वस्तुतः प्रेम की उत्पत्ति सृष्टि के प्रारंभ के साथ ही हो गयी थी। पृथ्वी पर मानव की रचना शायद उसी प्रेम का परिणाम थी। प्रेम, प्यार, मोहब्बत या चाहत जैसी कोमल संवेदनाएँ मानवीय जीवन की सहज अनुभूतियॉं थीं और हमेशा रहेंगी। आँखों के रास्ते उतरा प्रेम जब दिल में अपना मुकाम बना लेता है तो जीवन के मायने ही बदल जाते हैं। कौन जानता है कि जीवन के किस मोड़ पर कब किसको किससे और कैसे मोहब्बत हो जाये।
इश्क-विश्क, प्यार-मोहब्बत को फालतू की चीज समझने वाले अनिकेत ने कभी न सोचा था कि वह किसी अनजान हसीना के प्यार में इस कदर खो जाएगा कि स्वयं को भुला देगा।
उर्वशी एक हवा के झोंके की तरह ही तो आयी थी उसकी ़िंजदगी में, और उसके सारे आदर्श धरे के धरे रह गये थे। उसकी उन्मुक्त हंसी का वह दीवाना होकर रह गया था। वह आँखों के रास्ते दिल में समाती चली गयी थी। जब तक वह उसके साथ रही, अनिकेत ने उससे यथासंभव दूरी बना कर रखने की कोशिश की। उर्वशी ने हाथ बढ़ाना चाहा तो उसने निष्ठुरतापूर्वक उसका हाथ झटक दिया। लेकिन वह क्या गयी कि अनिकेत का दिल भी उसी के साथ चला गया। आज उसे गये पूरे पंद्रह दिन हो गये हैं। ऐसा कोई पल नहीं जब अनिकेत ने उसे याद न किया हो और हृदय की वेदना शब्दों के रूप में ढलने लगी। कौन कहता है कि उम्र बीते प्यार नहीं होता, हॉं ये अलग बात है कि इजहार नहीं होता। रात काफी गहरा चुकी थी, परंतु नींद उसकी आँखों से मीलों दूर थी। मन जीवन की किताब के पन्ने पलटने लगा।
अनिकेत मॉं के गर्भ में ही था कि एक हादसे में उसके पिता की मृत्यु हो गयी। विधवा मॉं पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा था। मॉं ने अनेक कष्ट सहते हुए उसकी परवरिश की थी। उसकी आँखों में बस एक ही सपना था कि वह पढ़-लिखकर ऊँचे से ऊँचा मुकाम हासिल करे और मॉं के समस्त दुःखों को धो दे। मॉं को वह सारी खुशियॉं लौटा देना चाहता था, जो कि बेरहम वक्त ने उसके हाथों से छीन ली थीं। छात्रवृत्ति की मदद से पढ़ाई करते-करते हुए उसने बोर्ड की परीक्षा में जिले में प्रथम स्थान प्राप्त किया। उसकी सफलता ने मॉं का सिर गर्व से ऊँचा कर दिया था।
अनिकेत की इच्छा थी कि वह आईएएस ऑफिसर बने। इस मुकाम को हासिल करने के लिए उसने दिन-रात एक कर दिया था और उसकी मेहनत रंग लाई थी। अखबार की टॉपर्स लिस्ट में उसका नाम तथा फोटो देखकर मॉं के पॉंव जमीन पर नहीं थेे।
अब उसके जीवन में किसी चीज की कमी नहीं थी। अनेक व्यस्तताओं के बावजूद वह लिखने के लिए कुछ न कुछ समय अवश्य निकाल लेता था, क्योंकि लिखना उसकी आत्मा की भूख थी।
उसके लिए रईस घरों के रिश्ते आये थे, परंतु वह एक ऐसी लड़की से शादी करना चाहता था, जो उसके साथ-साथ उसकी विधवा मॉं का भी ध्यान रखे, फिर चाहे पॉंच कपड़ों में ही उसे दुल्हन बना कर क्यों न लाना पड़े।
