सफलता प्राप्त करने के लिए पुस्तकों से मित्रता अति आवश्यक है, क्योंकि पुस्तकें हमारी सच्ची मित्र होती हैं। इसलिए हमें पुस्तकों की अहमियत को समझना होगा। हमें विद्यार्थी-काल से ही पुस्तकों के संग्रह की आदत डालनी होगी। ज्यादातर विद्यार्थी अपनी पूर्वकक्षा की पुस्तकों को लापरवाही से फेंक देते हैं, रद्दी के भाव बेच देते हैं या किसी न किसी को दे देते हैं। ऐसा करना उचित नहीं है। हमें पुस्तकें किसी ऐसे विद्यार्थी को ही देनी चाहिए, जो पढ़ने के बाद उन्हें सुरक्षित रूप से हमें वापस दे सके। पुस्तकों की जरूरत हमेशा पड़ती ही रहती है। विद्यार्थियों के मन में यह गलत धारणा बनी हुई है कि अगली कक्षा में जाने के बाद पिछली कक्षा की पुस्तकें काम नहीं आतीं।
लेकिन ये धारणा बिल्कुल गलत है, क्योंकि हम जितनी बड़ी कक्षाओं में जायेंगे, हमें उतना ही बारीकी से अध्ययन करना पड़ता है। ऐसे समय हमें पुरानी पुस्तकों की आवश्यकता पड़ती है। लेकिन उस समय समस्या हो जाती है, जब पुस्तकें पास में नहीं रहतीं। अपनी पुस्तकें पास में हों तो उन्हें जरूरत के समय निकाल कर पढ़ा जा सकता है। विदेश में तो अधिकांश विद्यार्थियों की अपनी एक लाइब्रेरी होती है। विज्ञान के विद्यार्थियों के पास एक छोटी-सी प्रयोगशाला आधुनिक उपकरणों से लैस होती है। हमारी भी एक छोटी-मोटी लाइब्रेरी होनी चाहिए। हमें अपनी प्रत्येक कक्षा की पुस्तकों को संभाल कर रखना चाहिए। हमें अपने दोस्तों को उनके जन्मदिन पर कोई पुस्तक ही भेंट करनी चाहिए तथा उनसे भी पुस्तक ही गिफ्ट में देने के लिए कहना चाहिए। इस प्रकार एक छोटा-सा पुस्तकालय आपके पास बन सकता है। खाली समय में या बोरियत होने पर सुविधानुसार अच्छी पत्रिकाओं का भी संग्रह करना चाहिए। इससे एक तो हमारे खाली समय का सदुपयोग होगा, दूसरे हमारी लाइब्रेरी में पुस्तकों में भी बढ़ोत्तरी होगी। इसके लिए हमें अच्छे स्तर की पुस्तकों व पत्रिकाओं का चयन करना होगा। हमें महान व्यक्तियों की जीवनी वाली पुस्तकें भी पढ़नी चाहिए, जिससे हममें उनके समान ही सफलता प्राप्त करने की ललक पैदा हो तथा हमें उनके चले मार्गों का ज्ञान हो जाये। चाचा नेहरू जी के इलाहाबाद में स्थित आनंद भवन में उनकी हस्तलिखित प्राइमेरी स्तर की कॉपियॉं, पुस्तकें तमाम छोटी-मोटी चीजें संभाल कर रखी हुई हैं। जितने भी महान व्यक्ति हुए हैं, लगभग सभी ने अपनी पूर्व स्मृतियों को धरोहर बनाया है।
– कुणाल शर्मा
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