भाग्य किसी के हाथ में नहीं होता

देव आनंद की फिल्म लव एट टाइम स्क्वायर से अपने कॅरियर की शुरुआत करने वाले चैतन्य चौधरी ने कल्पना लाजमी की फिल्म “क्यों’ में भी महत्वपूर्ण लीड भूमिका की, पर इसके बाद उन्होंने फिल्में छोड़ कर टीवी का दामन पकड़ लिया। शुरू में वे थोड़े से नर्वस हुए लेकिन आज वे खुश हैं कि टीवी ने उन्हें नयी पहचान और शुरुआत भी दे दी है। एकता के शो “कहीं किसी रोज’ से अपनी शुरुआत करने के बाद वे सहारा के शो “कुछ अपने कुछ पराए’ में पहली बार नायक के रूप में सामने आए और उसके बाद स्टार प्लस पर शुरू हुए नए शो संगम में सागर की भूमिका के लिए उनकी चर्चा हुई। स्टार वन के नए रियाल्टी शो “जरा नच के दिखा’ से बतौर प्रतियोगी वे एक बार फिर चर्चा में हैं।

संगम से आप लंबे समय बाद टीवी पर लौटे लेकिन वह बीच में ही बंद हो गया?

इसमें मैं कुछ नहीं कर सकता था लेकिन यह मेरे पहले शोज से एकदम अलग ऐसे आदमी की भूमिका वाला शो था जिसने मुझे नया आधार दिया था।

आपकी छवि काफी फनी अभिनेता की है। यह तो काफी गंभीर किस्म का शो था?

नहीं। यह एक रोचक कथानक, मूल्य, परंपराओं और संस्कारों से जुड़ा शो था, जिसमें मनोरंजन की गुजाइंश हमेशा रही। लेकिन साधारण सास बहू वाले तेवर का शो न होने के बावजूद वह बंद हो गया। इससे मुझे कॅरियर में एक नया आधार मिला।

डांस शो जरा नच के दिखा से आप किस आधार की तलाश कर रहे हैं?

़यह तो पैसे और मजे के लिए है। ऐसे शोज मुझे नए अनुभवों से जोड़ते हैं बस। मैंने पहले कभी किसी रियाल्टी शो में हिस्सा नहीं लिया सो यह मेरे लिए मजेदार शो भी है।

फिल्मों से आपको कोई नया आधार क्यों नहीं मिला?

(हंसते हैं) ऐसा नहीं है। क्यों… से पहले भी मैं देव साहब की लव एट टाइम स्क्वायर कर चुका था, लेकिन वह बुरी तरह असफल साबित हुई। शायद ऐसे में किसी का भी नया तो क्या उसका पुराना आधार भी जाता रहता है।

आपके पास तो नामित कपूर के एक्ंिटग स्कूल और थियेटर का भी अनुभव था ना?

हॉं, उसी के चलते मुझे फिल्म मिली थी और फिर टीवी। पर अपनी फिल्म और टीवी शो की सफलता तो मैं खुद तय नहीं कर सकता।

कैसे?

पहले मैं टीवी से डरता था। मैंने ग्लेडरेज रनरअप का खिताब जीता था। फिल्में मेरा लक्ष्य थीं, लेकिन बाद में टीवी के लिए ऑफर मिलने लगे तो मैं छवि बिगड़ने के बारे में सोचता था। शुा है कि बालाजी ने ऐसा मौका नहीं दिया।

पंकज धीर से आपके पारिवारिक रिश्ते हैं, उनसे आपने कोई मदद नहीं ली?

नहीं। मेरे पिताजी मुंबई के फिल्म डिविजन में थे, पर मैं खुद अपना कॅरियर बनाना चाहता था।

बीकॉम और मार्केटिंग में एमबीए करने के बाद अभिनय करना आसान था?

नहीं। पर भाग्य में कुछ और ही लिखा था। (हंसते हैं)

बिना गॉडफादर के कॅरियर शुरू होने में दिक्कत तो होती है?

हॉं। पर मैंने मैनेज कर लिया। अब टीवी ही मेरा गॉडफादर है।

आप टीवी के नए लवर बॉय हैं। वास्तविक जीवन में ऐसा है क्या?

नहीं। मैं महीने में पच्चीस दिन काम करता हूँ। समय नहीं मिलता, पर जब होगा तो आपको ़जरूर बताऊंगा। (ठहाका लगाते हैं)

 

– चैतन्य

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