एक उत्साही युवक ने जनसेेवा को ही अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया। वह कहता था कि पीड़ितों का दुःख दूर करने और उन्हें खुश करने में जो संतुष्टि मिलती है, वह अपने स्वार्थ को पूरा करने में नहीं मिलती। एक बार वह युवक सख्त बीमार पड़ गया। जांच के बाद डॉक्टरों ने बताया कि वह छः महीने से ज्यादा जीवित नहीं रह पाएगा। इस पर वह युवक दुःखी होने की बजाय और प्रसन्न होता हुआ बोला, “”मुझे छः महीने तक जीने की जो मोहलत मिली है, उसका सदुपयोग करते समय मुझे कम से कम यह संतोष तो होगा कि मैंने सार्थक जिंदगी जी ली।” उसने एक आश्रम में रहकर विकलांग बच्चों की सेवा शुरू कर दी। वह उन्हें पढ़ाने-लिखाने में जुट गया। इस काम में छः महीने बीत गये और उसे पता भी न चला। जब लोगों ने उसके जीवन की अवधि बीत जाने की बात कही तो वह बोला, “”मैंने इन बच्चों के लिए अपनी जिंदगी लगा दी। मैं अपनी उम्र के महीने नहीं गिनता।” वह युवक जेम्स एडम्स था, जो बाद में अस्सी वर्षों तक जीवित रहा। वह आश्रम आज भी जेन एडम्स के नाम से मशहूर है।
– गौरव गर्ग
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