बच्चों का जन्म गर्भाधान के समय से ही माना जाता है। वह जन्म के बाद स्वतंत्र होता है, पर गर्भाधान से जन्म तक वह परतंत्र होता है। वह पूर्णरूप से माता पर ही निर्भर करता है। मां का आहार-विहार उस पर निश्र्चित रूप से प्रभाव डालता है। अगर मां का आहार ठीक नहीं है तो बच्चे का शारीरिक विकास भी ठीक से नहीं हो पाता। यदि मां का विहार ठीक नहीं है तो बच्चे का मानसिक विकास ठीक नहीं हो पायेगा। विशेषज्ञों के मुताबिक चतुर्थ मास से बच्चा अपनी इच्छाओं को मां के माध्यम से प्रगट करना प्रारंभ कर देता है। यदि इन इच्छाओं को पूरा न किया जाये तो बच्चे को शारीरिक व मानसिक विकार पैदा हो जाते हैं। इसलिए गर्भावस्था के समय स्त्री की इच्छा की पूर्ति करना आवश्यक माना जाता है। इससे जन्मजात व्याधियां नहीं होती हैं। जब बच्चा इस संसार में पदार्पण करता है तो उसके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण समय प्रथम घंटा होता है, क्योंकि संसार में सबसे ज्यादा मौतें इसी समय होती हैं।
इसके बाद प्रथम दिवस, प्रथम मास, फिर प्रथम वर्ष बहुत महत्वपूर्ण होता है। इसलिए इस काल में बच्चों की विशिष्ट देखभाल करनी चाहिए। प्रथम दिन शिशु को सोने की धातु से निर्मित शलाका से जिठा पर शहद का पान कराना चाहिए। ऐसा करने से बच्चे के पेट में गर्भावस्था के समय जो मल जमा होता है, वह आसानी से निकल जाता है। शहद जीवाणु के संक्रमण को नष्ट करता है और बल प्रदान करता है। इसके बाद माता को शिशु को स्तनपान कराना चाहिए। बच्चों को टीकाकरण समय पर करवाना चाहिए। इससे उसमें प्रतिरोधक शक्ति उत्पन्न होती है।
मात्र वैक्सीनेशन करा देने से रोगों से नहीं बचा जा सकता, इसलिए बल प्रदान करने वाली औषधियों का प्रयोग भी करना चाहिए जैसे कि दांत निकलते समय बच्चों के मसूड़ों पर शहद में सुहागा (फूल बनाकर) रगड़ना चाहिए। 9-12 माह के बच्चे को यदि कृमि रोग हो तो बच्चा रोता है, सोता नहीं है। उसके गुदा-द्वार के आसपास खुजली होती है और त्वचा लाल हो जाती है। इसके बचाव के लिये गुदा-द्वार पर मिट्टी का तेल लगाएं, बच्चा चैन से सो जायेगा। इस समय बच्चे को खिलौने देने चाहिए, जो सौम्य हों, देखने में सुन्दर हों, ज्यादा कठोर न हों ताकि बच्चे को चोट न आए। खिलौने साफ होने चाहिए। पढ़ने लायक बच्चे को ऐसे कॉमिक्स न दें, जिनमें हीमैन इत्यादि के चरित्र हों। कॉमिक्स के स्थान पर महापुरुषों का जीवन चरित्र पढ़ने के लिए देना चाहिए, जिससे अच्छे चरित्र का निर्माण हो सके। बच्चों को दूरदर्शन से भी दूर रखना चाहिए और वही कार्याम दिखाये जाने चाहिए, जो केवल बच्चों की मानसिक स्थिति पर विचार करके बनाये गये हों। इसलिए बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य की तरफ जरूर ध्यान दिया जाना चाहिए ताकि उसका मानसिक विकास अच्छी तरह से हो।
– डॉ. मनमोहन सिंह
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