पत्नी मगर होम मेकर ही चाहिए

पुरुषों को महत्वाकांक्षी और आउटगोइंग महिलाएं पसंद आती हैं। वे उनसे प्यार भी करते हैं, लेकिन जब शादी का प्रश्न आता है तो वे होम मेकर या घर संभालने वाली गृहिणी को ही प्राथमिकता देते हैं। पत्नी के रूप में उन्हें एक घरेलू स्त्री चाहिए होती है। आज के दौर में हम में से कितनी होम मेकर हैं? क्या हम में अद्भुत पैरेंटिंग कौशल है? क्या हम वार्डरोब को सलीके से और घर को साफ-सुथरा व आकर्षक रख सकती हैं? क्या हम वैवाहिक संबंध को अवरोधों से बचाते हुए मंजिल तक ले जाने में सक्षम हैं? हम घरेलू देवी हैं या गैर-घरेलू देवी?

दो दशक पहले तक यह प्रश्न अप्रासंगिक थे। औरत होने का अर्थ ही घर के कामों में दक्ष होना था। मांएं विशेष रूप से अपनी लड़कियों को खाना पकाना, सिलाई-कढ़ाई वगैरह सिखाती थीं यानी जो कुछ उन्होंने अपनी मां से सीखा होता था, वह बेटी तक पहुंचा देती थीं। साथ ही ससुराल में रहने के संस्कार भी दिये जाते थे। लेकिन आज आधुनिक तकाजों ने सब कुछ बदल दिया है। अगर महिला नौकरी न करे, तो घर का खर्च चलाना मुश्किल हो जाता है। डबल इनकम के दौर में आधुनिक मांओं की भूमिका बदल गयी है। अब वह गृहकार्य सप्ताह में सिर्फ चार घंटे ही करती हैं। दो दशक पहले की तुलना में यह अवधि आधी है। कारण स्पष्ट है- देर तक दफ्तर में रुकना, व्यस्त सामाजिक जीवन और पुरुषों का भी गृहकार्य में सहयोग करना। बहुत-सी आधुनिक लड़कियां अविवाहित व बड़ी उम्र की भी हैं। वे अपना काम छोड़कर फुलटाइम मम्मी नहीं बनना चाहतीं।

हालांकि 1950 की परंपरागत महिला अब मौजूद नहीं है, लेकिन अब भी औरतों को वैसी ही मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। आज इन समस्याओं के समाधान के तरीके भी बदल गये हैं। इसलिए घरेलू देवी होने का कोई परफेक्ट फॉर्मूला नहीं है। ज्यादातर कामकाजी महिलाएं गृहकार्य मजबूरी और गुस्से में करती हैं, क्योंकि पुरुष बराबरी की तमाम बड़ी-बड़ी बातें करने के बावजूद घर के काम को कुछ खास अच्छा नहीं कर पाते हैं।

बहरहाल, पुरुष जब परफेक्ट वाइफ की तलाश में होते हैं, तो उन्हें सबसे अच्छी होम मेकर चाहिए। ऐसी ही स्थिति का सामना शालिनी गुप्ता को करना पड़ा। उनके ब्वायफ्रेंड ने प्रपो़ज करते हुए कहा, “”मुझे ऐसी लड़की चाहिए, जो मेरे घर और मां-बाप की देखभाल कर सके।”

याद रखें, पुरुषों ने परफेक्ट होम मेकर की जो परिभाषा विकसित की है, उसमें यह भी शामिल है कि अगर बिजली का फ्यू़ज उड़ जाये तो महिला उसे स्वयं ही ठीक करे या खुद ही इलेक्टीशियन को बुलाये। बाथरूम का पाइप लीक होने पर भी वह महिला से ऐसी ही उम्मीद रखते हैं कि अगर वह खुद एम-सील नहीं लगा सकती है तो प्लम्बर को ही बुला ले। कहने का मतलब यह कि घरेलू ड्यूटी 50-50 का शोर मचाने के बाद भी पुरुष अपेक्षा यही करता है कि घर की ए से ़जेड तक जिम्मेदारी महिला ही उठाये, भले ही दफ्तर में वह उससे ज्यादा व्यस्त हो और वेतन भी उसी का ज्यादा हो।

