ब्रज कोई स्थान विशेष का नाम नहीं है, बल्कि यह तो सांस्कृतिक वैभव की पराकाष्ठा का साक्षात् स्वरूप है। भारत का हृदय स्थल है। वस्तुतः संस्कृति की जड़ों का लम्बा-चौड़ा परिसर है यह, जिसका क्षेत्रफल करीब चौरासी कोस माना जाता है। तीन किलोमीटर को एक कोस कहते हैं। ब्रज चूंकि चौरासी कोस की परिधि में आता है, इस प्रकार से यह दो सौ पचास किलोमीटर से भी अधिक क्षेत्र में फैला है, जिसमें कई राज्यों की सीमाएं लगती हैं। राजस्थान, उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश के कई क्षेत्र ब्रज के अंग माने जाते हैं। मथुरा, वृंदावन, गोकुल, दाऊजी, नंदगांव, बरसाना, गोवर्धन, कामवन, डींग, भरतपुर, एटा, गुड़गांव, मेरठ आदि में ब्रज की संस्कृति का साक्षात् स्वरूप देखा जा सकता है।
भगवान श्रीकृष्ण के ब्रज में जन्म लेने तथा लीलाओं के ामिक विकास करने के कारण यह धरा पुण्यमयी मानी जाती है। इसी कारण यहां लाखों नर-नारी देश-विदेश से प्रतिवर्ष दर्शन एवं तीर्थाटन हेतु आते हैं। ब्रज क्षेत्र में ब्रज भाषा, रहन-सहन, खान-पान, वेशभूषा आदि सब-कुछ संस्कृति के सांचे में ढले प्रतीत होते हैं। ब्रज क्षेत्र के तीर्थों आदि के दर्शन का चलन हमारे देश में दो प्रकार से है। एक प्रकार से तो वह, जिसमें आस्तिक मोटर, बस, रेल इत्यादि द्वारा यात्रा करता है और दूसरे प्रकार से वह जिसमें भक्तगण पैदल ही चौरासी कोस की ब्रज-परिामा करते हैं। पदयात्रा में भी अधिकांशतः तो यह प्रयत्न करते हैं कि सम्पूर्ण ब्रज क्षेत्र की परिामा की जाए, मगर यह दुरुह है। कारण यह है कि यात्रा के अन्तर्गत भक्तगणों से वैष्णव पद्घति के अनुसार मानी जाने वाली आचार संहिता की पालना की अपेक्षा रहती है, जिसमें धरती पर सोना, नित्य स्नान करना, ब्रह्मचर्य का पालन, नित्य पूजा-पाठ, जूते-चप्पल का त्याग, सात्विक एवं फलाहार का सेवन, ाोध, लोभ, मोह, मद, मिथ्या भाषण आदि दुर्गुणों का त्याग इत्यादि कुल मिलाकर 36 नियम हैं, जो जन-साधारण के बूते की बात नहीं है। फलस्वरूप आस्तिकों का ऐसा भी वर्ग होता है, जो केवल ब्रज क्षेत्र के एक ही अथवा एक से अधिक क्षेत्रों की पद-यात्रा कर लेता है अगर कोई भक्तगण किसी भी ब्रज क्षेत्र की पद-यात्रा नहीं कर पाए तो ऐसे में वह गोवर्धनगिरि की अवश्य ही परिामा करता है। ब्रज क्षेत्र में आस्तिकों के लिए धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान निम्नलिखित हैं-
मथुराः उत्तर प्रदेश का पश्र्चिमी सीमान्त क्षेत्र है यह, जिसकी सीमाएं राजस्थान व हरियाणा की सीमाओं से स्पर्श करती हैं। यह नगर यमुना नदी के पश्र्चिमी तट पर बसा है। धार्मिक दृष्टि से सनातन धर्म में इसका महत्वपूर्ण स्थान है। कई बार ध्वंस की पीड़ा झेल चुके, मथुरा नगर को मधु नामक दैत्य ने बसाया था। कालान्तर में भगवान श्रीकृष्ण ने विष्णु अवतार के रूप में जन्म लेकर आततायी कंस का यहां से नामोनिशान मिटा दिया। कृष्ण जन्म के कारण यहां के कण-कण में धर्म-भावना व्याप्त है। यह नगर दिल्ली व आगरा के नजदीक पड़ता है। दिल्ली के निकट होने का इस नगर को कई बार खामियाजा भी उठाना पड़ा है। अनेक आामण तथा ध्वंस की पीड़ा झेल चुके इस नगर में अनेक दर्शनीय स्थल हैं, जिसमें श्रीकृष्ण जन्मभूमि, द्वारिकाधीश मंदिर, यमुना नदी, विश्राम घाट, पुरातत्व संग्रहालय सहित अन्य छोटे-बड़े मंदिर दर्शनीय हैं। ठहरने के लिए यहां पर्याप्त सुविधाएं हैं तथा सभी प्रकार के खाने-पीने का बंदोबस्त आसानी से हो जाता है।
