पश्र्चिम के देशों में तेल को अब “ब्लैक गोल्ड’ या काला सोना कहा जा रहा है। यह भी कहा जा रहा है कि जिस तरह सारे संसार में सोने का मूल्य बेतहाशा बढ़ रहा है उसी तरह तेल का मूल्य भी। अमेरिका और यूरोप के प्रख्यात अर्थशास्त्री माथापच्ची कर रहे हैं कि आखिर तेल का मूल्य इतना बढ़ा क्यों? एक वर्ष पहले ही तेल का मूल्य बहुत कम था। वही आज 140 डॉलर प्रति बैरल बिक रहा है। कभी-कभी तो यह 145 डॉलर प्रति बैरल से भी ऊपर चला जाता है। आज की तारीख में कोई निश्र्चयपूर्वक नहीं कह सकता कि एक वर्ष बाद तेल का दाम अंतर्राष्टीय मंडी में क्या होगा?
सारे संसार में यह प्रश्र्न्न उठाया जा रहा है कि आखिर तेल का दाम इतना बढ़ा क्यों? इसमें कोई संदेह नहीं कि चीन और भारत जिनका आर्थिक विकास पिछले कुछ वर्षों में बहुत तेजी से हुआ है, वहॉं तेल की खपत बहुत अधिक बढ़ गयी है। चीन में तो भारत की अपेक्षा तेल की खपत कई गुना बढ़ गयी है। चीन के उद्योगपति बहुत ही चुस्त-दुरुस्त हैं और संसार में जहां भी उन्हें तेल प्राप्त हुआ वहीं खरीद लेते हैं। उदाहरण के लिए अभी हाल तक संसार के समृद्घ और विकासशील देश आीका में न तो तेल की खोज करते थे और न वहॉं से तेल भारी मात्रा में आयात करते थे। इस मौके का फायदा उठाकर चीन ने आीकी देशों में तेल की व्यापक खुदाई की और वहॉं से अकूत तेल अपने देश में आयात कर लिया। इस मामले में भारत निश्र्चित रूप से पिछड़ गया। यद्यपि आीका के साथ उसके संबंध बहुत पुराने हैं परंतु हाल के वर्षों में भारत ने आीकी देशों पर ध्यान नहीं दिया। इसलिए वहॉं से वह सस्ते तेल का आयात नहीं कर सका। आज तो आीकी देशों में भी तेल का मूल्य बहुत अधिक हो गया है।
अमेरिका में यह कहा जा रहा है कि संसार तेजी से बदल रहा है, परंतु तेल का मूल्य उससे भी अधिक तेजी से बदल रहा है। अमेरिका दूसरे देशों पर दोषारोपण करता है कि वहॉं तेल की खपत बढ़ गयी है परंतु प्रसिद्घ ब्रिटिश ऑयल कंपनी “बीपी’ ने एक प्रामाणिक सर्वे के द्वारा यह तथ्य प्रकाशित किया है कि अमेरिका में सारी दुनिया की आबादी के केवल चार प्रतिशत लोग रहते हैं और पूरे संसार में जितना तेल प्राप्त है उसकी एक चौथाई खपत अमेरिका में होती है। चीन और भारत की जनता प्रतिदिन जितने तेल की खपत करती है उसका दुगुना अमेरिका में होता है। अमेरिका एक अत्यंत ही धनी देश है और उसने कभी इस बात की परवाह नहीं की कि संसार की मंडियों में तेल का मूल्य कितनी तेजी से बढ़ रहा है। आज अमेरिका के सभी प्रसिद्घ अर्थशास्त्री और सांसद यही कह रहे हैं कि यदि अमेरिका की सरकार ने बिल क्ंिलटन और बुश के जमाने में जनता को यह चेतावनी दी होती कि आने वाले वर्षों में तेल की भारी किल्लत होने वाली है और उसका मूल्य बढ़ने वाला है तो निश्र्चित ही लोग तेल की खपत में किफायत करते और ऐसी गाड़ियों का प्रयोग करते जिनमें पेटोल या डीजल कम लगता हो, परंतु अब तो बहुत देर हो चुकी है।
कई प्रामाणिक सर्वे में कहा गया है कि तेल का मूल्य सारे संसार में इसलिए तेजी से नहीं बढ़ रहा है कि तेल का उत्पादन संसार में कम हो रहा है, बल्कि इसलिए बढ़ रहा है कि लोग सोचते हैं कि अगले पॉंच-दस वर्षों में संसार में तेल कम मिलने लगेगा। क्योंकि धीरे-धीरे तेल के कुएँ मध्य-पूर्व में सूख रहे हैं। इसी कारण बिचौलियों और “स्पेकुलेटर्स’ ने तेल खरीद कर भारी मात्रा में जमा कर लिया है जिससे स्वाभाविक रूप से उसका मूल्य बहुत अधिक बढ़ गया। पूरी छानबीन के बाद यह तथ्य प्रकाश में आया है कि जिस तरह लोग “रीयल एस्टेट’ या “शेयर’ में निवेश करते हैं, उसी तरह “स्पेकुलेटर्स’ तेल में निवेश कर रहे हैं। इन लोगों ने अपनी गतिविधियों से तेल का दाम बहुत अधिक बढ़ा दिया है। अमेरिका में राष्टपति पद के प्रत्याशी ओबामा ने कहा है कि ऐसा कानून बनना चाहिए जिससे इन “स्पेकुलेटर्स’ पर नकेल डाली जाये जिससे वे अपनी गलत हरकतों से सारी दुनिया के लोगों को तबाह नहीं कर सकें।
