सास-बहू में तनातनी आजकल घर-घर की कहानी है। कहावत है, दो बर्तन होंगे तो खड़केंगे ही। मतभेद कहॉं नहीं होते, किंतु दिलों में दूरी नहीं होनी चाहिए, फिर सावित्री का तो एक ही बेटा है। ऐसे में वह बहू-बेटे और पोतों से अलग होने की बात सोच ही नहीं सकती। यही कारण है कि अक्सर बहू के गलत व्यवहार पर भी वह चुप्पी साध जाती है। मगर आज जो कुछ उसने बहू की जुबानी अपने कानों से सुना, उसके पैरों तले से धरती खिसक गयी। बहू अकेले में कामवाली से कह रही थी, “”तू बुढ़िया की चिक-चिक की परवाह मत किया कर। मैं तुझे पचास रुपये अलग से दूंगी। बस तू भगवान से दुआ कर मेरे पति अलग रहने के लिए तैयार हो जाएँ।” जिसके भले के लिए वह दिन-रात भगवान से दुआ करती है, वही उससे दूर रहने के लिए दुआ करती-करवाती है। इस सच का सामना होने पर ऐसा लगा, जैसे सावित्री की सांस ही रुक गई। वह चुपचाप बिस्तर पर निढाल-सी पड़ गई।
– आशा खत्री “लता’
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