वृन्दावनः ब्रज क्षेत्र के पवित्रतम् स्थानों में से यह एक है, जो राधाकृष्ण की रासलीलाओं का साक्षी है। वृन्दावन, कुंज गलियों, विशाल परिसरों में स्थित मंदिरों, मठों तथा आश्रमों का शहर है यह, जहां धार्मिक आस्था की दिव्य अनुभूति होती है। मथुरा से यहां मात्र आधा घण्टा में पहुंचा जा सकता है। यह वह स्थान है, जहां परिवार तथा साधनों से सम्पन्न व्यक्ति अपना वानप्रस्थी जीवन बिताना चाहते हैं। शांति और सुकून का यह शहर विदेशियों के लिए भी आकर्षण का केन्द्र है। यहां सैकड़ों ऐसे आस्तिक मिल जाएंगे, जो अपना वानप्रस्थी जीवन शांति व सुकून के साथ मठों, आश्रमों या मंदिरों में इस भाव से बिता रहे हैं कि उन्हें शायद मोक्ष मिल जायेगा अथवा अथाह पुण्य की प्राप्ति होगी। यहां के श्रीबांकेबिहारी, रंग जी, गोविन्द देवजी, राधारमणजी, गोपेश्र्वर जी सहित अनेक मंदिर हैं, जो लोक-लोचनों को बरबस अपनी ओर आकृष्ट करने से नहीं चूकते। मंदिरों के अलावा सनोरख, कालीदह, द्वादश आदित्य टीला, अद्वैतवट, शृंगारवट, सेवाकुंज, चीरघाट, रास मण्डल, किशोर वन, बंशीवट, राधाबाग, ज्ञानगुदड़ी आदि अन्य दर्शनीय स्थल भी हैं जिनके आस्तत्व की अपनी-अपनी पौराणिक कथाएं हैं। वर्तमान वृन्दावन के बारे में विद्वान एक राय नहीं हैं। ऐसा माना जाता है कि श्रीकृष्ण जी के प्रपौत्र ब्रजनाभ ने इसे बसाया था, हालांकि सम्पूर्ण ब्रज क्षेत्र की स्थापना भी ब्रजनाभ द्वारा ही की जानी मानी जाती है, मगर कथा के हिसाब से वृन्दावन का बसाव गोवर्धन पर्वत से दूर होने के कारण, अनेक विद्वान इसे प्राचीन वृन्दावन नहीं मानते। कारण यह है कि गोवर्धनगिरि का घटनााम कृष्ण-कथा से जुड़ा हुआ है। वस्तुतः यह अलग सत्य है कि ब्रज क्षेत्र की यह धार्मिक नगरी धार्मिक व पर्यटन की दृष्टि से खूबसूरत व महत्वपूर्ण अवश्य है, जो बरबस लोक-लोचनों को अपनी ओर आकृष्ट करती है।
गोवर्धन पर्वतः मथुरा से यह 21 किलोमीटर दूर राजस्थान के भरतपुर जिले की सीमा से सटा है। यहां गोवर्धन पर्वत स्थित है, जिसे इन्द्र के प्रकोप से बचाने हेतु भगवान श्रीकृष्ण ने अंगुल पर धारण किया था। यहां सप्तकोसी परिामा का धार्मिक दृष्टि से बड़ा महत्व है। भक्तगणों का वर्ष भर यहां तांता लगा रहता है तथा परिामा का परिभ्रमण भी पूरे वर्ष चलता रहता है। गोवर्धन पर्वत के अलावा मुखारविन्द, मानसी गंगा, मनसा देवी, दानघाटी आदि यहां के अन्य दर्शनीय स्थल हैं।
गोकुलः यमुना पार सादाबाद रोड पर मथुरा से 10 किलोमीटर दूर भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं की यह पवित्र स्थली है। श्रीकृष्ण का बचपन यहीं पर बीता था। यहां के दर्शनीय स्थलों में नन्द भवन, गोकुलनाथ मंदिर, ठकुरानी घाट, सात स्वरूपों की बैठक, बलदेवजी का मंदिर, योगमाया, छठी पूजन, उखलबंधन आदि प्रमुख हैं।
दाऊजीः मथुरा से 21 किलोमीटर पूर्व में स्थित यह कस्बा भगवान श्रीकृष्ण के भ्राता दाऊजी के नाम से बसा है। यहां बलदेव जी की श्याम रंग की विशाल मानवाकार मूर्ति विराजमान है। यह मंदिर काफी बड़े क्षेत्र में फैला हुआ है। यह नक्कारखाने के लिए भी प्रसिद्घ है, जिसे औरंगजेब ने भेंट किया था। ऐसी मान्यता है कि जब औरंगजेब की सेना दाऊजी तीर्थ को नष्ट करने हेतु यहां पहुंची थी, तब असंख्य भौंरों ने उस पर आामण कर दिया था। इस कारण से सेना मंदिर तक नहीं पहुंच पाई फलस्वरूप यह विध्वंस की पीड़ा का शिकार नहीं हो सका। यहां माखन-मिश्री तथा भांग का भोग लगता है। चैत्र कृष्ण द्वितीया को यहां होली का प्रसिद्घ “होरंगा मेला’ होता है। रमन रेती, महावन, डीग, भद्रवन, नन्दगांव, बरसाना, राधाकुण्ड, संकेत, मोहनीवन आदि ब्रज क्षेत्र के अन्य दर्शनीय स्थल हैं, जिनके प्रति किसी न किसी प्रकार से आस्तिकों की आस्थाएं जुड़ी हैं तथा जिनकी कथाएं जन-मानस के हृदय में अवस्थित हैं।
– पवन कुमार कल्ला
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