कलाकारः अभिषेक बच्चन, प्रियंका चोपड़ा, के.के.मेनन, नवनीत निशान, जया बच्चन
संगीतः ध्रुव घाणेकर
निर्देशकः गोल्डी बहल
निर्देशक गोल्डी बहल की बहुत उछाली हुई फिल्म द्रोण की शुरूआत होती है, प्रियंका चोपड़ा के सुदीर्घ निवेदन से। प्रियंका के पुराणों के अनुसार देव तथा असुरों के बीच अमृत के लिये अब भी होड़ जारी है। वंश परंपरागत अमृत की सुरक्षा की जिम्मेदारी अब युवा द्रोण के पास आई है, जो आदित्य के नाम से अपनी आंटी नवनीत निशान एवं भाई की निर्मम प्रताड़ना सहते हुए, लंदन में रहता है। आदित्य अपनी इस जिम्मेदारी से तथा स्वयं में छिपी अद्भुत ताकत से पूरी तरह अनभिज्ञ है।
रात में डरावने सपने देखने वाले आदित्य को एक बार सोने का कड़ा मिलता है, जिसे पहनते ही उसका सामना होता है जादुगर के.के.मेनन से, जो वास्तव में अमृत की तलाश करने वाला असुर है। बीकानेर की महारानी जया बच्चन एक प्यारी-सी लोरी गाती है और अचानक आदित्य को अपनी विरासत का अहसास होता है और तभी उसका साथ देने आती है प्रियंका चोपड़ा, जिसकी परंपरागत जिम्मेदारी है द्रोण की रक्षा करना। पर क्या मर्द अभिषेक की सुरक्षा वह कर सकेगी?
प्रियंका एवं आदित्य अमृत की खोज में निकलते हैं। बीच में राजपुर नामक बौनों की जादुई दुनिया में उनका आगमन होता है। अत्यंत भद्दे तरीके से इस विलक्षण दुनिया को निर्देशक ने साकार किया है। द्रोण एवं जादुगर के.के.मेनन के मध्य संघर्ष होता है। द्रोण की रक्षा करने वाली प्रियंका की रक्षा बार-बार द्रोण को ही करनी पड़ती है। इस बीच दोनों में प्रेम हो जाता है, जिसके चलते एक ऊबाउ युगल-गीत दर्शकों को बर्दाश्त करना पड़ता है। फिर होता है सामना तलवारों के साथ-साथ गैर-जरूरी भाषणबाजी का। इस चरम-दृश्य के साथ चंदामामा जैसी अद्भुत कहानी दर्शकों को बताने का असफल प्रयत्न खत्म होता है।
अभिषेक बच्चन अभिनय की दृष्टि से निराश करता है, परंतु प्रियंका अच्छे अभिनय के साथ अच्छा आयटम डान्स भी कर जाती है। जया बच्चन की छोटी-सी भूमिका में अभिनय से ज्यादा याद रह जाता है, उनका भारी मेकअप। लगभग सभी पात्रों की पोशाकें कथा-वस्तु से मेल नहीं खाती हैं। सबसे बड़ी कमजोरी है फिल्म की कहानी। इसका कोई भी पात्र सजीव नहीं लगता। केवल के.के.मेनन प्रभावित करता है। आधुनिक तकनीक और भारी बजट लगाने के बावजूद फिल्म में तनिक भी रस या पकड़ नहीं है।
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