आप करते जाइये जो हम कहें, आप जो चाहेंगे होता जाएगा
आपने हमको अगर खुश कर दिया, आपका प्रतिपक्ष रोता जाएगा
टेढा-मेढ़ा काम करने के लिए, आप हमसे बात सीधी कीजिए,
सिर्फ सुविधा शुल्क देते जाइये, कार्य सुविधाजन्य बनता जाएगा।
अब हमें कानून मत सिखलाइये, खेलते हैं रोज़ हम कानून से
आप चाहेंगे तो सुलझेगा हितेश, बेरूखी से यह उलझता जाएगा।
हम यहां कानून हैं कानूनदां, खाली-पीली कुछ कहो बेकार है,
बेवज़न काग़ज़ अगर रहने दिया, हवा में हर तर्क उड़ता जाएगा।
आप तो यों भी बहुत हुशियार हैं, बात भी समझें इशारों में ज़रा
ग़र समझ जायेंगे तो सच जानिये, पेचों-खम भी आप खुलता जाएगा।
अपने ह़क में चाहते हैं आप तो, कुछ हमारा ह़क हमें भी दीजिए।
जो हवाएँ आपके विपरीत हैं, उनका रूख स्वमेव मुड़ता जाएगा।
यह मुकदमा ऐसे, तय होगा नहीं, उम्र नाकाफी पड़ेगी आपकी
सिर्फ तारीखें मिलेंगी आपको, फैसला हर रोज टलता जाएगा।
– हितेश कुमार शर्मा
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