जम्मू जल रहा है। लगभग एक महीने से ऊपर हो रहा है कि अमरनाथ श्राइन बोर्ड को आवंटित की गई 100 एकड़ भूमि को राज्यपाल द्वारा वन-विभाग को वापस किये जाने के विरोध स्वरूप व़जूद में आया जम्मू संभाग का आंदोलन थमने का नाम ही नहीं ले रहा। बल्कि दिन-प्रतिदिन और उग्र होता जा रहा है। अब तक इस आंदोलन के चलते 18 लोगों को तो अपनी जान गंवानी ही पड़ी है, सरकारी और व्यक्तिगत कितनी परिसंपत्तियों का नुकसान हुआ है, उसकी गणना करना कठिन है। आंदोलन सिर्फ उग्र ही नहीं हो रहा है, इसका विस्तार जम्मू संभाग के अन्य क्षेत्रों में भी बहुत ते़जी से हो रहा है। चूँकि अक्तूबर-नवम्बर में जम्मू-कश्मीर राज्य में विधानसभा चुनाव भी होने हैं, अतएव पक्ष-विपक्ष के राजनीतिक दलों को जलते तवे पर रोटी सेंकने का भी एक नायाब मौका हासिल हो गया है। इसकी जटिलता किस स्तर तक प्रभावी है, इसका जायजा इस बात से भी लिया जा सकता है कि आंदोलनकारियों पर काबू पाने के सभी प्रशासनिक प्रयास पूर्णतया विफल सिद्घ हो रहे हैं। पुलिस और अन्य सुरक्षा बलों की बात अलग है, सेना भी उन्हें काबू में नहीं कर पा रही है। कई-कई दिनों से इस इलाके में लागू किये गये कर्फ्यू की धज्जियॉं उड़ाते लोग ह़जारों की संख्या में सड़क पर उतर कर प्रदर्शन कर रहे हैं। उनकी बस एक ही मॉंग है कि पूर्व में अमरनाथ यात्रियों की सुविधा के लिए श्राइन बोर्ड को आवंटित की गई भूमि पुनः उनके ह़क में बहाल की जाय।
इस संबंध में समाधान तलाशने की गऱज से 6 अगस्त को प्रधानमंत्री द्वारा बुलायी गई सर्वदलीय बैठक भी किसी ठोस नतीजे तक नहीं पहुँच सकी। फैसला सिर्फ इतने तक सीमित रहा कि एक सर्वदलीय प्रतिनिधि मंडल मौके का जाय़जा लेने राज्य के दौरे पर जाएगा। गऱज यह कि फिलहाल जलते जम्मू की आग बुझाने की कोई कोशिश दूर-दूर तक नजर नहीं आती। बतौर कोशिश अलगाववादी जमातों ने एक पेशकश की है कि अब कश्मीर घाटी को जम्मू संभाग से अलग कर देना चाहिए। हुर्रियत कानेंस के नेता उमर फारूक का बयान आया है कि घाटी के मुसलमान अब जम्मू-संभाग के हिन्दुओं के साथ नहीं रहना चाहते, अतएव कश्मीर राज्य का बॅंटवारा कर दोनों हिस्सों को अलग कर देना चाहिए। उनका यह भी कहना है कि पाक अधिकृत कश्मीर और भारतीय कश्मीर के बीच की नियंत्रण रेखा को अप्रभावी बनाकर इसे व्यापार और आवागमन के लिए खोल दिया जाना चाहिए। ़गौरतलब है कि अलगाववादी जमातों के साथ ही मुफ्ती मुहम्मद सईद की पी.डी.पी. भी कश्मीर घाटी में एक समानान्तर आंदोलन चलाकर यह मॉंग कर रही है कि सरकार द्वारा श्राइन बोर्ड से वापस ली गई जमीन उसे दुबारा वापस न की जाय। ़गौरतलब यह भी है कि श्राइन बोर्ड को आवंटित की गई उक्त भूमि इन्हीं अलगाववादी जमातों के उग्र आंदोलन के चलते राज्यपाल द्वारा वन-विभाग को वापस कर दी गई थी।
पूरा का पूरा घटनााम केन्द्र और राज्य सरकार की कुछ गंभीर नासमझियों का नतीजा है, जिसका फायदा स्पष्ट तौर पर पाकिस्तान समर्थक अलगाववादियों के हिस्से जाता दिखाई दे रहा है। उनकी तथाकथित कश्मीर की आ़जादी की लड़ाई की सबसे सफल रणनीति यह मानी जा सकती है कि वे पूरे राज्य का सांप्रदायिक विभाजन करें। इसी रणनीति के तहत योजनाबद्घ ढंग से घाटी को कश्मीरी पंडितों से खाली करवाया गया था। उनके लिए ़जमीन का आवंटन तो एक बहाना है जिसका इस्तेमाल उन्होंने सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने में किया है। सरकार की नासमझी यह कि वह इस ़जमीन आवंटन के वास्तविक तथ्यों का उद्घाटन सार्वजनिक रूप से नहीं कर सकी और अलगाववादियों को यह प्रचारित करने का मौका दे दिया कि केन्द्र सरकार राज्य सरकार को दबाव में लेकर कश्मीर में हिन्दुओं को बसाना चाहती है और इस तजवीज के साथ वह कश्मीर की मुस्लिम-बहुलता को समाप्त करना चाहती है।
अलगाववादियों के प्रचारित झूठ का पर्दाफाश करने में सरकारी मशीनरियॉं एकदम अक्षम सिद्घ हुई हैं। जबकि असलियत यह थी कि भूमि-आवंटन सिर्फ अमरनाथ यात्रा के समय यात्रियों के लिए कुछ अस्थायी आवास बनाने के लिए ही किया गया था। आगामी कुछ महीने में होने वाले चुनाव को ध्यान में रख कर अलगाववादियों के आंदोलन में सरकार में साझीदारी निभाने वाली वह पी.डी.पी. भी कूद पड़ी जो शुरू से अंत तक इस जमीन आवंटन की प्रिाया में शामिल थी और जिसने इसे मंजूरी दी थी। घाटी के विभिन्न इलाकों में इन जमातों ने जो उग्र आंदोलन इस आदेश को रद्द कराने के लिए किया उससे राज्य सरकार तो डरी ही, केन्द्र सरकार के भी हाथ-पॉंव फूल गये। हो सकता है कि इसके पीछे वोट-बैंक की राजनीति भी कारक रही हो। लिहाजा भूमि-आवंटन को रद्द घोषित करना पड़ा। अलगाववादी अपने मकसद में कामयाब रहे। िाया की प्रतििाया के रूप में हिन्दू-बहुल जम्मू-संभाग में सरकार के इस फैसले के खिलाफ जो आंदोलन फूट पड़ा वह अपनी विध्वंस-लीला का लगातार विस्तार करता जा रहा है। इस आंदोलन के उमड़ते सैलाब को राज्य और केन्द्र सरकार की पूरी ताकत नहीं रोक पा रही है। दोनों ही सरकारें एक विचित्र अऩिर्णय की स्थिति में हैं। भूमि-आवंटन की अगर पुनर्बहाली होती है तो कश्मीर घाटी जलेगी और ऐसा न करने पर जम्मू की आग भी बुझा पाना संभव नहीं दिखता।
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