भारत-रूस के रिश्तों की प्रगाढ़ता रक्षा सहयोग पर ही केंद्रित रही है। आ़जादी हासिल होने के बाद से ही रूस के साथ रक्षा संबंध बढ़ने शुरू हुए जिससे अमेरिका व चीन नाराज रहे और इसी नाराजगी में वे अब तक पाकिस्तान की मदद करते आये हैं। एक लम्बी अवधि के रूसी रक्षा सहयोग से भारतीय सशस्त्र सेनाओं को अत्याधुनिक साजो-सामान एवं रक्षा उपकरणों से लैस किया गया। इस सहयोग के परिणामस्वरूप भारतीय थल सेना के पास 40 प्रतिशत, वायु सेना के पास 80 प्रतिशत एवं नौसेना के पास 75 प्रतिशत रूस से लिए गये हथियार व उपकरण हैं। कुल मिलाकर भारतीय सशस्त्र सेनाओं के पास 60 प्रतिशत हथियार रूस के तथा शेष 40 प्रतिशत हथियार अन्य देशों के या स्वदेश में निर्मित हैं।
स्थितियों में बदलाव तब आ गया जब रूस ने विमानवाहक पोत एडमिरल गोर्शकोव (आईएनएस विामादित्य) की सुपुर्दगी में देरी के साथ तय कीमत से अधिक धन की मांग कर दी। इसके बाद दोनों देशों के मध्य कई दौर की वार्ताएं हुईं। रक्षा सचिव विजय सिंह व नौसेना अध्यक्ष सुरेश मेहता ने मास्को का दौरा करके गोर्शकोव की री-फिटिंग का आकलन किया। भारत ने रूस से 44570 टन के इस विशाल जंगी पोत का सौदा 94.70 करोड़ डॉलर में किया था। मूल सौदे में 700 किमी. केबल बदलनी थी लेकिन अब 2400 किमी. केबल बदले जाने की ़जरूरत महसूस हुई है। इसके अलावा पोत का विशाल मिसाइल लांचर हटाकर उसके स्थान पर लड़ाकू विमान की उड़ान भरने लायक स्की जम्प रनवे भी बनाना है। इस तरह युद्घपोत की री-फिटिंग लागत 50 करोड़ से 700 करोड़ डॉलर तक बढ़ सकती है। यह लागत चुकाने की मंजूरी का प्रस्ताव कैबिनेट के पास भेजा जा चुका है। गोर्शकोव के समुद्री परीक्षण पर करोड़ों रुपये खर्च होने का अनुमान है। इसलिए कुछ परीक्षण भारत में ही करने का विचार है जिससे लागत को अंकुश में रखा जा सके।
गोर्शकोव का विवाद तो कुछ हद तक सुलझा लिया गया लेकिन रूस से खरीदे जाने वाले 80 एमआई-17 (4) हेलीकॉप्टरों की खरीद में भी विवाद सामने आया है। ऊँचे पहाड़ी इलाकों की ़जरूरत के लिए खरीदे जाने वाले इन हेलीकॉप्टरों में भारत की ़जरूरत के हिसाब से विशेष एवियानिक्स के लिए रूस अब ज्यादा कीमत की मांग कर रहा है। रूस से इन हेलीकॉप्टरों का सौदा लगभग 66.2 करोड़ डॉलर में तय हुआ था। इस सौदे को इस साल के अंत तक अंतिम रूप दिया जाना है। इन हेलीकॉप्टरों में जो एवियानिक्स, हथियार व उपकरण लगने हैं उनकी कीमत पर बातचीत जारी है लेकिन रूस ने जिस तरह से 35 करोड़ डॉलर अधिक मांगे हैं उससे रक्षा मंत्रालय की चिंता बढ़ गई है। इस मसले को सुलझाने के लिए तीन-चार बैठकें हो चुकी हैं लेकिन कोई हल नहीं निकल सका है।
दरअसल एमआई-17 हेलीकॉप्टरों के रिटायर होने की वजह से नये हेलीकॉप्टर खरीदे जा रहे हैं और भारतीय वायुसेना ने उन्नत किस्म के एमआई-17(4) हेलीकॉप्टरों की खरीद के लिए सहमति दे दी थी। यह हेलीकॉप्टर वायुसेना की उम्मीदों पर खरा उतरा है। इस मामले में यह सच है कि संसार में इस तकनीक वाले हेलीकॉप्टर सस्ते नहीं हैं लेकिन रूस मूल प्रस्ताव से ज्यादा पैसे मांग रहा है। इसलिए वायुसेना व थल सेना के लिए जो 350 हल्के हेलीकॉप्टर लिये जाने हैं, उनके लिए निविदा प्रस्ताव जारी नहीं किया गया है। इसके जरिए रूस पर यह दबाव बनाया जा रहा है कि अगर उसने कीमत कम नहीं की तो भारत एमआई-17(4) के सौदे को रद्द कर हल्के हेलीकॉप्टरों के साथ ही अंतर्राष्टीय निविदा प्रस्ताव मंगवा सकता है।
