ग़ज़ल – मधुर नज्मी

धो के हाथों की हिना पानी में

इक नशा घोल दिया पानी में

दुश्मने-जां हैं ये तीनों लेकिन

फ़़र्क है, आग, हवा, पानी में

तेरी रहमत का हो साया जिस पर

डूब सकता है भला पानी में।

किसी गौहर की हो जो तुमको तलाश

झांक कर देखो ज़रा पानी में

एक बादल का सहारा लेकर

बरसी घनघोर घटा पानी में

उनके चेहरे का आईना झलके

ऐसा महसूस हुआ पानी में

मेरे पीछे ही कोई कूदा है

ऐसा महसूस हुआ पानी में

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