जीवन गीता

एक राजकुमारी का नौलखा हार चोरी हो गया। हीरे और बहुमूल्य रत्नों से जड़े हार की खोजबीन राज्य भर में की गई, लेकिन कोई सुराग नहीं मिला। अंत में हारकर राजा ने हार ढूंढने वाले को एक लाख रुपये का इनाम देने की घोषणा की। राजा का मंत्री एक दिन शहर के बाहर से गुजर रहा था, तभी उसे किले की दीवार के पास से बहने वाले नाले में राजकुमारी का हार चमकता हुआ दिखा। उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। नाला गंदा था। सारे शहर की गंदगी उस नाले से बहकर किले की तलहटी में बसे नगर से बाहर निकलती थी। उसने पास रखी एक लकड़ी उठाई और हार निकालने का प्रयत्न किया। जैसे ही वह लकड़ी नाले में गई, पानी हिल गया और कई बार लकड़ी हिलाने के बाद भी उसके हाथ कुछ नहीं आया।

उसने सोचा, यदि मैं इस नाले में उतरकर यह हार निकाल लाऊँ, तो इसमें क्या हर्ज है? उसने आसपास देखा, वहॉं कोई नहीं था। उसने चुपचाप कपड़े उतारे और संभलकर नाले में कदम रखा। उसका उतरना भर था कि पैर फिसल गया और वह गंदगी में जा गिरा। उसने सोचा, अब गंदा हो ही गया हूँ, तो क्यों न पूरी तरह से उसे खोजा जाए? उसने नाले के पानी में हाथ फेरकर हार खोजना शुरू किया, लेकिन बहुत परिश्रम के बाद भी उसके हाथ कुछ नहीं आया। वह निराश होकर बैठ गया। एक फकीर वहॉं से गुजर रहे थे। उन्होनें मंत्री से परेशानी का कारण पूछा। मंत्री ने उन्हें नाले में नौलखा हार दिखाया और उसे पाने की तरकीब पूछी। फकीर ने उसे ऊपर देखने को कहा- नौलखा हार ऊपर पेड़ की डाल पर लटक रहा था। दरअसल, यही बात जीवन पर भी लागू होती है। मनुष्य संसार के दलदल में ही सुख खोजता है, जबकि वास्तव में आनंद बहुत ऊँचे स्तर पर होता है, जिसकी परछाईं संसार में दिखती है।

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