अद्वैत दर्शन के प्रवर्तक आद्यशंकराचार्य ने देश की चार दिशाओं में चार पीठ स्थापित किये थे। उनके द्वारा दक्षिण में स्थापित श्रृंगेरी पीठ पहला है।
कर्नाटक में जिला चिकमंगलूर में तुंगा व भद्रा नदियों के संगम-स्थल पर रमणीक पर्वतमाला के बीचोंबीच श्रृंगेरी तीर्थ महर्षि ऋष्यश्रृंग की साधना स्थली के कारण देश के प्रमुख तीर्थों में अग्रणी स्थान रखता है। अयोध्या के महाराज दशरथ ने पुत्रकामेष्ठि यज्ञ ऋषिराज श्रृंग की उपस्थिति में आयोजित कराया था। इसी कारण श्रृंगेरी प्राचीनकाल में श्रृंगगिरी तथा ऋष्य श्रृंगपुर के नाम से विख्यात रहा। महर्षि विमांडक के पुत्र ऋष्यश्रृंग की साधना व उनके चमत्कारों की अनेक घटनाएं इस तीर्थ से जुड़ी हुई हैं। श्रृंगेरी से 10 कि.मी. दूर किग्गा नामक अत्यंत सुरम्य स्थान पर वह दिव्य शिवलिंग अभी भी है, जिसकी ऋष्यश्रृंग आराधना करते-करते शिवलिंग में ही विलीन हो गए थे। महर्षि विमांडक द्वारा पूजित शिवलिंग श्रृंगेरी की पहाड़ी पर स्थापित है तथा उसे मलहानिकरेश्र्वर महादेव के नाम से जाना जाता है।
आद्यशंकराचार्य देश के प्रत्येक राज्य में धर्म प्रचार करते हुए, जब श्रृंगेरी पहुंचे तो तुंग नदी के पावन तट पर एक अद्भुत दृश्य देखकर हतप्रभ रह गए, प्रसव पीड़ा से त्रस्त एक मेंढकी भीषण गर्मी में तपती रेत पर बैठी हुई थी। एक नागराज अपने फन से उसक मेंढकी को राहत पहुंचा रहा था। आचार्य शंकर को अनुभूति हुई कि अवश्य ही यह कोई दिव्य तीर्थ है, जहां सर्प अपने भोज्य मेंढकी की भी रक्षा करने के लिए तत्पर है। उन्होंने ऐसे दिव्य स्थल पर अपने प्रथम मठ की स्थापना करने का संकल्प किया। आचार्य शंकर ने अपनी 32 वर्ष की आयु में से 12 वर्ष इसी तीर्थ में साधना करते हुए बिताए। आदि शंकर ने तुंग नदी के मध्य एक चट्टान पर मूलतः यंत्र उत्कीर्ण कर चंदन की लकड़ी से निर्मित माता शारदांबा की कलात्मक प्रतिमा स्थापित कर भव्य मंदिर बनवाया। उन्होंने खपरैल की छत उतरवा कर पक्की छत बनवायी थी। आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित इस ऐतिहासिक मंदिर को 33 वें जगत्गुरु आचार्य सच्चिदानंद शिवाभिनव नृसिंह भारती जी ने भव्य रूप प्रदान करने का संकल्प लिया। सन् 1916 में मैसूर नरेश की उपस्थिति में जगद्गुरु चंद्रशेखर भारती जी ने श्री शारदा के भव्य मंदिर का अभिषेक कराया। भगवती श्री शारदा का यह ऐतिहासिक मंदिर, नाट्ट कोटि शैली का है। बड़े-बड़े पाषाण स्तम्भों पर आकर्षक रूप में उत्कीर्णत है।
श्री शारदांबा श्रीचा-यंत्र पर विराजमान हैं। उनके हाथों में अमरता का प्रतीक अमृत- कलश, ज्ञान की प्रतीक पुस्तक, बीजाक्षरों की प्रतीक अक्षमाला तथा जीव-ब्रह्म एक्य की प्रतीक चिह्न मुद्रा है। उनकी मुखाकृति, प्रकाश युक्त नेत्र और मुस्कान सहज ही दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देती है। सर्वज्ञ पीठ का प्रतिनिधित्व करने वाला दक्षिणाम्नाय व्याख्यान सिंहासन इसी मंदिर में है। श्री शारदा मठ के प्रत्येक आचार्य को तुरीय आश्रम में प्रवेश करते समय इसी सिंहासन पर विराजमान किया जाता है। श्रृंगेरी में विद्याशंकर मंदिर भी वास्तुकला का जीवंत प्रतीक है। मंदिर के प्रस्तरों पर योगशास्त्र, ज्योर्तिगणित तथा अन्य कलाओं का महत्व उत्कीर्ण है। महाविष्णु तथा जनार्दन के मंदिर भी दर्शनीय हैं। श्री मठ के प्राचीन भवन में आदि शंकराचार्य का मंदिर है। इन मंदिरों में भुवनेश्र्वरी, ब्रह्मा, गरुड़, हनुमान आदि की दिव्य प्रतिमाएं विद्यान हैं। श्री चंद्रमौलीश्र्वरी लिंग, रत्नगर्भ गणपति श्री चा यंत्र, स्फटिक मंत्र आदि के दर्शन कर तीर्थ यात्री धन्य हो जाते हैं।
श्रृंगेरी में प्रतिवर्ष अनेक उत्सव मनाए जाते हैं। वैशाख शुक्ल पंचमी को भी आद्य शंकराचार्य जयंती के उपलक्ष्य में पांच दिनों का महोत्सव मनाया जाता है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, विनायक चतुर्थी, श्रीशारदांबा अभिषेकोत्सव, नवरात्रि महोत्सव, महाशिवरात्रि आदि उत्सवों में देशभर के लाखों व्यक्ति सम्मिलित होते हैं। श्रृंगेरी के 12 वें शंकराचार्य स्वामी विद्यारण्य जी के कुशल नेतृत्व में मठ ने आध्यात्मिक, नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों को पुनर्जीवित करने में विशेष सफलता प्राप्त की। उन्होंने श्रृंगेरी व हम्पी में उनके मंदिरों का निर्माण कराया। उन्हीं की प्रेरणा से हरिहर और बुक्का नामक शासकों ने तुंगभद्रा नदी की बायीं ओर विजयनगर साम्राज्य की स्वतंत्र राजधानी स्थापित की।
श्री आद्यशंकराचार्य के उत्तराधिकारी विभिन्न आचार्यों ने मठ को सनातन धर्म, भारतीय संस्कृति, प्राचीन कला, वेद-वेदांगों के प्रचार-प्रसार का केन्द्र बनाने में सफलता प्राप्त की। श्रृंगेरी पीठ के आचार्यों में भी सुरेश्र्वराचार्य, श्री अभिनव नरसिंह भारती, श्री भारती तीर्थ आदि ने श्रृंगेरी को अत्यंत दर्शनीय तीर्थस्थल के रूप में विकसित करने में सफलता प्राप्त की। स्वामी अभिनव विद्यार्थी जी के सद्प्रयासों से श्रृंगेरी में श्री सुब्रह्मण्यम मंदिर, श्री शक्ति गणपति मंदिर तथा एक अस्पताल की स्थापना की गई। श्री तुंगा नदी पर बना श्री विद्यार्थी सेतु उनकी स्मृति का जीवंत स्मारक है। श्रृंगेरी देवताओं की ाीड़ाभूमि, आचार्यों की तपोभूमि व आद्यशंकराचार्य की साधना स्थली के रूप में इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
– कीर्ति
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