रिमझिम आयी बरखा
नभ में
कड़ाकड़-कड़
बिजली चमकी
काले-काले बादल छाये रे
रिमझिम-रिमझिम
आयी बरखा
ठंडी चली पुरवाई रे
बीत गये अब
दिन गर्मी के
नहीं रहे गर्म
लू के झोंके
ताप मिटा धरती का
जन-जीवन में खुशहाली रे
कब से आंगन में
रिमझिम बरखा बरस रही
कानों में रस घोल रही
झरझर-झरझर जैसे
लयतालबद्ध संगीत रे
धीरे-धीरे हौले-हौले
खोल पिसारा नाच
मुग्ध मन-मयूर नाच
नाच छमछनन नाच रे।
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