पेशे से पत्रकार मिस्टर अरविंद शर्मा शाम को जब लौटकर घर आते हैं तो उन्हें टेलीविजन पर समाचार या समाचार आधारित करेंट अफेयर्स के प्रोग्राम देखने की इच्छा होती है, लेकिन उनके दोनों बच्चे स्कूल से लौटकर आने के बाद एक बार टीवी का रिमोट अपने हाथ में ले लेते हैं तो उसे रात को सोने पर ही छोड़ते हैं। कितना भी जरूरी क्यों न हो, वह थोड़ी भी देर टीवी न देखने की बात से समझौता नहीं करते। नतीजतन, परेशान होकर मिस्टर अरविंद को अपने लिए एक अलग टेलीविजन सेट खरीदना पड़ा। इसप्रकार, उन्होंने एक बार तो इस समस्या से छुटकारा पा लिया।
हम में से ज्यादातर माता-पिता अ़कसर इसी तरह की भूल कर बैठते हैं। स्वयं टीवी प्रोग्राम देखने की इच्छा, मॉं द्वारा अपने पसंदीदा सीरियल देखने की इच्छा और बच्चों के द्वारा पसंदीदा कार्टून प्रोग्राम देखने की ललक- इन तमाम वजहों से लोग बच्चों के लिए अलग टीवी सेट का इंतजाम करते हैं। लेकिन इसके भी नतीजे अच्छे नहीं होते। अगर बच्चों के कमरे में अलग टीवी हो जाता है तो वह देर रात तक टीवी देखते रहते हैं, दूसरी ओर अपने बेडरूम में सोये माता-पिता को लगता है कि बच्चा सो गया है। कई ऐसे चैनल हैं जो देर रात के प्रोग्रामों में इस तरह की चीजें दिखाते हैं जो बच्चों के लिए सही नहीं होतीं, फिर भी बच्चे उन्हें देखते हैं। इसके अलावा देर रात तक टीवी देखने के कारण बच्चों की नींद पूरी नहीं हो पाती। वह सुबह देर से उठते हैं, जिससे उनकी पढ़ाई में भी बाधा आती है।
बहरहाल, टीवी देखने की आदत माता-पिता और बच्चों- दोनों के लिए एक बड़ी परेशानी का कारण बनती जा रही है। ऐसे में माता-पिता बच्चों के रूटीन को किस ढंग से चलाएँ जिससे वह टीवी के प्रोग्राम कम देखकर अपने आपको दूसरी गतिविधियों में लगाएँ?
माता-पिता को चाहिए कि वह प्रतिदिन बच्चों के लिए टीवी देखने के समय का निर्धारण करें। सबसे ज्यादा ध्यान देने योग्य बात यह है कि बच्चे टीवी कम देखें- इसके लिए जरूरी है कि माता-पिता भी टीवी कम देखें। हर समय टीवी देखने के बजाय स्वयं को और बच्चों को अन्य गतिविधियों में लगाएँ। बच्चे जो प्रोग्राम देखते हैं, उन्हें स्वयं भी देखें और यदि वह बच्चों के लिए उचित न हो तो इसके बारे में बच्चों से बात करें। अपने टेलीविजन सेट को बेडरूम में न रखें बल्कि ड्राइंग रूम में रखें। इससे भी बच्चों की ज्यादा टीवी देखने की आदत को कम किया जा सकता है।
यदि आपके प्रयासों से बच्चों के टीवी देखने की आदत पर नियंत्रण हो जाता है, तो बच्चे खाली समय में क्या करें? इसके लिए भी एक शेड्यूल बनाएँ। बच्चों को हॉबी क्लास में डालें, जिससे वह अपने आपको टीवी के उबा देने वाले प्रोग्रामों से अलग हटकर दूसरे बच्चों के साथ मिलें-जुलें, उनके साथ अपना समय गुजारें।
कई माता-पिता यह सोचकर राहत की सांस लेते हैं कि बच्चे टीवी पर सिर्फ कार्टून नेटवर्क जैसे चैनलों के ही प्रोग्राम देखना पसंद करते हैं। परन्तु इन प्रोग्रामों में भी लगातार हिंसा दिखाई जाती है। अब टीवी पर दिखाए जाने वाले प्रोग्राम “शिनचैन’ को ही लें। इस प्रोग्राम का किरदार शिनचैन एक नटखट बच्चा है जो अपनी गतिविधियों से हर समय अपने माता-पिता को परेशानी में डाले रहता है। इस प्रोग्राम के अधिकतर डायलॉग अश्लील किस्म के हैं और शिनचैन की शरारतें तो बच्चों को उसके जैसा शरारती बनने के लिए उकसाती हैं। कार्टून नेटवर्क पर दिखाए जाने वाले “टॉम एंड जैरी’ में दोनों कैरेक्टर हर समय एक-दूसरे को मारते-गिराते रहते हैं। ऐसे में बच्चों को बताना जरूरी है कि इस तरह के चरित्रों से वह भला क्या सीख ले सकते हैं? बच्चों को इन चैनल से थोड़ा दूर करके, डिस्कवरी, नेशनल ज्योग्राफी और इसी तरह के अन्य चैनलों को देखने के लिए प्रोत्साहित करें। इसके लिए जरूरी है कि स्वयं भी इन चैनलों के प्रोग्रामों के प्रति अपनी रूचि जगाएँ।
बच्चे टीवी देखते समय सही मुद्रा में बैठें- यह उनके शारीरिक, मानसिक विकास के लिए बेहद जरूरी है। जहॉं तक हो सके, टीवी बैठकर देखना चाहिए। यदि टीवी देखने के स्थान पर इस तरह का फर्नीचर रखा जाता है जिसमें टांगे लंबी करके टीवी देखा जाए या लेटकर टीवी देखा जाए, तो ऐसी स्थिति में बच्चा लंबे समय तक टीवी के आगे आराम की मुद्रा में लेटा रहता है। बच्चे को इस स्थिति से बचाएँ।
– नंदना गौर
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