजा नहीं लगा सकते कि इतने लोगों को अमेरिका में किसी और दूसरे क्षेत्र में रोजगार हासिल नहीं है। यह संख्या फार्मास्युटिकल इंडस्ट्री के मुकाबले दस गुनी ज्यादा है। अकेले भारत में ही इस समय जलवायु परिवर्तन को रोकने और कई तरह के पर्यावरणीय सुधार के सिलसिले में 4000 से ज्यादा प्रोजेक्ट व्यावहारिक जामा पहने जाने का इंतजार कर रहे हैं।
बहरहाल जलवायु परिवर्तन के चलते जिन महत्वपूर्ण रोजगारों का सृजन हुआ है, उनमें पर्यावरणीय प्रभावों की जांच-परख करने वाले विशेषज्ञों, स्वच्छ ऊर्जा विकास के विशेषज्ञों, ऊर्जा अर्थशास्त्री, कॉर्बन ोडिट्स टेडर, एनर्जी इफीशिएंसी एक्सपर्ट, क्लीन डेवलपमेंट मैकेनिज्म एनालिस्ट, इन्वायरमेंटल इंजीनियर, एनर्जी इफीशिएंसी फाइनेंस एनालिस्ट, एनर्जी मैनेजर, क्लीन कोल टेक्नोलॉजिस्ट, एनर्जी ऑडिटर, कॉर्बन आफसेट स्पेशलिस्ट, एनर्जी प्राइसिंग एक्सपर्ट, पावर डिस्ट्रीब्यूशन इंजीनियर, रिसर्चर, वेदर डेरिवेटिव ट्रेडर, वेंचर कैपिटलिस्ट, डिमांड साइट मैनेजमेंट प्लानर, सोशल डेवलपमेंट स्पेशलिस्ट और बड़े पैमाने पर पर्यावरण की चेतना पैदा करने वाले अध्यापकों की मांग बढ़ी है।
ये तमाम क्षेत्र विज्ञान और तकनीकी में उच्च अध्ययन की मांग करते हैं। जलवायु परिवर्तन से सम्बंधित विभिन्न तरह के पाठ्याम जिन महत्वपूर्ण संस्थानों में उपलब्ध हैं, वे कुछ इस तरह हैं-
- इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेस्ट मैनेजमेंट, देहरादून
पाठ्याम : पोस्टग्रेजुएट प्रोग्राम इन फॉरेस्ट मैनेजमेंट
- दिल्ली यूनिवर्सिटी, दिल्ली
पाठ्याम : बी.एस.सी. और एम.एस.सी. इन एन्वायरनमेंट साइंसेज़
- आन्ध्र प्रदेश यूनिवर्सिटी, विशाखापट्टनम
पाठ्याम : एम.एस.सी. इन मेट्रोलॉजी
- पुणे विश्र्वविद्यालय, पुणे (डिपार्टमेंट एन्वायरनमेंट साइंसेज़)
पाठ्याम : एम.एस.सी., पी.एच.डी. प्रोग्राम इन एन्वायरनमेंट साइंसेज़
- जामिया हमदर्द यूनिवर्सिटी, दिल्ली
पाठ्याम : एम.एस.सी. इन एन्वायरनमेंट साइंसेज़
- दिल्ली कॉलेज आफ इंजीनियरिंग, दिल्ली
पाठ्याम : एम.एस.सी. इन एन्वायरनमेंट साइंसेज़
- गुरु गोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी, दिल्ली
पाठ्याम : एम.एस.सी. इन एन्वायरनमेंट मैनेजमेंट
- इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट, नई दिल्ली
पाठ्याम : एम.एस.सी. इन एन्वायरनमेंट साइंसेज़
- इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंसेज, बेंगलूर
पाठ्याम : एम.टेक. इन क्लाइमेट साइंस
- गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज, उज्जैन
पाठ्याम : एम.ई. इन एन्वायरनमेंटल इंजी. एंड पॉल्यूशन कंट्रोल
- आईआईटी, खड़गपुर
पाठ्याम : विभिन्न तरह के मौसम विज्ञान सम्बंधी पाठ्याम
- इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, दिल्ली
पाठ्याम : 9 से 10 पाठ्याम ऐटमॉस्फियरिक एन्वायरनमेंट और ओशियन मॉड्यूलिंग में
- सेंटर फॉर पॉल्युशन कंट्रोल एंड बायोवेस्ट एनर्जी सेंटर, पांडिचेरी यूनिवर्सिटी
पाठ्याम : पी.एच.डी. इन एन्वायरनमेंटल इंजीनियरिंग
ये सभी विशेषज्ञता वाले क्षेत्र हैं जिनमें एडमिशन 10जमा2, बी.एस.सी. और एम.एस.सी. के बाद मिलता है और ये डिग्री/डिप्लोमा हासिल करने के बाद भारत या विदेश कहीं पर भी शानदार नौकरी हासिल की जा सकती है।
– जी.एस. नंदिनी
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