कांवड़ अत्यंत पवित्र एवं अन्तरमन के सच्चे प्रेम की प्रतीक मानी जाती है। यह भावनाओं की डोर है, गंगा मैया के आंचल का छोर है। अपने मन की निश्र्चल चेष्टाओं का निचोड़ है। कांवड़ से जुड़ी अनेक भावनाएँ हैं। मान-सम्मान, संस्कार माता-पिता की सेवा इत्यादि। कांवड़ से संबंधित श्रवण कुमार की पौराणिक कथा प्रसिद्घ है।
भारत की पवित्र भूमि पर ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं। यह तो हुई संासारिक नेकी-बदी की घटना, जो एक नहीं अनेक हैं। ऐसी घटनाओं से मन विचलित हो जाए तो चलिये शिव-भक्ति में। भगवान शिवशंकर भोले नाथ परम दयालु हैं। उन्हें गंगाजल अति प्रिय है, जिसे यदि कोई भक्त सच्चे मन से शिव भोले पर चढ़ाता है तो समझो, उस भक्त ने शिव को पा लिया। शिव शक्ति स्वरूप हैं। शिव तारक हैं। शिव संहारक हैं। शिव सारे संसार को अपनी जटाओं में समेटे हुए हैं। तो क्यूं ना हम भी भोलेनाथ को प्रसन्न करने उनकी पूजा-आराधना करें। शिव भोले को गंगाजल चढ़ाएँ। जो भक्त मीलों दूर से पैदल चल कर, कांवड़ में तांबे के पात्र में गंगाजल लाकर भोलेनाथ पर चढ़ाता है, उस भक्त की सभी मनोकामनाएं शिव भोलेनाथ पूर्ण करते हैं।
1998 में प्रथम कांवड़ पद-यात्रा प्रारंभ हुई। इस कार्य के लिये एक संस्था की स्थापना की गई। इस संस्था का नाम “भाग्यनगर कांवड़ सेवा संघ’ रखा गया। आज हजारों शिव भक्त “भाग्यनगर कांवड़ सेवा संघ’ की पद-यात्रा का महीनों पहले से इन्तजार करते हैं।
हैदराबाद में कांवड़ कब और कहॉं चढ़ाई गई, इसका विवरण प्रस्तुत है।
1998- संघ ने पहली बार “श्याम सुमन संस्था’ के साथ 215 किलोमीटर की पद-यात्रा तय की थी। अनेक भक्तों ने मार्ग में इसका भव्य स्वागत किया।
1999- नगर द्वय के भक्तों को प्रोत्साहित करने हेतु, संघ ने भाग्य नगर में 25 किलोमीटर की पद-यात्रा की, जिसमें करीब 800 भक्तों ने कांवड़ उठा कर पद-यात्रा की।
2000-तीसरी कांवड़ पद-यात्रा में लगभग 400 भक्तों ने कांवड़ उठाई एवं हजारों भक्तों ने अपनी सेवाएँ दीं।
2001-चौथी कांवड़ यात्रा बेगम बाजार रामनाथ आश्रम से शुरू हुई और चिल्कुर बालाजी मन्दिर तक पहुँची। कांवड़धारी कांधे पर कांवड़ उठाये नाचते-गाते हुए चलते चले, जिससे उन्हें दूरी का पता ही नहीं चला। वे तो बस “शिव भोले’, “बमबम भोले’ कहते हुए चलते चले।
2002-पांचवीं कांवड़ यात्रा का आयोजन श्याम मंदिर काचीगुड़ा से किया गया। यह पद-यात्रा श्री चेन्नया शिव मठ तक गई।
2003-छठवीं कांवड़ यात्रा पातालेश्र्वर आंजनेय स्वामी मंदिर नाचारम से निकल कर केसरगुट्टा स्थित ऐतिहासिक शिव मंदिर तक पहुँची।
2004-सप्तम विशाल कांवड़ यात्रा हरिभवन, चारकमान से प्रारंभ होकर मच्छलेश्र्वर महादेव मन्दिर पहुँची। इस कांवड़ यात्रा में लगभग 600 कांवड़िये “हर-हर महादेव’ कहते हुए, मन्दिर तक पहुँचे और हजारों भक्तों ने उनका उत्साह बढ़ाया।
2005-अष्टम कांवड़ यात्रा अत्यंत विशाल रूप ले चुकी थी। यह यात्रा 14 अगस्त को महबूबगंज स्थित अग्रवाल भवन से प्रारंभ होकर श्रीरामचन्द्र देवालयम् पहुँची।
2006-नवम विशाल कांवड़ पद-यात्रा चारकमान के हरिभवन से प्रारंभ होकर जीडिमेटला गांव में स्थापित अत्यन्त प्राचीन शिव मन्दिर पहुंची, जिसमें 711 कांवड़ियों ने श्रद्घापूर्वक शिव भोले का गंगाजल से अभिषेक किया।
