“गंगा एक्सप्रेस मार्ग’ उत्तर प्रदेश सरकार का एक प्रोजेक्ट है। जिसके तहत नोएडा और बलिया के बीच गंगा नदी के बाईं ओर आठ लेन की सड़क बनाई जाएगी। यहॉं हम इस प्रोजेक्ट के पर्यावरणीय पहलुओं की चर्चा करेंगे। यह प्रोजेक्ट दोआब की 10,47,000 र्ेर्8े7 वर्ग मीटर (5863 हैक्टेयर) कृषि भूमि को लील जाएगा। यह दोआब या सिंधु-गंगा का कछार अत्यंत उपजाऊ है। यह तब हो रहा है जब जमीन का एक बड़ा भाग अन्य कारणों से नष्ट हो रहा है और जब देश ही नहीं सारी दुनिया जनसंख्या विस्फोट की परेशानी का सामना कर रही है।
गौरतलब है कि हर साल गंगा नदी अरबों टन उपजाऊ मिट्टी लाती है, जो नदी के किनारों पर जमा होती जाती है। यह मिट्टी ही इस क्षेत्र के उच्च उपजाऊपन के लिए जिम्मेदार है। यहॉं पर बनने वाली सड़क पानी के सहज प्रवाह में एक रुकावट की तरह व्यवहार करेगी। परिणाम यह होगा कि नदी के पेंदे में भारी मात्रा में मिट्टी जमा हो जाएगी जिससे नदी का क्षेत्रफल कम हो जाएगा। बरसात के मौसम में जब पानी का बहाव बढ़ेगा तो वह अपना रास्ता खोज लेगा। यदि यह रास्ता शहरों की तरफ होगा तब इससे बाढ़ की स्थिति निर्मित हो जाएगी। कुछ साल बाद जब नदी के पेंदे में अत्यधिक मिट्टी जमा हो जाएगी तब गंगा का प्रवाह भी बदल जाएगा, जो शहरों से होकर गुजरेगा। तब साल भर बाढ़ की-सी स्थिति बनी रहेगी।
सिंधु-गंगा कछार इसीलिए उपजाऊ है क्योंकि यहॉं हर साल ताजा मिट्टी बहकर आती है। इसके अलावा गंगा नदी सिंचाई के लिए निरंतर पानी भी उपलब्ध कराती है। सड़क बनने के बाद इस बड़ी रुकावट के कारण दो प्रकार की हानियॉं होंगी। पहली यह कि सड़क की दूसरी तरफ का हिस्सा बिना पानी का रह जाएगा। चूंकि इससे लगी हुई पट्टी रेतीली है, इसलिए यह संभव नहीं लगता है कि किसी अन्य स्रोत से उस क्षेत्र में सिंचाई हो सकेगी। आने वाले कुछ सालों में यह मरुस्थल में तब्दील हो जायेगी। दूसरा, इस सड़क के निर्माण में काफी मिट्टी की जरूरत होगी। सामान्यतः मिट्टी आसपास के क्षेत्रों से ही खोदी जाती है। यानी इसके लिए आसपास की कृषि मिट्टी खोदी जाएगी, जो एक और परेशानी उत्पन्न कर देगी। इससे नदी के दूसरी ओर गड्ढे बन जाएँगे जिनमें बारिश का पानी जमा होगा। इससे मिट्टी में क्षारीयता और लवणीयता को बढ़ावा मिलेगा। उपरोक्त दोनों प्रिायाएँ ही रेगिस्तानीकरण को बढ़ावा देंगी। इसके अलावा ये डबरे जल-वाहित बीमारियों को बढ़ावा देंगे। जैसे डेंगू, मलेरिया, दिमागी बुखार आदि।
इस प्रोजेक्ट के योजनाकार यहां एक “निवेश क्षेत्र’ बनाना चाहते हैं। इसके किनारे वे 500 बड़े और 7000 छोटे उद्योग लगाने की सोच रहे हैं। इसमें “गंगा एक्सप्रेस मार्ग’ के बाजू का लगभग 10000 एकड़ का क्षेत्र चला जाएगा। इससे न केवल कृषि भूमि की कमी होगी बल्कि कारखानों से निकलने वाला मलबा व प्रदूषण सीधे गंगा में बहा दिया जाएगा।
नदियॉं अक्सर घुमावदार होती हैं। लिहाजा नदी के किनारे-किनारे सड़क बनाने से निर्माण व रख-रखाव की कीमत तो बढ़ेगी ही, तेल की खपत से यात्रा में खर्च और समय दोनों ज्यादा लगेंगे।
दरअसल, हमारा ध्यान टिकाऊ विकास की ओर होना चाहिए, न कि सिर्फ विकास की ओर। भारत कृषि प्रधान देश है, हमारा लक्ष्य यह होना चाहिए कि सभी को भरपेट खाना मिले। कारखाने सिर्फ ब्रेड बनाते हैं, अनाज नहीं उपजाते। एक वैकल्पिक सुझाव यह हो सकता है कि गंगा का उपयोग एक जल मार्ग के रूप में किया जाए। इससे आर्थिक नुकसान से बचाव तो होगा ही, जल संसाधन का भी बेहतर उपयोग हो पाएगा। इसमें प्रस्तावित प्रोजेक्ट की तुलना में मात्र 20 प्रतिशत खर्च होगा। यह यात्रा कम खर्चीली, प्रदूषण रहित व टिकाऊ होगी।
– शशि, जे. सिंह व अनिल के. द्विवेदी
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