आकाश में शुभ्र बादलों का विचरण
कभी उमड़-घुमड़
काले मेघों का गर्जन
जैसे भीमसेन जोशी का गायन।
सुर मल्हार, गौड़ मल्हार
पिरो दे बरखा के तार-तार
आसावरी
ललित भटियार
वृन्दावनी सारंग
मुल्तानी दोपहर का एकाकीपन।
मारवा संजोता
सतरंगी सांझ
पुरीया धनाश्री से छाता
रात में पीलू का आवरण।
मिश्र पीलू मांझ-खमांज
दरबार सजाता
दरबारी कानड़ा
और तिलक शाम।
सुबह तक महफ़िल जमती
फिर भैरवी बजती
नट भैरव
अहीर भैरव
चन्द्रभागा की लहरों पर
सूर्य की किरणें बिखरतीं,
कलियां खिलतीं
खुशबू बिखरती।
एक परिमा
राग की
बिहाग की
अनुराग की।
फिर एकतारा गाता
विट्ठल, विट्ठल, विट्ठला,
माझा पांडुरंगा विट्ठला।।
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