इस्लामिक बैंकिंग

सउदी अरब, मलेशिया, कुवैत, अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, थाईलैंड, मोरक्को, ट्यूनीशिया। ये दुनिया के 41 देशों में से उन कुछ देशों के नाम हैं जहां ब्याज रहित इस्लामिक बैंकिंग व्यवस्था बहुत तेजी से लोकप्रिय हो रही है। साथ ही इससे भी बड़ी सूची उन देशों की है जहां बहुत जल्द इस्लामिक बैंकिंग व्यावहारिक रूप में दिखेगी। भारत भी उन देशों में एक हो सकता है। 25 जून को राजधानी दिल्ली में इस्लामिक इंडेक्स की शुरूआत के साथ ही देश में इस्लामिक बैंकिंग की अप्रत्यक्ष आधिकारिक नींव रखी जा चुकी है।

वैसे तकरीबन 60 करोड़ पूंजी के साथ 10 निजी बैंक पहले से ही इस्लामिक बैंकिंग प्रणाली के मुताबिक हिन्दुस्तान में कामकाज कर रहे हैं। एक चौंकाने वाली बात यह है कि भारतीय जीवन बीमा निगम ने कई मुस्लिम देशों में ब्याज रहित बीमा योजनाएं पेश की हैं लेकिन अभी हिन्दुस्तान में वह इस तरह की किसी योजना को पेश करने की स्थिति में नहीं है। 25 जून को जारी हुआ इस्लामिक इंडेक्स देश की एक कैपिटल एडवाइजर कंपनी ईस्टविंड कैपिटल एडवाइजर्स लिमिटेड ने इंडो-अरब आर्थिक सहयोग मंच तथा इंस्टीट्यूट ऑफ आब्जेक्टिव स्टडीज के साथ मिलकर शुरू किया है। इसमें बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) तथा नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) में सूचीबद्घ कंपनियों में से 664 कंपनियों को छांटकर रखा गया है। इस्लामिक इंडेक्स दरअसल नैतिकता का एक पैमाना है। इन कंपनियों को इस पैमाने पर खरे पाए जाने का एक तरह से सर्टिफिकेट दिया गया है।

जिन कंपनियों को इस इस्लामिक इंडेक्स में शामिल किया गया है उनका साझा बाजार पूंजीकरण 41,46,880 करोड़ रुपये है। इसमें 9 बोर्ड सेक्टर और 68 सब-इंडस्टीज शामिल हैं। अगर इन कंपनियों को कैप के हिसाब से वर्गीकृत करें तो इस इस्लामिक इंडेक्स में 52 हाई कैप, 236 मिड कैप, 205 स्मॉल कैप और 151 माइाो कैप कंपनियां शामिल हैं। सूचकांक जारी करने वाली ईस्टविंड कैपिटल के मुताबिक निवेशक इस इस्लामिक इंडेक्स का इस्तेमाल खुदरा और संस्थागत निवेश के लिए कर सकेंगे।

सवाल है, आखिर यह इस्लामिक इंडेक्स क्या है? इस्लामिक इंडेक्स को समझने से पहले जरूरी है कि हम इस्लामिक सिस्टम ऑफ बैंकिंग को समझें। इस्लाम में 1400 साल पुरानी एक वित्त व्यवस्था है जिसके तीन प्रमुख पहलू हैं। पहला और प्रमुख पहलू है, उन गतिविधियों से अपने आपको दूर रखना जिसे इस्लाम में बुरा या पाप से भरा माना गया है। उदाहरण के लिए जुआ खेलना, शराब पीना और सुअर का गोश्त खाना। इसका दूसरा पहलू है, ब्याज न लेना और तीसरा पहलू है, अनिश्र्चित व जोखिमभरी गतिविधियों से दूर रहना। इस्लामिक इंडेक्स दरअसल इन्हीं तीनों पहलुओं पर खरा उतरने वाली कंपनियों का शेयर सूचकांक है। यह ऐसे निवेशकों की निवेश में मदद कर सकता है जो इस्लाम या फिर नैतिक वित्त व्यवस्था पर आधारित कंपनियों में अपना पूंजी निवेश करना चाहते हैं। भारत में फिलहाल सरकारी स्तर पर इस्लामिक बैंकिंग व्यवस्था मौजूद नहीं है। लेकिन अब शुरू किया गया इस्लामिक इंडेक्स वास्तव में भारत में इस्लामिक बैंकिंग व्यवस्था की शुरुआत का एक जरिया बन सकता है।