पुरुष की चाहतों को एक किनारे लगायें और हम अपने आप से सवाल करें- हम में से कितनी हैं जो वार्डरोब को व्यवस्थित रखने में सक्षम हैं? हम में से कितनी घर को साफ-सुथरा रखना जानती हैं? हम में से कितनी कपड़ों को आयरन करना जानती हैं? हम में से कितनी कटलरी को सही रखना जानती हैं? हम में से कितनी बच्चों की देखभाल करने में दक्ष हैं? क्या इन सब कामों में महिला को माहिर नहीं होना चाहिए? यकीनन, होना चाहिए। लेकिन कितनी हैं? ज्यादा नहीं।

दिन भर दफ्तर में व्यस्त रहने के बाद महिला से उम्मीद की जाती है कि वह खाना बनाये, सफाई करे और घर के अन्य छोटे-मोटे काम भी करे। एक नजर में यह ज्यादती लगती है। लेकिन महिला को खाना बनाना तो आना ही चाहिए वरना वह अच्छी पत्नी या मां नहीं बन सकती। दादी मां भी यही कहा करती थीं। एक कॉस्मेटिक कंपनी में एग्जीक्यूटिव निशा शर्मा कहती हैं, “”शुरू-शुरू में मुझे खाना बनाने से बहुत नफरत थी। दफ्तर से लौटकर मैं सिर्फ आराम करना चाहती थी। लेकिन मेरा मन बार-बार मुझसे कहता रहता कि अच्छी महिलाएं जिम्मेदारियों से पीछे नहीं हटती हैं, वह शिकायतें नहीं करती हैं, वह प्यार और उत्साह के साथ खाना परोसती हैं…यही आवाजें मुझे सुनायी देती रहतीं…फिर मैं खाना बनाने लगी। अब जब मेरे पति और मेरे बच्चे मेरे बनाये हुए व्यंजनों की तारीफ करते हैं, तो दफ्तर की सारी थकान दूर हो जाती है।”

फिर बच्चों को अनुशासित करने का भी मसला है। उन पर अगर नजर न रखी जाए तो वह घर को कबाड़खाना बना देते हैं। इसमें शक नहीं है कि परफेक्ट होम मेकर बनने की चाहत महिला को तनावग्रस्त कर देती है। वह कॅरिअर और व्यक्तिगत मोर्चे के बीच झूलती रहती है। लेकिन महिला की संरचना ही मल्टी-टास्ंिकग या एक साथ कई जिम्मेदारियां उठाने के लिए की गयी है। वह एक साथ कई भूमिकाएं बखूबी निभाने में सक्षम है। तभी अमेरिकी कवि वॉल्ट विटमैन ने कहा था कि पुरुषों को जन्म देने वाली मां, पुरुषों से महान है। इसलिए महिला को किसी भी चुनौती से पीछे नहीं हटना चाहिए, उसे स्वीकार करना चाहिए। वह कामयाब होगी जैसा कि होती आयी है।

क्या छुट्टी के दिन आप होम मेकर नहीं बनी रहतीं? या उस दिन भी आप अच्छी गृहिणी बने रहने में व्यस्त रहती हैं? बहुत-सी महिलाओं के लिए छुट्टियां तो डरावना सपना होती हैं। सुबह उठते ही बच्चों और पति की फरमाइशों की लम्बी फेहरिस्त मिल जाती है। उन्हें पूरा करने से फुर्सत मिले, तो कोई आराम करे। सवाल यह है कि ऐसी स्थिति में पुरुष सहयोग क्यों नहीं करते? वे कर ही नहीं सकते। वे बहुत होशियार होते हैं और महिला को श्रेष्ठ होने का अहसास कराकर अपनी जिम्मेदारी से बच जाते हैं। इसके बाद उन्हें बर्तन धोने की चिंता नहीं करनी पड़ती। पुरुष नाटक करने में माहिर हैं। छुट्टी में देर तक सोते हैं, मैच देखते हैं और फिर आराम से सो जाते हैं। जबकि महिला परफेक्ट होम मेकर बनने की चाहत में कोल्हू के बैल की तरह पिसती रहती है।

– नम्रता नदीम

You must be logged in to post a comment Login