बाबोसा नाम मणि दीपधर

बाबोसा प्रभु तो सब जानते हैं कि भक्त को क्या चाहिए? फिर मांगना क्या? वह तो बिना मांगे ही देने वाले हैं। वह सब जानते हैं। अतः उस बाबोसा प्रभु से भक्त को कुछ भी कहने की आवश्यकता नहीं है। वह तो खुद भक्तों के लिए चिंतित हैं। भक्त को चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है। जो भक्त कहना चाहता है, वह सब बाबो सा जानते हैं। जैसे सागर कभी सीप में समाहित नहीं हो सकता, वैसे ही प. पूज्य बाबोसा के व्यक्तित्व का भी समाकलन करना दुष्कर है। वस्तुतः यत्र-तत्र सर्वत्र विराजने वाले बाबोसा महाराज हर स्थिति, हर काल में, हर भक्त अथवा इंसान के मार्गदर्शक बन कर खड़े हैं। केवल जरूरत है प्रेममय होकर उनको पुकारने की।

जहां बाबोसात्त्व है, वहीं उन्नति और प्रगति है। जहॉं कुटिलता है, वहीं अवनति है। बाबोसा तत्त्व, मानव यात्रा की सज्जनता और भलाई से परस्पर संयुक्त करने वाली विवेकजनित शक्ति है। बाबोसा के प्रेम में इतना भाव-विभोर हो जाएं कि जब सोएं तो सपने में केवल बाबोसा प्रभु ही आयें। जब बाबोसा भगवान की मूर्ति का श्रृंगार करें, तो अनुभव करें कि हिमालय की वादियों में फूलों की वाटिका में खड़े हुए आप कह रहे हों कि प्रभु, तुम्हारे खिलाये हुए फूलों द्वारा मैं तुम्हारा अभिनन्दन करता हूँ। हे बाबोसा प्रभु! आज चांद और सितारों को थाली में सजा कर तेरी आरती उतारने का मन है।

जब भक्त अतिशय प्रेम में जुड़े हुए हों और वह अतिशय प्रेम प.पूज्य बाबोसा भगवान के प्रति इस तरह से हो कि यदि स्वप्न भी देखें तो लगे कि आप उनकी वन्दना कर रहे हैं। जागें तो महसूस करें कि उनकी ही एक लहर चल रही है। इसी का नाम बाबोसा भक्ति है।

भक्त प.पूज्य बाबोसा प्रभु की उपासना करते हैं, उनके पावन चरणारविन्दों में श्रद्घापूर्वक माथा टेकते हैं। पर क्या प.पूज्य बाबोसा के महत्त्व को समझते हैं? क्या बाबोसा-तत्त्व को अपने जीवन में उतारते हैं? क्या जीवन उन सिद्घान्तों पर चल रहा है, जिन्हें प. पूज्य बाबोसा महाराज समय-समय पर फरमाते रहते हैं –

“मेरे पर विश्र्वास रखो’, “भक्ति करो’, “भक्त ही मेरा परिवार है’,

“माता-पिता की सेवा करो।’

इस कलिकाल में भी कितने बाबोसा भक्त ऐसे हैं, जिनके घर में कलियुग का प्रवेश नहीं है। जिस घर में प.पूज्य बाबोसा प्रभु के नाम का कीर्तन होता है, जिस घर में गरीब का सम्मान होता है, जिस घर में प. पूज्य बाबोसा की सेवा-पूजा होती है, जिस घर में वृद्घों को मान मिलता है, जिस घर में सभी माता-पिता की आज्ञा में रहते हैं, उस घर में किसी दिन कलियुग नहीं आता। बाबोसा की भक्ति में शब्दों, छंदों तथा अलंकारों का कोई महत्त्व नहीं होता है। वहां तो श्रद्घा-भावना के सुमनों की ही कद्र होती है। भक्त के हृदय की आर्त पुकार एवं मन में उठने वाली सात्विक भावना ही प. पूज्य बाबोसा प्रभु तक पहुँचती है।

एक दर है बाबोसा का जहॉं सिर्फ दिल की ही बात हुआ करती है।

और जहां सिर्फ बाबोसा का नूर बरसता है, वहां बेकरारों को सुकून मिलता है। हर इन्सां उस दर को तरसता है। रहमत बरपा हुई है बाबोसा महाराज की। लाखों बेचैन दिलों को चैन मिलता है। दुनिया के सितम से थके राहगीरों को उसके दर ही रैन-बसेरा मिलता है।

बाबोसा की भक्ति ऐसा धन है जिसके द्वारा भक्त आनन्द का अमर खजाना पा सकता है। प.पूज्य बाबोसा प्रभु को अपना सहारा बना लो। उसी का नाम जपो और प्रसन्न रहो। प.पूज्य बाबोसा महाराज के आधार के बिना जीवन निराधार है।

अपने जीवन के क्षेत्र में जिस भक्त ने कर्म करते हुए स्वयं को प.पूज्य बाबोसा प्रभु के पावन चरणों में समर्पित कर दिया, उसको जीवन में विजय, सुख, समृद्घि, कीर्ति, सन्तोष की सम्पत्ति मिल जाती है। सफल मानव जीवन का यही रहस्य है।

जो लगन लगाये बाबोसा की वह नाव कभी न अटकी।

यद्यपि हम उस महाशक्ति प.पूज्य बाबोसा प्रभु को इन चर्म-चक्षुओं से निहार तो नहीं सकते तथापि “ॐ बाबोसा’ के महामंत्र के जप व अनुष्ठान से जीवन के कल्मष को दूर कर विमल बुद्घि से उस बाबोसा प्रभु का अनुभव कर सकते हैं। (समाप्त)

 

– कमल दूगड़

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