चेहरे पर उभरी सलवटें,
करवट लेता हुआ बिस्तर,
कयामत की रात रही होगी।
आँखों में सलवटें आ गयीं
चेहरे का रंग सुर्ख हो चला
ख़्वाब सारे भीगने से लगे।
आँखों पर लम्हों के फ़ाहे रख कर सो गये हो
पलकों में उनींदी नींद की कतरने दबा लीं
अहसास के साये ना जीने दें ना मरने दें
इन चराग़ों को गुल कर दो टिमटिमाने लगे हैं
बहुत दूर जाना इन्हें है रास्ता बहुत लम्बा
आँखों की रोशनी से देखेंगे अब जहां को
- बी. एल. अग्रवाल “स्नेही’
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