मांगलिक होने को अशुभ ठहराया जाना अनुचित है

धनिष्ठा नक्षत्र – 27 नक्षत्रों के क्रम में 23वें स्थान पर आने वाला यह नक्षत्र, राशि-चा की कुल डिग्री के 293.20 डिग्री से लेकर 306.40 डिग्री तक तथा मकर राशि के 23.20 डिग्री से कुम्भ राशि के 6.40 डिग्री के मध्य समाता है। इसे अंग्रेजी भाषा में “डेलफिनम’, अरबी भाषा में “साद-अस-सूद’ तथा चीनी भाषा में “हय’ के नाम से जाना जाता है। इस नक्षत्र में तारों की संख्या चार होती है, जो आकाश में ढोलक के आकार की-सी आकृति में दिखते हैं। अक्तूबर माह के अंतिम भाग में रात को 8 से 9 बजे के बीच मध्याकाश में इसे देखा जा सकता है। इस नक्षत्र की विशेषता यह भी है कि धनिष्ठा एवं श्रवण, दोनों नक्षत्रों के बीच आकाशगंगा दिखाई देती है। दूरबीन से देखने पर धनिष्ठा नक्षत्र अत्यंत मनोरम दिखाई देता है। धनिष्ठा नक्षत्र के अधिष्ठाता देवता “अष्ट वसु’ माने गये हैं, जो इस प्रकार हैं – धरा, ध्रुव, सोम, विष्णु, अनल, अनिल, प्रत्युस एवं प्रोवास। बंगाल में मान्यता है कि वासु गंगा नदी से पैदा हुए हैं। धनिष्ठा नक्षत्र की ज्योतिषीय दशा-महादशा का स्वामी ग्रह मंगल है, अर्थात् इस नक्षत्र में उत्पन्न जातक की प्रारंभिक विशोंतरी महादशा “मंगल’ की होगी।

(ग्) शारीरिक गठन – सामान्यतः जातक लम्बे कद का तथा पतले शरीर का होता है।

(ग्ग्) स्वभाव एवं सामान्य घटना – जातक अपने प्रत्येक कार्य में दक्ष होता है। वह तेज दिमाग, बुद्घिमान एवं ज्ञानवान होता है तथा मन, वचन एवं कर्म से किसी को कष्ट नहीं देता। अंतिम क्षण तक वह किसी के प्रति अपनी नापसन्दगी को प्रकट नहीं करता। जिस प्रकार हाथी अपने पर वार को चुपचाप सह लेता है तथा अवसर मिलने पर शत्रु को असावधान पाकर कुचल देता है, उसी प्रकार धनिष्ठा नक्षत्र के जातक अपने शत्रु पर वार करने के लिए उचित अवसर की प्रतीक्षा करता है।

 

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