सफल और सुखी जीवन के लिए न सिर्फ एक दिन बल्कि साल के सभी दिन वेलेंटाइन-डे के समान होने चाहिए। समाजशास्त्रियों और मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक सफल और सुखी जीवन का एक ही आधार है, प्यार। लेकिन सवाल है कि प्यार की डोर किस तरह मजबूत बनी रहे जिससे हमेशा-हमेशा के लिए वेलेंटाइन-डे वाली अनुभूति बनी रहे। यूं तो मनोविद कहते हैं कि प्यार करना किसी को सिखाना नहीं पड़ता। यह एक मन की भावना होती है और मन की भावना प्रकट होने के लिए अपना तरीका ढूंढ़ ही लेती है। आदमी तो आदमी, जानवर, पक्षी और वनस्पतियां तक प्यार के इजहार के रास्ते ढूंढ़ लेती हैं। फिर भी प्यार की डोर कमजोर न हो, इसके लिए अगर कुछ उपाय आजमायें तो सोने पर सुहागे जैसी स्थिति होगी।
समर्पण प्यार का बुनियादी आधार है। भले आपको प्यार करने की कला न आती हो, भले आपको मीठे-मीठे शब्द बोलने न आते हों, भले आप में ऐसा आकर्षक कौशल न हो, जो दूसरे को खासतौर पर विपरीत लिंगी को सहज ही आकर्षित कर ले, तो भी समर्पण वह कला है जो ऐसे तमाम कौशलों पर भारी पड़ती है। अगर आप किसी के प्रति समर्पित हैं तो वह आपको एक न एक दिन प्यार करेगा ही, अगर आप समर्पित पिता हैं तो आपके बच्चे आपसे प्यार करेंगे ही, अगर आप समर्पित खिलाड़ी हैं तो आप पारंगत बनेंगे ही, अगर आप समर्पित कर्मचारी हैं तो बॉस के प्रिय होंगे ही। इसलिए प्यार के इस बुनियादी आधार समर्पण की कीमत समझिए। समर्पण के बिना कुछ भी संभव नहीं है।
कहते हैं, हर गलती की काट है। हर गलती को सुधारा जा सकता है बशर्ते उसके प्रति आपका नजरिया सकारात्मक और रचनात्मक हो। अगर आप चाहते हैं कि आपका साथी आपकी बातें सुने, उस पर विचार करे तो यह जरूरी है कि वह आपकी जिन बातों से इत्तेफाक न रखता हो या जिन बातों को वह सही न मानता हो अथवा आपको उसकी जो बात सही न लगती हो उसके लिए यह तरीका अपनाएं कि अपनी नापसंद को कागज पर लिखें। दो दिन बाद फिर उसे पढ़ें। अगर अभी भी आपका नापसंदगी का नजरिया पहले जैसा ही है तो उसे यानी उस कागज को ऐसी जगह रख दें जिस पर आपके साथी की उठते-बैठते नजर पड़ जाए। इससे वह अपनी गलतियों पर जरूर सुधार करने की कोशिश करेगा। समय के साथ खुद को बदलने की कोशिश ही आपसी रिश्तों को मजबूत करने में खास भूमिका निभाती है। इसलिए गलती को सुधारने या सुधरवाने के लिए सही रास्ते, सही तरीके का चयन करें।
कुछ लोगों को लगता है कि प्यार के शुरूआती दौर में हम अक्सर बचकानी हरकतें किया करते हैं। इसलिए ज्यों-ज्यों हम अनुभवी होते जाते हैं, मैच्योर होते जाते हैं, हमारी हरकतें बदलती रहती हैं, हमारे प्रतििाया के ढंग बदलते रहते हैं। मनोविदों का मानना है कि यह गलत सोच व धारणा है। प्यार में न तो कोई परिपक्व होता है और न ही अनुभवी। जिन्हें हम शुरूआती प्रेम की बचकानी हरकते कहते हैं, वे हमेशा आकर्षक और चुंबकीय बनी रहती हैं। इसलिए इन हरकतों को कभी नहीं छोड़ना चाहिए। मसलन, जो प्रेमी-प्रेमिका शुरू में जरा-जरा-सी बात पर एक-दूसरे को विश करते हैं, लाल सुर्ख गुलाब देते हैं वही बाद में पति-पत्नी हो जाने पर ये बचकानी हरकतें कभी नहीं दोहराते। जबकि मनोविद मानते हैं कि ऐसी हरकतें हमेशा दोहराते रहना चाहिए। इससे प्रेम जिंदा रहता है और जीवंत बना रहता है।
कुछ लोग कहते हैं कि पति-पत्नी बन जाने के बाद उन्हें इजहार-ए-इश्क का मौका ही नहीं मिलता। दुनिया भर की समस्याएं उन्हें घेरे रहती हैं। वह अपनी समस्याओं से ही छुटकारा नहीं पाते तो इजहार-ए-इश्क कैसे करें? समाजशास्त्री और मनोविद इस बहाने में भी कोई दम नहीं देखते। उनके मुताबिक वास्तव में दिल भर जाने का कारण समय का अभाव नहीं है। सच तो यह है कि लोग समय को एक बहाने के तौर पर इस्तेमाल करते हैं। मनोविद सुझाते हैं कि अगर आपको वाकई समय नहीं मिलता इजहार-ए-इश्क का तो कुछ ऐसी गतिविधियों को साथ-साथ दोहरायें, जिससे कि समय की जरूरत भी न पड़े और इजहार-ए-इश्क के लिए वक्त भी मिल जाए। उनके मुताबिक साथ-साथ एक्सरसाइज करें, वीकेंड पर पिकनिक बनाने का कार्याम बनाएं। घर के तमाम कामों में एक-दूसरे का हाथ बटाएं। मसलन- शॉपिंग, गार्डनिंग और खाना बनाने जैसे काम मिलकर करें। इससे आपको समय ही समय मिल जाएगा। इस सबके अलावा मनोविदों के मुताबिक प्रकृति से जुड़ें, क्योंकि प्रकृति ऊर्जा का स्रोत है। यह आपके दिल-दिमाग को तरोताजा रखती है साथ ही रिश्तों में नयी जान फूंकने के लिए यह अपने आकर्षण का जादू भी चलाती है।
– नम्रता नदीम
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