वर्षा की पहली बूँद

वर्षा की पहली बूँद,

लगती है अति प्यारी।

स्वागत करते हैं इसका,

सब ही मिलकर भारी।

भीषण गर्मी की तपन यह,

जब आती पहली बौछार।

जड़ चेतन अंबर सब,

मनाते जैसे कोई त्योहार।

सूखे धानों को जब मिलता

अमृतमय शीतल पानी।

तृप्त हो जाती है धरा,

इस बूँद का न कोई सानी।

 

ज़िंदगी

जिंदगी एक गणित है,

जिसमें “दोस्तों’ का जोड़ करो,

“दुश्मनों’ को घटाओ,

“खुशियों’ का गुणा करो,

“दुःखों’ का दो भाग,

कभी भी “निराश’ मत हो,

ऐसा होने पर अपने आप ही,

“ज़िंदगी’ का “वर्गमूल’ निकल आएगा।

– विहीत विपुल मारू

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