2007-दशम कांवड़ यात्रा 26 अगस्त को हरिभवन से प्रारंभ होकर करमनघाट पहुंची। वहां स्थित विशाल मन्दिर के प्रांगण में अनेक देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं। कहा जाता है कि जब औरंगजेब की सेना ने इस मन्दिर को ध्वंस करना चाहा तो चारों ओर अतितीव्र प्रकाश फैल गया, जिससे सैनिक भय खाकर भाग पड़े। उन्हें एक भयंकर आवाज भी सुनाई पड़ी कि भागते क्यों हो, मचाओ मर घट।
संघ के सभी पदाधिकारियों एवं कार्यकर्ताओं का एक ही उद्देश्य रहता है कि कांवड़ यात्रा सुगम एवं मनोरंजक हो। इस यात्रा में शिव-पार्वती के स्वरूप को मानव-झांकियों द्वारा दर्शाया जाता है। घोड़े, बग्गियों, गाजेबाजों के साथ मानव-झांकियों के बीच कांवड़ यात्रा अपने गन्तव्य तक पहुँचती है।
भारत की पवित्र भूमि पर नारद जी के कहने पर रावण ने हरिद्वार से गंगाजल लाकर कैलाश पर्वत तक पद-यात्रा की थी। बालोत, देवघर, महेन्द्रगढ़, सुल्तान इत्यादि स्थानों से भी हजारों की संख्या में भक्त बैजनाथ धाम पर कांवड़ द्वारा गंगाजल लाकर भगवान भोलेनाथ को समर्पित करते हैं। और हर श्र्वांस से बोल बम बमबम का उच्चारण करके शिव भोले के प्रति अपनी श्रद्घा और विश्र्वास दर्शाते हैं। अपनी मनोकामना पूर्ण होगी, ऐसा दृढ़ निश्र्चय भक्तों के मन में रहता है। तो फिर क्यूं ना यहां दक्षिण भारत में हम-आप भक्त एवं कार्यकर्ता एक-दूसरे के सहयोगी बनें। भोलेनाथ को मनाकर अपनी इच्छाओं की पूर्ति करें।
प्रति वर्ष की भांति इस वर्ष भी “भाग्य नगर कांवड़ सेवा संघ’ कांवड़-यात्रा का आयोजन कर रहे हैं। यह पद-यात्रा 3 अगस्त, 2008 को हमेशा की तरह हरिभवन से प्रातः 6.11 बजे प्रारंभ होगी, जो सांयकाल नारसिंगी स्थित सिद्घेश्र्वर अमृतधाम आश्रम पहुंचेगी। 4 अगस्त, सोमवार अर्थात श्रावणी तीज को ब्रह्म-मुहूर्त में कांवड़ियों द्वारा हरिद्वार व मानसरोवर से लाये गंगाजल द्वारा शिवभोले का अभिषेक किया जाएगा। शिव देवों के देव, चल अचल के स्वामी, कर्मानुसार सुख-दुःख देने वाले हैं। भोलेनाथ की शरण में जाकर शरणागत हो सभी भक्त पुण्यलाभ प्राप्त करें।
सिद्घेश्र्वर शिव मन्दिर अमृतधाम आश्रम शहर से 20 किलोमीटर दूर है। इस आश्रम का निर्माण 10 वर्ष पूर्व किया गया। आज यह आश्रम एक तीर्थस्थल बन गया है। यहां योग, साधना, वृद्घाश्रम, चिकित्सालय आदि अनेक सुविधाएँ उपलब्ध हैं। श्रीरामजी की 56 फुट ऊँची विशाल प्रतिमा व हनुमान जी की 16 फुट ऊंची प्रतिमा यहां का विशेष आकर्षण है। एक गौशाला भी है, जहां पर श्रीकृष्ण की संगेमरमर की प्रतिमा अत्यन्त मनमोहक है। इसके अतिरिक्त दो विशालतम मन्दिर हैं। एक मन्दिर में श्रीराम, लक्ष्मण, सीताजी की मूर्तियां हैं और दूसरे में सिद्घेश्र्वर महादेव बिराजते हैं। यहां स्वयंभू लिंग रूपी पाषाण धरती मां की गोद में समाया हुआ था, जिसके ऊपर एक स्वरूप देकर बड़े शिवलिंग का निर्माण किया गया। ऐसे सिद्घहस्त स्वयंभू शिवलिंग पर हम सभी को कांवड़िये बन हरिद्वार व मानसरोवर से लाये गये गंगाजल द्वार अभिषेक करके भोले शंकर को प्रसन्न कर मनवांछित फल पाना है। अतः 3 अगस्त को सिद्घेश्र्वर अमृत धाम आश्रम जरूर जाना है।
3 अगस्त को जय भवानी कीर्तन मंडल द्वारा भजनों की प्रस्तुति होगी। 4 अगस्त सुबह बह्म-मुहूर्त में गंगाजल व दूध से शिव भोले का अभिषेक किया जायेगा।
– पुष्पा वर्मा
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