आखिर नूपुर की मासूमियत भरी सुंदरता अनिकेत के मन को भा गयी थी और वो कभी न टूटने वाले बंधन में बंध गये थे। नूपुर को पत्नी के रूप में पाकर अनिकेत स्वयं को धन्य समझने लगा था। वह उसकी और मॉं की छोटी से छोटी इच्छा का ध्यान रखती थी। अधिकतर व्यस्तता के कारण उसे पर्याप्त समय न दे पाने का अपराध-बोध अनिकेत के मन में हमेशा बना रहता था।
नूपुर मॉं बनने वाली थी, परंतु पता नहीं कैसे बच्चे को जन्म देते समय उसकी हालत अचानक बिगड़ने लगी और उसने अपनी खूबसूरत आँखें सदा के लिए बंद कर लीं ।
अनिकेत का हंसता-खिलखिलाता जीवन बियावान-वन की तरह हो गया। विरह-वेदना के दंश ने उसे वैरागी बना दिया। धीरे-धीरे वह लेखन के गहन समंदर में डूबता चला गया। देश-विदेश की साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में छपने वाले लेखों और कहानियों ने उसके हजारों प्रशंसक बना दिये। लोगों की इस भीड़ में अनिकेत की मुलाकात उर्वशी से हुई।
शिमला की साहित्य अकादमी द्वारा अनिकेत को पुरस्कृत किया जाना था। पुरस्कार ग्रहण करने के बाद वह जैसे ही मंच से नीचे उतरा तो उर्वशी उसकी बगल में आकर खड़ी हो गयी थी। उसे देखकर एक पल के लिए तो वह पलक झपकाना ही भूल गया था।
“”नमस्ते मि. अनिकेत! मैं उर्वशी, शायद आपने ठीक से पहचाना नहीं।” वह बड़ी शोख अदा से अनिकेत की ओर देखते हुए उसने कहा।
“”माफ करना मैं आपका अभिप्राय नहीं समझा।” अनिकेत ने उर्वशी से कहा।
“”श्रीमान् मैं आपकी कहानियों की स्कैच आर्टिस्ट हूँ, क्या आपने कभी कहानी स्कैच के नीचे लिखा मेरा नाम नहीं पढ़ा?” उर्वशी ने पूछा।
“”ओफ, तो आप हैं उर्वशी! सोचा न था आपसे यूं मुलाकात होगी।”
“”बाई द वे, आपका शिमला में कितने दिनों का प्रोग्राम है?”
“”तीन दिन के बाद दिल्ली वापस लौटना है।”
“”हां, कहां ठहरे हैं आप?”
“”होटल मधुवन पैलेस में” अनिकेत ने संक्षिप्त-सा जवाब दिया था।
शाम में ढलते सूरज की रोशनी में पर्वतों का दृश्य बेहद मनमोहक लग रहा था। अपने कमरे की विशाल खिड़की से अनिकेत इस अद्भुत सौंदर्य का नजारा ले रहा था कि उर्वशी आ गयी। उसने कट-स्लीव कढ़ाईदार जैकेट और चूड़ीदार पजामा पहन रखा था। ऊँची एड़ी के जूते और लहलहाते बालों में वह किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी। न जाने क्यों उसे देखकर अनिकेत का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा था। अपने मनोभावों पर नियंत्रण रखकर अनिकेत ने उसे सामने रखी सोफा-चेयर पर बैठ जाने का संकेत किया।
“”बहुत दिनों से सोच रही थी कि काश उससे मुलाकात हो, जिसकी रचनाओं पर स्कैच बनाती रही हूँ। आज सपना सच हो गया।” उसने गहरी नजरों से अनिकेत की ओर ताकते हुए कहा। (ामशः)
– यशेंद्र भारद्वाज
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