सवाल है, क्या तेजी से विकास कर रहे भारत जैसे देश को एक इस्लामिक बैंकिंग व्यवस्था की जरूरत है? अगर इस्लामिक बैंकिंग व्यवस्था के वैश्र्विक प्रदर्शन को देखें तो कहना चाहिए-हां, है। अर्थशास्त्रियों और वित्त विशेषज्ञों का अनुमान है कि इस्लामिक बैंकिग जिस तेजी से लोकप्रियता हासिल कर रही है उसको देखते हुए आने वाले एक दशक में पूरी दुनिया का अर्थतंत्र इस्लामिक और गैर इस्लामिक दो खेमों में बंट सकता है। वास्तव में अगर इस्लामिक बैंकिंग या वित्तीय व्यवस्था का सिर्फ मुस्लिम देशों में ही विस्तार हो रहा होता तो इसके पूरी दुनिया में छा जाने को लेकर आशंकाएं रहतीं। मगर सच यह है कि इस इस्लामिक वित्त व्यवस्था को मुसलमानों की तरह गैर मुसलमानों का भी बड़े पैमाने पर समर्थन मिल रहा है। मलेशिया में इस्लामिक बैंकों में निवेश करने वाले 20 प्रतिशत के आसपास गैर मुसलमान हैं और कुवैत स्थित इसी मलेशियाई बैंक की शाखा में 40 फीसदी पैसा जमा करने वाले और 60 फीसदी कर्ज लेने वाले गैर मुस्लिम हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस्लामिक बैंकिंग व्यवस्था मुसलमानों की तरह गैर मुसलमानों के बीच भी तेजी से पूरी दुनिया में लोकप्रिय हो रही है।

वास्तव में 9/11 के बाद मध्यपूर्व के तमाम देशों ने अमेरिका और यूरोप के बैंकों से बड़े पैमाने पर अपना पैसा निकाल लिया। यही हाल अमेरिका और यूरोप में रहने वाले मुसलमानों का रहा है जिन्होंने यहां के बैंकों से अपना काफी मात्रा में पैसा निकाल लिया। यह रकम लगभग 800 अरब डॉलर से भी अधिक मात्रा में रही जिसे बड़े पैमाने पर उन देशों और उन वित्तीय संस्थाओं में निवेश किया गया जो इस्लामिक बैंकिंग के उसूलों के आधार पर चल रही थीं। यही नहीं, मुस्लिम देशों खासकर खाड़ी के देशों की महंगे हुए कच्चे तेल से बढ़ी भारी आय का भी बड़े पैमाने पर इन्हीं वित्त व बैंकिंग संस्थाओं में निवेश हुआ।

कुल मिलाकर दुनिया में लगभग 200 के आसपास ऐसे बैंक व वित्तीय संस्थान इस समय मौजूद हैं जिनमें 1000 अरब अमेरिकी डॉलर की पूंजी लगी हुई है और अनुमान है कि सन् 2010 तक यह दोगुना हो सकती है। चूंकि दुनिया के बड़े हिस्से में इस्लामिक वित्त व्यवस्था के प्रति लोगों में रूझान बढ़ा है और इस्लामिक बैंक व वित्तीय संस्थानों में भारी-भरकम पूंजी प्रवाह हो रहा है। इसलिए दुनिया के लगभग सभी बड़े बैंक या तो अपनी इस्लामिक बैंकिंग शाखाएं शुरू कर चुके हैं या शुरू करने का ऐलान कर चुके हैं। इसमें अमेरिका का सिटी बैंक, स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक, एसडीबीसी बैंक, एचएसबीसी और ब्रिटेन के मुख्य बैंक शामिल हैं। इन सभी बैंकों ने अपने यहां इस्लामिक बैंकिंग आधारित विंडोज खोले हैं। इस कारण अब बड़े पैमाने पर दुनिया के दूसरे बैंकों ने भी इस तरफ रूख किया है। लंदन, टोक्यो और हांगकांग के तमाम बड़े वित्तीय संस्थानों ने भी तेजी से इस्लामिक बैंकिंग सिस्टम को तवज्जो देना शुरू कर दिया है। सिटी बैंक ने तो बाकायदा “इस्लामिक बैंकिंग इन एशिया फॉर सिटी ग्रुप’ नाम से इसके लिए अलग से एक विभाग ही बना दिया है।