जब सारे संसार में यह शोर मचने लगा कि तेल का मूल्य आसमान छू रहा है तो तेल के एक बहुत बड़े उत्पादक देश सऊदी अरब के किंग अब्दुल्ला ने जद्दा में गत 22 जून को एक शिखर सम्मेलन इस समस्या पर विचार करने और कोई व्यावहारिक हल ढूंढ निकालने के लिए बुलाया। भारत के वित्तमंत्री और पेटोलियम मंत्री भी उसमें शरीक हुए। सबसे प्रभावशाली भूमिका ब्रिटेन के प्रधानमंत्री गार्डन ब्राउन ने निभाई। उन्होंने सऊदी अरब से कहा कि समय आ गया है कि वह तेल का उत्पादन बढ़ा दे। क्योंकि पर्याप्त मात्रा में तेल नहीं मिलने से सारे संसार में भयानक आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया है। विश्र्व के अन्य नेताओं ने भी सऊदी अरब से यही कहा और उसने पर्याप्त मात्रा में तेल का उत्पादन बढ़ा दिया। परंतु दुर्भाग्य की बात यह रही कि तेल का जितना उत्पादन सऊदी अरब ने बढ़ाया, ठीक उतना ही उत्पादन नाइजीरिया में कम हो गया क्योंकि वहॉं आतंकवादियों ने कई जगह तेल पाइपलाइनें उड़ा दीं। उसी तरह वेनेजुएला में भी आतंकवादियों ने तेल की सप्लाई रोक दी। उक्त शिखर सम्मेलन में ब्रिटिश प्रधानमंत्री गार्डन ब्राउन ने कहा कि मध्य-पूर्व के देश तथा संसार के अन्य देश जहां भरपूर तेल का भंडार है और जो संसार के अन्य देशों के तेल की जरूरत को पूरा करते हैं, उन्हें चाहिए कि वे ब्रिटेन तथा अन्य देशों में ऐसी योजनाओं पर निवेश करें जिनसे बिजली पैदा होती है। उदाहरण के लिए ऐसी योजनाएँ परमाणु बिजलीघर हैं या पन-बिजलीघर या हवा और सूरज की रोशनी से बिजली बनाने वाली योजनाएँ। क्योंकि संसार में तेल का भंडार सीमित है और वह बहुत जल्दी खत्म हो जायेगा। परंतु किसी भी देश ने गार्डन ब्राउन की सलाह पर ध्यान नहीं दिया और कोई भी इस तरह की योजना में निवेश करने को तैयार नहीं है।
जिस तरह से संसार में तेल का दाम बढ़ रहा है उसने अर्थशास्त्र के प्रसिद्घ नियम “मॉंग और आपूर्ति’ को पूरी तरह झुठला दिया है। यह सारे देशों की सिरदर्दी है कि आखिर इतनी तेजी से तेल का दाम क्यों बढ़ रहा है। जैसा कि सर्वविदित है, सारे संसार की अर्थव्यवस्था तेल पर आधारित है और तेल का मूल्य बढ़ जाने से प्रायः हर वस्तु का मूल्य बाजार में बढ़ जाता है और भयानक महंगाई आ जाती है। इसी कारण संसार के अनेक देशों में भयानक महंगाई आ गयी है। पश्र्चिम के देशों में महंगाई के खिलाफ जनता प्रायः हर बड़े शहर में प्रदर्शन कर रही है। भारत में भी महंगाई की दर बेतहाशा बढ़ गयी है जिससे जनता में बहुत रोष फैल गया है।
अमेरिका सहित पश्र्चिम के अनेक देशों में लोग तेल संकट को गंभीरता से ले रहे हैं। इन देशों में सबसे बड़ी चिंता यही है कि यदि तेल का मूल्य इसी तरह बढ़ता रहा तो आगामी सर्दी के महीनों में मध्यम और गरीब वर्ग के लोग अपने घरों को गर्म नहीं कर सकेंगे। कई बुजुर्ग महिलाओं ने अमेरिका के प्रसिद्घ टीवी चैनल “सीएनएन’ पर कहा कि बहुत जल्द वह समय आ रहा है कि या तो हम खाना खाएँ या घर को गर्म रखें। कठिनाई दोनों हालात में है।
अमेरिका और यूरोप के देशों में लोगों ने तेल की बढ़ती हुई कीमत की गंभीर समस्या को ध्यान में रखकर बड़ी गाड़ियों के बदले छोटी गाड़ियों में चलना शुरू कर दिया है और एक ऑफिस में जाने वाले एक मोहल्ले के लोग “कार पूलिंग’ कर रहे हैं जिसका अर्थ है कि लोग बारी-बारी से अपनी गाड़ी चलाएँगे और उसी गाड़ी में दूसरे सहयोगी भी ऑफिस जायेंगे। एक बात तो माननी ही होगी कि तेल का संकट सारी दुनिया में विकराल रूप धारण कर गया है। भारत के लिए यह संकट और भी भयावह है। आवश्यकता है कि हम एक-एक बूंद तेल को सुरक्षित रखें।
– डॉ. गौरीशंकर राजहंस
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