रूस के साथ रक्षा उपकरणों की खरीदारी के कुछ अन्य मामलों में भी इसी तरह की स्थिति है। गौरतलब है कि रूस से 310 टी-90 टैंक थल सेना के लिए खरीदे गए थे। इसमें से 120 टैंक तैयार हालत में लिए गए थे। शेष अलग-अलग पुर्जों के रूप में आने थे जिनको भारत में तैयार किया जाना था। चूंकि स्वदेशी टैंक अर्जुन के निर्माण मे देरी हो रही थी इसलिए रूस से 310 टी-90 टैंक और खरीदने का समझौता कुछ समय पहले हुआ। लेकिन रूस शत-प्रतिशत प्रौद्योगिकी हस्तांतरण नहीं कर रहा है। इस टैंक के प्रयोग में लाए जाने वाले धातु, कर्म-कौशल (मेटैलर्जी) तथा आर्मर प्लेट देने में पीछे हट रहा है। इस मामले को जब रूस के सामने उठाया गया तो रूस ने कहा कि वह कोई रास्ता निकालेगा। अब भारतीय आयुध कारखानों में धातु, कर्म-कौशल व आर्मर प्लेट बनाये जाने की तैयारी जारी है।
इसी तरह आईएल-38 जासूसी विमानों की आपूर्ति पर विवाद हुआ। रक्षा सूत्रों के मुताबिक कार्य प्रदर्शन के दौरान वे खरे नहीं उतरे। ये जासूसी विमान पनडुब्बी का पता लगाने में सक्षम हैं। इसलिए भारतीय नौसेना ने तीन आईएल-38 खरीदने का निर्णय लिया लेकिन इनमें से एक भी सटीक ढंग से कार्य नहीं कर रहा था। अतः नौसेना ने तब तक के लिए भुगतान रोक दिया जब तक इनकी कमियों को दूर नहीं किया जाएगा। रूस के तलवार श्रेणी के तीन युद्घपोत लिए जा रहे हैं। ये शत्रु के टोही विमानों व राडारों की पकड़ में नहीं आते हैं। इनकी यह भी विशेषता है कि ये 30 दिनों तक समुद्र के अंदर बने रहने में सक्षम हैं लेकिन इन युद्घपोतों के पेंदे में होने वाले कंपन एवं इनसे उड़ान भरने वाले केए 31 हेलीकॉप्टरों की उड़ान में समस्या आ रही है। जब तक यह समस्या दूर नहीं हो जाती, तब तक इनकी आपूर्ति में विलम्ब बना रहेगा।
भारतीय रक्षा वैज्ञानिक परमाणु पनडुब्बी तैयार करने वाले हैं। इनके कुशल संचालन हेतु नौसेना के चालक दल का प्रशिक्षित होना ़जरूरी है। इसके लिए रूस से परमाणु हथियारों से सज्जित पनडुब्बी लेने की बात निश्र्चित हुई थी लेकिन रूस इसे देने में विलम्ब कर रहा है। इसी तरह रूस के किलो वर्ग की पनडुब्बियां देने में देरी के संकेत हैं। इन पनडुब्बियों से जमीन पर मिसाइलें दागना संभव है। इनकी कमी यह है कि इनसे छोड़ी जाने वाली मिसाइलें परीक्षण के दौरान अपने लक्षित निशानों से कई किमी दूर जाकर गिरीं। जबकि इनकी विशेषता यह है कि पनडुब्बी से दागे जाने पर 400 किग्रा विस्फोटक सामग्री के साथ 300 किमी की दूरी तक अपने लक्ष्य को ढहा सकती हैं।
इन स्थितियों से आहत रक्षा मंत्री एके एंटनी कहते हैं कि एक ही देश पर निर्भर रहने का हमारा पिछला अनुभव खराब रहा है। जब ऐसे हालात हों तो हमें बहुत मजबूती के साथ आत्मनिर्भर होने की ़जरूरत है। इसीलिए रक्षा सौदों के साथ आफसेट शर्त लगाई गई है जिसके तहत विदेशी कंपनियों को सौदे का 30 से 50 प्रतिशत भारत के रक्षा उद्योग में लगाना पड़ेगा तभी भारत रक्षा क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ेगा।
– डॉ. एल.एस. यादव
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