जहां तक भारत में इस्लामिक बैंकिंग सिस्टम को लेकर सुगबुगाहट का सवाल है, तो आपातकाल के बाद जब केन्द्र में जनता पार्टी की सरकार बनी थी तभी जमायते इस्लामी हिन्द ने भारत में ब्याज रहित इस्लामिक बैंकिंग प्रणाली के शुरू किए जाने का सुझाव दिया था। लेकिन तत्कालीन वित्तमंत्री एच.एम. पटेल ने ब्याज रहित बैंकिंग व्यवस्था को अव्यावहारिक बताकर इसे खारिज कर दिया था। लेकिन 2004 में जब केन्द्र में यूपीए सरकार बनी तो प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने इस्लामिक बैंकिंग व्यवस्था की संभावनाओं को तलाशने के लिए एक कमेटी का गठन किया। इस कमेटी के अगुआ रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के ऑपरेशन मैनेजर आनंद सिन्हा बनाए गए थे। इस कमेटी में देश-विदेश के कई बैंकिंग व वित्तीय मामलों के जानकारों को व इस तरह के संस्थानों के प्रतिनिधियों को शामिल किया गया था। इस कमेटी ने बाद में जो अपनी अध्ययन रिपोर्ट दी उसमें उसने कहा कि देश में इस्लामिक बैंकिंग के लिए मौजूदा कानूनों में संशोधन करना होगा जो कि फिलहाल संभव नहीं है। इसलिए इस संभावना को उन्होंने रद्द किए जाने के प्रति अपना निष्कर्ष जाहिर किया।

लेकिन इंडो-अरब सहयोग मंच के अध्यक्ष तथा इस्लामिक इंडेक्स को जारी करवाने में निर्णायक भूमिका निभाने वाले डा. मंजूर आलम कहते हैं कि जब ब्रिटेन ने इस बैंकिंग सिस्टम को लागू करने के लिए अब बाकायदा अपने मूलभूत बैंकिंग (व्यवस्था) संविधान में संशोधन कर लिया है तो भला भारत को दिक्कत क्यों होनी चाहिए। गौरतलब है कि ब्रिटेन में सन् 2004 में ही वहां की वित्तीय विनियामक संस्था की इजाजत से इस्लामिक बैंक ऑफ ब्रिटेन की स्थापना हो गई थी। कुल मिलाकर कहने की बात यह है कि जिस तरह तेजी से दुनिया में इस्लामिक बैंकिंग सिस्टम का विस्तार हो रहा है उसको देखते हुए बहुत ही जल्द भारत में भी इस्लामिक बैंकिंग व्यवस्था सरकार के स्तर पर दिखाई पड़ सकती है। शायद इसीलिए पिछले दिनों मंत्रिमंडल सचिव की अध्यक्षता में एक कमेटी का भी गठन किया गया है जिसमें पूर्व अधिकारियों सहित वित्त, कानून व राजस्व विभाग के सचिव भी शामिल किए गए हैं।

आखिर इस्लामिक बैंकिंग व्यवस्था इस कदर तेजी से दुनिया में लोकप्रिय क्यों हो रही है? इसका सबसे बड़ा आकर्षण है इसकी ब्याज रहित कर्ज देने की व्यवस्था। इस्लामिक बैंकिंग व्यवस्था में माना जाता है कि किसी को कर्ज उसके आर्थिक उत्थान के लिए दिया जाना चाहिए, उससे कमाने के लिए नहीं। लेकिन मौजूदा कर्ज नीति कर्ज लेने वाले से कमाने पर आधारित है। बैंक इसके लिए यह तर्क देते हैं कि अगर वह कर्ज देकर ब्याज नहीं लेंगे तो अपने आपको कैसे बरकरार रख पाएंगे। लेकिन इस्लामिक बैंकिंग व्यवस्था बजाय ब्याज लेने के लाभ के एक हिस्से पर साझीदारी करती है और उससे होने वाली आय के आधार पर अपने आप का आस्तत्व कायम रखती है। इस्लाम में एक नियम है कि उसके मानने वालों की साल में खाने-पीने की जरूरतों को पूरा करने के बाद जो दौलत बचती है, उस बची हुई दौलत में से ढाई फीसदी बतौर कर देना पड़ेगा जिसे जकात कहते हैं। इस्लामिक बैंकिंग व्यवस्था इस जकात के जरिए भी अपना फलना-फूलना जारी रखती है। अगर वास्तव में हिन्दुस्तान में इस्लामिक बैंकिंग व्यवस्था लागू हो जाए और उन करोड़ों जरूरतमंद लोगों को ब्याज रहित कर्ज हासिल हो जाए जो ब्याज के दुष्चा में फंसकर हर रोज आत्महत्या करने को मजबूर हो रहे हैं तो यह किसी ईश्र्वरीय चमत्कार से कम नहीं होगा। बहरहाल, गरीब फिलहाल उम्मीद ही कर सकते हैं कि जल्द ही उन्हें ऐसी व्यवस्था से कर्ज मिलने लगेगा।

 

– लोकमित्र

You must be logged in to post a comment Login