शती से संबंधित मित्तियॉं का ऐतिहासिक मंदिर

mytiyaa-mata-mandirदेवभूमि हिमाचल शक्तिपीठों के लिए प्रसिद्घ है, क्योंकि यहॉं के ज्वालाजी, नयना देवी, चामुण्डा, चिन्तपूर्णी आदि शक्तिपीठ भारत में ही नहीं अपितु संसार में प्रसिद्घ हैं। किन्तु एक शक्तिपीठ ऐसा भी है, जो अभी तक शेष दुनिया की नजरों से ओझल था, केवल स्थानीय व आसपास के लोग ही इसकी महिमा से परिचित थे। यह सोलन जिले की नालागढ़ तहसील में मित्तियां नामक गॉंव में स्थित है। यहॉं शक्ति की प्रतीक मॉं दुर्गा का लगभग 350 वर्ष पुराना ऐतिहासिक मन्दिर है। इस मन्दिर की विशेषता यह है कि यहॉं सामान्य मंदिरों की तरह कोई मूर्ति स्थापित नहीं है, बल्कि मन्दिर के मध्य में जमीन में गड़ी एक पिण्डी है, जो स्वयं प्रकट हुई थी।

जानकार लोगों का मानना है कि इस पिण्डी का “देवी सती’ से संबंध है। भगवान शिव जब देवी सती के अधजले शरीर को कन्धे पर उठा कर तांडव कर रहे थे तो सती के अंग जहॉं-जहॉं गिरे, वहॉं-वहॉं शक्तिपीठ स्थापित हैं। श्री नयना देवी का पहाड़, जहॉं सती के नयन गिरे थे, यहॉं से एकदम सामने नजर आता है। इसी आधार पर लोगों की मान्यता है कि यहॉं भी “देवी सती’ का कोई अंग अवश्य गिरा होगा, जो समय आने पर इस पिण्डी के रूप में प्रकट हुआ। इस दावे में कितनी सच्चाई है, यह इतिहासकारों के लिए शोध का विषय हो सकता है।

किंवदन्ति है कि एक समय एक किसान यहॉं खेत में हल चला रहा था। अचानक हल का फाल किसी वस्तु में फंस गया। बैलों को रोककर उसने देखा कि एक स्वर्णिम पिण्डी है, जो देखते-देखते डेढ़-दो फुट ऊँची हो गयी। उसने हल छोड़कर गॉंव वालों को इस चमत्कार के बारे में बताया। लोगों ने इसे शक्ति का स्वरूप मान कर इसकी पूजा शुरू कर दी तथा एक छोटा-सा मन्दिर बना दिया। इस घटना की चर्चा दूर-दूर तक होने लगी। कुछ चोरों ने सोचा कि यदि सोने की इस पिण्डी को निकाल कर बेच दें तो अच्छी-खासी रकम हाथ लग जायेगी। इसी उद्देश्य से एक रात को उन्होंने इस पिण्डी को निकालने का प्रयास किया। चोर अंधे हो गये तथा पिण्डी बाहर निकलने की बजाय जमीन में धंसने लगी। इस पर उन्हें बहुत पछतावा हुआ। उन्होंने अपने इस अपराध के लिए मॉं से सच्चे मन से क्षमा याचना की। इससे उनकी आँखों की रोशनी तो वापस आ गयी, किन्तु पिण्डी का रंग सांवला पड़ गया व कुछ भाग बाहर ही रह गया, शेष जमीन में धंस गया। एक रात माता ने नालागढ़ के तत्कालीन राजा को सपने में दर्शन देकर अपने प्रकट होने की सूचना दी तथा मित्तियां में मन्दिर बनाने को कहा। राज ने मॉं की आज्ञा मानकर यहॉं भव्य मंदिर का निर्माण करवाया, जो वास्तुकला का एक बेजोड़ नमूना है।

दुर्गम स्थान होने के कारण यह शक्तिपीठ अब तक शेष दुनिया की नजरों से ओझल था। मंदिर का रख-रखाव भी सही नहीं था व यह मंदिर केवल एक परिवार की सम्पत्ति बन कर रह गया था। करीब 15 वर्ष पहले लोगों ने कमेटी बना कर मंदिर का प्रबंध संभाल लिया। इसके बाद मंदिर में सुविधाओं का अंबार लग गया तथा निर्माण-कार्य लगातार जारी है। मंदिर के चारों ओर बरामदा बन गया है तथा संगमरमर का फर्श है। श्रद्घालुओं के ठहरने के लिए सराय में शौचालय भी बनवाये गये हैं। पानी की पर्याप्त व्यवस्था की गयी है। लंगर के लिए विशाल रसोईघर का निर्माण हाल ही में किया गया है। हर वर्ष नवरात्रों में कमेटी द्वारा मंदिर परिसर में भागवत-कथा का आयोजन करवाया जाता है।

– हरि राम धीमान

You must be logged in to post a comment Login