पिछले दिनों श्रीलंका की राजधानी कोलम्बो में आयोजित सार्क देशों के सम्मेलन में यूँ तो कई मुद्दों पर विचार-विमर्श हुआ, लेकिन आतंकवाद का मुद्दा सब पर छाया रहा। भारतीय प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में स्पष्ट किया कि आतंकवाद के मौजूद रहते प्रगति और विकास की परिकल्पना का कोई अर्थ निकलने वाला नहीं है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री यूसुफ ऱजा गिलानी के साथ अपनी मुलाकात में उन्होंने खुले तौर पर यह चेतावनी भी दे डाली कि अगर पाकिस्तान पूर्व में दिये गये अपने इस आश्र्वासन को पूरा नहीं करता है कि वह अपनी जमीन से भारत के खिलाफ संचालित होने वाली आतंकवादी साजिशों और गतिविधियों पर लगाम लगाएगा, तो दोनों देशों के बीच चलने वाली शांति-प्रिाया प्रभावित भी हो सकती है। प्रधानमंत्री ने बहुत पुख्ता सबूतों के आधार पर काबुल में हुए भारतीय दूतावास पर आत्मघाती हमले के पीछे पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई की भूमिका होने का आरोप लगाया। गऱज यह कि इस सम्मेलन में सदैव शांत रहने वाले प्रधानमंत्री की भूमिका इस मसले पर बहुत आाामक थी, जिसके बचाव में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री गिलानी सिर्फ इतना भर कह सके कि वह अपनी ओर से भी भारतीय दूतावास पर हुए हमले में आईएसआई की भूमिका की तहकीकात करायेंगे। उनकी लाचाऱगी और बेचाऱगी का मु़जाहरा उस वक्त हुआ जब उन्हें बड़ी दबी जुबान से बस इतना कह कर चुप लगा जाना पड़ा कि आतंकवाद की मार तो पाकिस्तान भी झेल रहा है।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पाकिस्तान से हर प्रकार का आतंकवाद समाप्त करने की दिशा में तत्काल कदम उठाने की बात तो कही ही, साथ ही नियंत्रण रेखा पर उसकी ओर से हो रहे युद्घ विराम के लगातार उल्लंघन की ओर भी उसका ध्यान आकृष्ट कराया और दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ाने वाली इस प्रिाया को तत्काल रोकने की हिदायत भी दी। ़गौरतलब है कि इन दिनों नियंत्रण रेखा के उस पार से पाकिस्तानी सैनिक इस पार के भारतीय ठिकानों पर कई बार फायरिंग कर चुके हैं जिसमें कई भारतीय सैनिक और अफसर शहीद भी हो चुके हैं। एक तरफ इसे भारतीय पक्ष की ओर से उकसावे की कार्यवाही माना जा रहा है, तो दूसरी ओर यह भी माना जा रहा है कि एक बनावटी सुरक्षा घेरा तैयार कर वह प्रशिक्षित आतंकवादियों को भारतीय सीमा में प्रवेश दिलाना चाहता है। इस संदर्भ में उसका उद्देश्य चाहे जो भी हो लेकिन भारतीय प्रधानमंत्री ने सम्मेलन में अपना पक्ष रखते हुए सभी सदस्य देशों को प्राथमिक तौर पर आतंकवाद के खिलाफ सामूहिक लड़ाई लड़ने को सहमत अवश्य करा लिया। इस सामूहिक सहमति का ही नतीजा रहा कि भारत ने पाकिस्तान पर जिन तीन बिन्दुओं पर तत्काल अमल करने का दबाव डाला, उन्हें पाकिस्तान को बिना किसी हीला-हवाली के पूरी तरह मंजूर करना पड़ा। ये तीन बिन्दु थे, पहला यह कि पाकिस्तान यह सुनिश्र्चित करे कि काबुल में भारतीय दूतावास पर हुए हमले जैसी कोई घटना भविष्य में फिर कभी नहीं दुहरायी जाएगी। दूसरे यह कि नियंत्रण रेखा का पूरी तरह सम्मान करते हुए पाकिस्तान अपनी सीमा से होने वाली गोलीबारी को रोकेगा और तीसरा यह कि सीमापार से होने वाली घुसपैठ को समाप्त करेगा।
अगर यह कहा जाय कि इस बार का सार्क सम्मेलन लगभग पूरी तरह भारतीय प्रधानमंत्री के नियंत्रण में रहा, तो इसमें किसी तरह की अत्युक्ति नहीं होगी। उनके आठान पर सदस्य देशों ने एक महत्वपूर्ण कदम के तहत आतंकवाद से निपटने के लिए क्षेत्रीय कानूनी ़खाका अपनाने का फैसला किया। इस ़खाके के तहत सदस्य देश आपराधिक मामलों में आतंकवाद सहित तमाम अपराधों का पता लागने, उसे रोकने और संपत्तियों को जब्त करने और जॉंच तथा अभियोजन के लिए एक व्यापक कानूनी आधार तैयार करेंगे। सम्मेलन में भारतीय प्रधानमंत्री के भाषण में जो दृढ़ता थी और जिस तरह उन्होंने पाकिस्तान को इस मसले पर घेरते हुए चेतावनी दी, उससे यह साफ परिलक्षित होता था कि भारत अब इस स्थिति को और अधिक बर्दाश्त करने के पक्ष में नहीं है। उन्होंने बड़े बेबाक लहजे में यह बात कही कि भारत किसी भी मूल्य पर आतंकवाद के खिलाफ अपनी लड़ाई में शिकस्त बर्दाश्त नहीं कर सकता। बैंगलूर और अहमदाबाद के बम-विस्फोटों को उन्होंेने वीभत्सता की हद बताते हुए इसे सभ्यता को बर्बरता के हाथों सौंप देने का कुकृत्य माना। सार्क सम्मेलन का अब तक का इतिहास यही रहा है कि आतंकवाद के मसले पर अब तक पाकिस्तान भारत के हर आरोप को यह कह कर ़खारिज करता रहा है कि आरोप अनर्गल हैं और पाकिस्तान को बदनाम करने की सा़िजश के तहत तैयार किये गये हैं। वह यह भी कहता रहा है कि आरोप लगाने के पहले भारत को इसे सही साबित करने के प्रमाण भी जुटा लेने चाहिए। लेकिन इस 15वें सार्क सम्मेलन में उसकी बोलती बन्द रही। भारत और उसके प्रधानमंत्री की इस संबंध में सफलता यह रही कि उनके आाामक रवैये ने पाकिस्तान की हेकड़ी को तो धूल चटाया ही, उसके भीतर अपराध भाव जगाने में भी सफल रहे। वास्तव में इस आाामकता के पीछे घरेलू राजनीति में प्रधानमंत्री और उनकी सरकार पर लगाये जाने वाले उन आरोपों की भी भूमिका है, जिनके तहत विपक्ष कहता रहा है कि वोट बैंक की राजनीति के चलते मनमोहन सरकार इस मुद्दे पर मुलायम रवैया अपना रही है।
You must be logged in to post a comment Login