इन दिनों हमारे प्रदेश के मुख्यमंत्री जी की निगाहें आकाश की ओर लगी रहती हैं। कारण साफ है, चौमासे का एक माह समाप्त होने पर है, किन्तु इन्द्र देवता कृपा नहीं कर रहे हैं। लगता है बादल रूठ गये हैं। रहीम ने कहा था, बिन पानी सब सून और हम कह रहे हैं, रूठे हुए मानसून प्लीज कम सून। कालीदास के मेघ शायद अंग्रेजी में हमारी करुण पुकार सुनकर ही पसीज जायें और पानी बरसा दें। जबसे ऐश्र्वर्य राय बच्चन ने “बरसो-बरसो रे मेघा बरसो, बारिश का बूटा है…’ गाना झमाझम बारिश में भीग कर गाया, लगता है, तबसे ही मेघ रूठ कर कालीदास को ईमेल पहुँचाने चले गये हैं। इधर सरकार की जान सांसत में है। अगर बारिश नहीं हुई तो क्या होगा। मौसम विभाग वालों ने ढाढ़स बंधाते हुए कहा कि चिन्ता की कोई बात नहीं है। हम लोगों की तरह “लेट लतीफी’ ऊपर भी चलती है। उत्तर-मध्य भारत और पूर्वी भारत में वर्षा ने कहर बरपाया हुआ है। सभी इलाके कमोबेेश बाढ़ की चपेट में हैं और हमारे यहॉं नहीं के बराबर बारिश हुई है। अपवाद रूप में तटवर्ती इलाकों को छोड़ दें तो प्रायः सूखे की स्थिति है।
एक तो महंगाई ने तेल की आड़ लेकर वैसे ही नाक में दम कर रखा है, ऊपर से वर्षा नहीं हुई तो क्या हालत होगी? अगले वर्ष चुनाव है। मतदाताओं का सामना करना है। सोनिया जी ने चिन्तन बैठकों में स्पष्ट कह दिया है कि आन्ध्र में कर्नाटक नहीं दोहराने देंगे। पर इन्द्रदेव हैं कि प्रॉब्लम समझने को तैयार ही नहीं हैं। राहुल बाबा को लेकर साईं के दरबार में, महाकाल उज्जैन के मंदिर में मत्था नवा आई हैं। पता नहीं किस देवता की कृपा हो जाये अगले बरस के चुनावों में, और बैतरणी लोकतंत्र की पार हो जाये। इसलिए राजशेखर रेड्डी जी चिंतित हैं और बार-बार आकाश की ओर देख रहे हैं।
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