पाकिस्तान की ओर से जरदारी के बयान पर लीपापोती

आ़िखरकार वही हुआ जिसकी आशंका “डेली हिन्दी मिलाप’ ने अपने कल के संपादकीय में व्यक्त की थी। “वाल स्टीट जर्नल’ को दिया गया साक्षात्कार, जिसमें पाकिस्तान के राष्टपति आसिफ अली जरदारी ने कश्मीर के उग्रवादियों को “आतंकवादी’ बताया था और कहा था कि पाकिस्तान को भारत की ओर से कोई खतरा नहीं है, पाकिस्तान की राजनीति में एक जलजले का वायस बन गया है। उनके इस बयान की आलोचना और निन्दा का बाजार मुल्क के हर हिस्से में गर्म है। कश्मीर घाटी में तो इस बयान की प्रतििाया में उनका पुतला भी फूंका गया है। दैनिक मिलाप ने अपने संपादकीय में जरदारी के इस बयान का स्वागत करते हुए भी यह आशंका प्रकट की थी कि राष्टपति इसे पाकिस्तान में व्यापक तौर पर सहमति दिला सकेंगे, इसमें संदेह की गुंजाइश है। आशंका यह भी व्यक्त की गई थी कि जरदारी का यह बयान अन्तर्राष्टीय दबाव, खासकर अमेरिका के चलते सामने आया है। फिर भी चूँकि यह बयान एक देश के राष्टाध्यक्ष का बयान था, इसलिए आशंकाओं के बावजूद भारत सहित विश्र्व समुदाय ने इसके प्रति सकारात्मक प्रतििाया का इ़जहार किया था और यह माना था कि बदलती राष्टीय और अन्तर्राष्टीय परिस्थितियों के संदर्भ में पाकिस्तान ने अपनी पूर्व की नीतियों से छुटकारा पाने का मन बनाया हो सकता है।

लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। राष्टपति ़जरदारी के उस बयान को पाकिस्तान की ओर से आधिकारिक तौर पर यह कहते हुए ़खारिज कर दिया गया कि पाकिस्तान की कश्मीर के प्रति पूर्व घोषित नीति यथावत कायम है। आधिकारिक बयान में यह भी कहा गया है कि राष्टपति ने कभी भी कश्मीर के जाय़ज संघर्ष को “आतंकवाद की अभिव्यक्ति’ नहीं कहा है। गऱज यह कि जरदारी के इस बयान से पीछा छुड़ाने के लिए उसी राजनीतिक परंपरा का सहारा लिया गया है जिसमें राजनेता सारी जिम्मेदारी मीडिया पर डालकर, कि उनके बयान को तोड़-मरोड़ कर अथवा उनके कथन को गलत व्याख्या के साथ, संदर्भ से काट कर प्रस्तुत किया गया है, अपना दामन साफ बचा ले जाते हैं। ताज्जुब की बात यह भी है कि ़खुद ़जरदारी अपने दिये गये बयान से नहीं मुकरे हैं। उन्होंने अपनी आलोचनाओं के चलते चुप्पी साध रखी है। लेकिन खाल बचाने के लिए बयान पाकिस्तान सरकार के अधिकारी दे रहे हैं। जो भी हो, ़जरदारी के इस बयान की मु़खालफत और लीपापोती पाकिस्तान में चाहे जितनी हो, लेकिन उनके बयान का भारत सहित अन्तर्राष्टीय स्तर पर जो संकेत प्रसारित हुआ है, उसने पाकिस्तान की यथास्थिति को उभारने के साथ ही उसकी राजनीतिक विसंगतियों को भी सतह पर ला दिया है।

पाकिस्तान कई दशकों से आतंकवाद की प्रयोगशाला बना हुआ है। जिस आग का ईजाद उसने दूसरों का घर जलाने के लिए किया था, वह आग अब खुद उसका भी घर जलाने पर आमादा है। अन्तर्राष्टीय स्तर पर पाकिस्तान अपनी सा़ख खो चुका है। उसकी पहचान सिर्फ मजहबी कट्टरता और उसके गर्भ से उपजे “आतंकवाद’ तक सीमित रह गई है। अगर वह प्रयासपूर्वक अपनी इस छवि से बाहर नहीं आता है तो खुद उसके द्वारा पैदा की गई परिस्थितियॉं, उसके लिए घातक सिद्घ होंगी। यह जरूर है कि शक्तिशाली अमेरिका ने उसे आतंकवाद के ़िखलाफ लड़ाई में अपना सहयोगी बनाया है, लेकिन उसे यह याद रखना होगा कि अमेरिका की यह दरियादिली इस बात का सबूत नहीं है कि वह पाकिस्तान की असलियत से बे़खबर है। यह सिर्फ उसकी रणनीति का एक हिस्सा है क्योंकि वह अलकायदा और तालिबान का नेटवर्क तोड़ना चाहता है और ओसामा बिन लादेन को जिन्दा या मुर्दा हासिल कर 9/11 के चलते धूल-धूसरित हुई अपनी साख को फिर से कायम करना चाहता है। पाकिस्तान को यह भी समझना होगा कि चीन ने पाकिस्तान की पीठ पर जो हाथ रखा है, वह इसलिए नहीं कि पाकिस्तान के प्रति उसका कोई भावनात्मक लगाव है। पाकिस्तान का इस्तेमाल करने के पीछे उसकी एक ही मंशा है कि अन्तर्राष्टीय स्तर पर वह भारत के बढ़ते वर्चस्व को सीमित कर सके। गऱज यह कि चीन की कूटनीति पाकिस्तान-प्रेम से न संचालित होकर भारत-विरोध से संचालित है।

पाकिस्तान को यह भी समझ लेना होगा कि अमेरिका हो या चीन दोनों ही उसका इस्तेमाल कर रहे हैं, उसका हितैषी कोई नहीं है। भारत उसका पड़ोसी ही नहीं है, सच्चे अर्थों में वह पाकिस्तान का इतिहास भी है। दोनों देश एक सांस्कृतिक इकाई के अलग-अलग प्रतिबिम्ब हैं। इस अर्थ में पाकिस्तान को अंतिम रूप से यह समझना होगा कि वैश्र्विक स्तर पर अगर कोई उसका हितैषी हो सकता है तो वह भारत के अलावा अन्य कोई नहीं होगा। जरदारी का बयान सही मायने में इसी सच्चाई का इ़जहार है। पाकिस्तान की ओर से आज भले ही कहा जा रहा हो कि राष्टपति ने कश्मीरी उग्रवादियों को “आतंकवादी’ नहीं कहा और यह भी नहीं कहा कि भारत की ओर से पाकिस्तान को कोई खतरा नहीं है, लेकिन उसके लिए जरदारी के इस बयान से मुकरना मुश्किल है कि कश्मीर-समस्या को अगली पीढ़ी के लिए छोड़ कर भारत-पाकिस्तान को अपने संबंधों का विकास अन्य क्षेत्रों में तलाश करना चाहिए। अपने संपादकीय में “मिलाप’ ने आशंका प्रकट की थी कि जरदारी के इस बयान को पाकिस्तान शायद ही पचा सके। वह आशंका सही सिद्घ हुई है। लेकिन इतना जरूर कहा जाएगा कि पाकिस्तान को आज नहीं तो कल राष्टपति आसिफ अली जरदारी के वक्तव्य को स्वीकृति देनी ही पड़ेगी।

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