मैं एक अपराधी हूँ
और मेरा अपराध है
मेरा प्रेम, मेरी पूजा।
मैंने प्रेम किया है, इंसान से
मैंने पूजा है, मानव को
यही मेरा अपराध है
मैंने पूजा नहीं किसी
पत्थर को,
प्रेम नहीं किया, किसी
पत्थर से।
मैं अपराधी हूँ क्योंकि
मैं छुपाना नहीं जानता
मैं साधु कहलाता, अगर
छुपाना जानता।
अपराधी हूँ क्योंकि
मैं सच बोलता हूँ,
अपराधी हूँ क्योंकि
मैंने विश्र्वास किया है,
इंसानियत पर।
मैं एक मूर्ख हूँ, क्योंकि
मैं भावुक हूँ,
सच, प्रेम, इंसानियत, विश्र्वास
ये सभी हैं मेरे,
वो अपराध जिसके लिए मैं एक
अपराधी हूँ, एक
कैदी हूँ, इस
समाज की नज़रों में।।
– नित्यानंद गायेन
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