“टुकड़ों में प्रेम कहानी’
पुस्तक – “टुकड़ों में प्रेम कहानी’
कहानीकार – शिव नाथ
प्रकाशन – रणविजय प्रकाशन, गा़िजयाबाद
मूल्य – 150 रुपये मात्र।
मानवीय संवेदनाओं, प्रेम की पवित्रता और जीवन की कड़वी हकी़कतों को प्रतिबिंबित करती, युवा कहानीकार शिव नाथ की प्रथम कृति “टुकड़ों में प्रेम कहानी’- शीर्षक के अनुरूप छोटे-छोटे टुकड़ों में विभक्त होते हुए भी समग्रता की कसौटी पर खरी उतरती है। आम आदमी की ा़र्ंिजंदगी से जुड़ी उलझनों, ़गलतफहमियों और परेशानियों को आधार बनाकर रची गई यह कृति सरल भाषा-शैली के सहारे पाठक को पात्रों के ईर्द-गिर्द ला खड़ा करती है।
लेखक ने स्त्री पात्रों पर केंद्रित इन कहानियों में न केवल बाल-मनोविज्ञान से लेकर प्रेमी युगल के भावनात्मक संबंधों तथा पति-पत्नी के प्रगाढ़ प्रेम से लेकर वृद्घावस्था तक के लंबे सफर तक को अपनी माला में पिरोने का सार्थक प्रयास किया है, बल्कि जीवन में कदम-कदम पर मुँह बाये खड़ी छोटी-बड़ी मुश्किलों का प्रभावशाली चित्रण कर कथानक को सामाजिक दृष्टि से भी उपयोगी बनाया है। “टुकड़ों में प्रेम कहानी’ की कुछ कहानियॉं – जैसे “सपना’, “अपराजिता’, “अर्पिता’, “कुसुम’, “संध्या’ – प्रत्यक्ष/परोक्ष रूप से सामाजिक संदेश भी प्रतिपादित करती हैं। जहॉं “सपना’ कहानी के अंत में नायिका का कथन- “पापा के पैसे से एक कौड़ी भी नहीं लूँगी’- दहेज प्रथा पर सीधे चोट करता है, वहीं “अपराजिता’ सामाजिक रूढ़ियों का डटकर सामना करने की प्रेरणा देती है। इन पात्रों में समर्पण के साथ-साथ आत्म-सम्मान की गूंज है।
शिव नाथ की कृति का हर अध्याय पाठक को कुछ सीख देता है, जैसे “सागरिका’ के नायक का कहना- “”अपनी भावनाओं को बिना किसी आवरण के व्यक्त कर ही देना चाहिए।” इनकी कहानियॉं सिर्फ आदर्शों का ढिंढोरा ही नहीं पीटती हैं, इनके पात्रों में मानव स्वभावगत कमजोरियॉं भी हैं- “भाग्या’ के नायक-नायिका द्वारा सबको अपना रिश्ता भाई-बहन का बताना, पर साथ ही यह स्वीकार भी करना कि “”अब चूंकि हमने गलती की है, इसलिए चुप रहते हैं। सच्चाई तो यह है कि मुझमें और विपुल- दोनों में ही साहस की कमी है।” “टुकड़ों में प्रेम कहानी’ का एक सकारात्मक पहलू यह है कि इसमें रिश्तों को प्रगाढ़ करने में सक्षम भाषा का सरल स्वरूप प्रयुक्त किया गया है, जो विभिन्न आयु वर्ग के पाठकों में पात्रों के प्रति सहानुभूति पैदा करता है। पात्रों को अतीत की स्मृतियों में भेजकर कहानियों में रोचकता का रंग भरा गया है। एकाध अवसर पर (कहानी “अर्पिता’ में अक्षित के घर न लौटने के कारण का कहानी के अंत में खुलासा) घटनाओं का धुंधला वर्णन पाठक को सोचने को मजबूर कर देता है, किंतु निश्चित रूप से इसके पीछे लेखक ने बदली हुई सामाजिक परिस्थितियों को रेखांकित करने का यत्न किया है।
“शुभा’ में पति-पत्नी के बीच विश्वास की ़जरूरत को सरलता से प्रस्तुत किया गया है, साथ ही दांपत्य जीवन में आवश्यक विश्वास को पुनर्परिभाषित भी किया गया है। दूसरी ओर, “कुसुम’ बचत की ओर संकेत करते हुए फ़िजूलखर्च रोकने की सीख देती है। इस कहानी के पात्र (पति-पत्नी) सुखद जीवन और दैनंदिन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किस तरह अपने सपनों/शौकों के साथ समझौता करने को विवश हो जाते हैं- यह हकीकत के बहुत नजदीक जान पड़ता है।
कहानियों के पटाक्षेप भी विविधता के पैमाने पर सटीक बैठते हैं। कहीं सकारात्मक समापन, तो कहीं मजबूरियों में बंधे पात्रों की विरह वेदना से युक्त अंत- कहानियों को यथार्थ में स्वीकार्य बनाते हैं। संक्षेप में कहा जाए तो शिव नाथ की “टुकड़ों में प्रेम कहानी’ एक सरस संग्रह है। इनके पात्र अपने आस-पास के ही लगते हैं। कहानियों में आम आदमी की आकांक्षाएँ और स्वप्न मुखरित होते हैं। यही कारण है कि पढ़ते समय पाठक इनसे आंतरिक ज़ुडाव महसूस करता है।
– महावीर जैन “हितेश’
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