बरसों पहले कृश्र्न्न चंदर का उपन्यास पढ़ा था “बम्बई रात की बांहों में’। तब उम्र छोटी थी, इसलिए उसके कथानक को समझ नहीं पाया। आज जब यह मायानगरी हमारे सामने मुम्बई बनकर आयी है, तब से यह सपनों का शहर बनकर रह गयी है। हर आदमी यहां एक सपना लेकर आता है। सपने का संबंध नींद से है, पर यहां के लोग अब अपनी नींद बेचकर धन कमाने में लगे हैं। लोग दिन में सपने देखते हैं और रात में उसे पूरा करने के लिए परिश्रम करते हैं। केवल मुम्बई ही नहीं, आज हर महानगर इसकी चपेट में है। हर शहर अब रात को और अधिक रंगीला होने लगा है। लोगों को अब शहर की रातें लुभाने लगी हैं। आपने ध्यान दिया होगा कि अब लोग रात का सफर करने में अधिक दिलचस्पी लेने लगे हैं। यात्रा चाहे टेन की हो, बस की हो या फिर प्लेन की। एक तरह से आज की प्रतिस्पर्धा वाली इस जिंदगी में लोग अपनी स्वाभाविक नींद को तिलांजलि देकर धन कमाने में लग गये हैं।
पहले बिजली नहीं थी, तब लोग रात का समय सोने में ही निकालते थे। इससे न केवल शारीरिक िायाएं, बल्कि स्वास्थ्य की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति होती थी। आज समय सबसे आगे निकल जाने का है। सबके पास समय की कमी है। किसी को किसी से बात करने का समय नहीं है। विज्ञान के इस युग में मोबाइल और लेपटॉप ने पूरी दुनिया को ऊँगलियों में समा दिया है। लोग अब ऑफिस से ही देर से लौटते हैं, साथ में काम भी लेते आते हैं, इसलिए रात जागकर काम पूरा करने में लग जाते हैं। स्वाभाविक है इससे नींद को अपने से दूर करना होता है। नींद दूर करने के साधनों में व्यसन एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। आजकल कार्पोरेट कल्चर के अंतर्गत लोगों को 24/7 की ड्यूटी करनी पड़ती है। याने आप सातों दिन ड्यूटी पर होते हैं, आपको कभी भी ऑफिस बुलाया जा सकता है। आखिर मोटी तनख्वाह अपना असर कहीं तो दिखाएगी।
अधिक दूर जाने की आवश्यकता नहीं है, जरा अपने बच्चों की दिनचर्या पर ही नजर डाल लें, तो आप पाएंगे कि उनके पास केवल नींद का समय नहीं है, बाकी सबके लिए समय है। घंटों मोबाइल पर बातें हो सकती हैं, कंप्यूटर पर घंटों बैठकर चैटिंग की जा सकती है, देर रात के फिल्म-शो देखे जा सकते हैं, पार्टियां अटेंड की जा सकती हैं, पर सोने के लिए समय नहीं है। शरीर थककर चूर हो रहा है, पर काम का बोझ इतना है कि नींद भगाने के लिए सिगरेट, शराब, डग्स आदि का सहारा लेना पड़ रहा है। यही हाल व्यापारियों का है, लोग अब रात की शॉपिंग अधिक करने लगे हैं, इसलिए उनकी दुकान रात के एक-दो बजे बंद होने लगी है, देर रात घर लौटकर भोजन करना, फिर टीवी पर फिल्में देखना या फिर कोई विशेष दिलचस्प कार्याम देखकर सुबह चार बजे तक सोना हो पाता है। ऐसे में शरीर की सारी मशीनरी को काफी मेहनत करनी पड़ती है। शरीर का समय-चा बदल जाता है। इन सबका असर स्वास्थ्य पर किस तरह पड़ रहा है, यह जानने की जरूरत नहीं है। आज युवा इस प्रतिस्पर्धी युग का सबसे पहला शिकार है। कम समय में काफी कुछ पा लेने की चाहत उसे भटका रही है। आश्र्चर्य इस बात का है कि इसे आज के पालक भी नहीं समझ पा रहे हैं। आज स्वास्थ्य गौण हो गया है, धन ही सब कुछ हो गया है।
नीतिशास्त्र में कहा गया है कि जो रात को जल्दी सो जाते हैं और सुबह जल्दी उठते हैं, वे वीर बनते हैं, उनकी विद्या, बुद्घि, धन में वृद्घि होती है और शरीर के साथ-साथ जीवन भी सुखी होता है। उधर, आज के लोगों को वीर बनना है, विद्या प्राप्त करनी है, धन कमाना है, बुद्घिमान बनना है, जीवन को सुखी बनाना है, पर रात को जल्दी सोना नहीं है और सुबह जल्दी उठना नहीं है। आज की पीढ़ी नींद की व्याख्या कुछ अलग ही तरीके से करती है। उनकी तमाम कामयाबी के पीछे नींद के लिए कोई खास नहीं है। उनका तो यहां तक कहना है कि दिन-रात मिलकर केवल 24 घंटे के ही क्यों होते हैं, यदि ये 30 या 36 घंटे के होते, तो भी हमें कम ही पड़ते। नींद बेचकर जागने की नयी पीढ़ी की यह आदत उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। एशियन हार्ट इंस्टीट्यूट के नींद के विशेषज्ञ डॉ. शेखर घमंडे कहते हैं कि मानव शरीर को रोज 6 से 8 घंटे की नींद की आवश्यकता होती है। नींद में कटौती करना स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक है। दूसरी ओर हिंदुजा अस्पताल के नींद विशेषज्ञ डॉ. अशोक महासौर का कहना है कि कम नींद लेने से शरीर की प्रतिरोधात्मक शक्ति घट जाती है। फलस्वरूप उसका काम भी प्रभावित होता है। यदि व्यक्ति एक वर्ष तक ही कम नींद लेना शुरू कर दे, तो उसके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ेगा ही।
आज पति के पास इतना समय नहीं है कि पत्नी से दो मीठे बोल बोल सके। नींद कम लेने से लोगों के आपसी संबंध बिगड़ने लगे हैं, लोग चिड़चिड़े होने लगे हैं। प्रकृति के बनाये नियमों को तोड़कर हम खुशियां प्राप्त नहीं कर सकते। देर रात भोजन करने से पाचन-शक्ति का नाश होता है। आयु कम होती है। हमें यह तय कर लेना चाहिए कि हमारी प्राथमिकता क्या है, स्वास्थ्य या पैसा? पैसा कमाने के लिए स्वास्थ्य की बलि देना कहॉं की समझदारी है?
– डॉ. महेश परिमल
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