परवेज मुशर्रफ से मुक्ति पाने के बावजूद पाकिस्तान की स्थिति दिन-ब-दिन चिंताजनक होती जा रही है। मिलिटेंट्स पर काबू पाने के लिए बाजोर व स्वात क्षेत्रों में सैन्य ऑपरेशन जारी है और हवाई हमलों को मद्देनजर रखते हुए लगभग 3 लाख लोगों को अपने घर छोड़कर भागने के लिए मजबूर होना पड़ा है। जबकि नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविन्स में खुर्रम (शिया) और बंगश (सुन्नी) कबीलों के बीच खूनी झड़पें जारी हैं जिनमें पिछले एक हफ्ते के दौरान 400 व्यक्तियों की हत्याएं हो चुकी हैं। 95 लोग तो 1 सितंबर के ही झगड़े में मरे हैं। नवाज शरीफ द्वारा सरकार से समर्थन वापस लेने के बाद जहां राजनीतिक संकट गहरा गया है वहीं ऑनर किलिंग्स (मर्यादा हत्याएं) को लेकर राष्टीय असेंबली में जबरदस्त खींचतान है। इन घटनाामों के अलावा अमेरिका की चिंता इस बात ने भी बढ़ा दी है कि राष्टपति चुने जाने के बाद परमाणु हथियारों की चाबी आसिफ अली ़जरदारी के पास आ जाएगी जो कि मानसिक रूप से अस्वस्थ हैं।
यह बात किसी से छुपी हुई नहीं है कि दहशतगर्दी को बढ़ावा देने में पाकिस्तान के कबाइली क्षेत्रों की विशेष भूमिका है। इन क्षेत्रों में अमेरिका स्वयं कार्यवाई करना चाहता है, लेकिन पाकिस्तान की मौजूदा सरकार इस पक्ष में नहीं है। उसे लगता है कि अमेरिकी कार्यवाई से उसके लिए संकट बढ़ जाएगा। इसलिए कबिलाई क्षेत्रों में गिलानी सरकार ने खुद ही सैन्य ऑपरेशन छेड़ा हुआ है। बाजोर और स्वात क्षेत्रों में मिलिटेंट्स को काबू करने के लिए हवाई बमबारी भी की जा रही है जिसमें अब तक 40 मिलिटेंट्स मारे जा चुके हैं। लेकिन इस हवाई हमले के कारण अवाम को भी अपने घर छोड़कर सुरक्षित स्थानों पर भागने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। अनुमान है कि अब तक 3 लाख लोग बाजोर छोड़ चुके हैं और दूसरी जगहों पर शरण ले रहे हैं। सरकार ने तहरीक-ए-तालिबान की युद्घ विराम की पेशकश को ठुकराते हुए उस पर प्रतिबंध लगा दिया है और पाकिस्तानी तालिबान के प्रमुख बैतुल्ला मसूद से भी वार्ता किसी नतीजे पर नहीं पहुंची है। साथ ही मुल्ला फजलुल्लाह के 2 वरिष्ठ कमांडर मारे गए हैं और 562 मिलिटेंट्स को गिरफ्तार किया गया है। इन तथ्यों से यह तो साबित हो रहा है कि सैन्य कार्यवाई के कारण मिलिटेंट्स दबाव महसूस कर रहे हैं और कम से कम रम़जान के माह में युद्घ विराम चाहते हैं। लेकिन दूसरे कबिलाई क्षेत्रों में जो आपसी खूनी संघर्ष बढ़ता जा रहा है, उसने पाकिस्तान सरकार की चिंताओं को बढ़ा दिया है।
दरअसल खुर्रम और बंगश कबीलों में जो झड़पें हो रही हैं वह पाकिस्तान के लिए अधिक चिंता की बात है। हालांकि यह संघर्ष अप्रैल, 2007 से चल रहा है लेकिन नवंबर, 2007 से तो यह इतना भयंकर हो गया है कि पराचिनार और पेशावर के बीच कोई आवाजाही ही नहीं है। अधिक चिंता इसलिए भी है क्योंकि एक कबीला खुर्रम शिया समुदाय का है जिसका समर्थन ईरान कर रहा है और दूसरा कबीला बंगश सुन्नी समुदाय का है जिसे तालिबान समर्थन दे रहा है। इन दोनों कबीलों के संघर्ष में अब तक 400 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं और बीती 1 सितंबर को तो 95 लोग दोनों तरफ से मारे गए। शिया कबीले का समर्थन करने वाले एक और शिया कबीले तूरी का दावा है कि 1 सितंबर के संघर्ष में उसने बग़जाई क्षेत्र पर नियंत्रण हासिल कर लिया है।
दरअसल कबीलों के कारण पाकिस्तानी सरकार की समस्या यहीं तक नहीं है। एशियाई मानव अधिकार आयोग (एएचआरसी) की एक रिपोर्ट के अनुसार, उमरानी कबीले की तीन किशोरियां अपनी पसंद के लड़कों से शादी करना चाहती थीं। एक लड़की की मां और एक लड़की की मौसी भी उनके इस फैसले के समर्थन में थीं, लेकिन कबीले को यह बात पसंद नहीं थी। इसलिए कबीले के एक गुट ने इन पांचों महिलाओं को अगवा कर लिया और पूर्वी बलूचिस्तान के जाफराबाद में एकांत स्थान पर ले जाकर इन पर गोलियां बरसा दीं। महिलाओं का गोलियों से अभी दम भी न निकला था कि उन्हें एक गड्ढे में धक्का देकर मिट्टी और पत्थरों से दबा दिया गया। “कबीलाई सम्मान’ के लिए ये हत्याएं बीती 14 जुलाई को की गईं। लेकिन यह मामला बीती 1 सितंबर को ही प्रकाश में आया। जब संसद के उच्च सदन सिनेट में इस बात को उठाने का प्रयास किया गया तो 2 वरिष्ठ सांसदों ने “मर्यादा हत्याओं’ का समर्थन “कबिलाई परंपरा’ की दुहाई देते हुए किया। इससे सदन में जबरदस्त नोंकझोंक हुई जिससे पाकिस्तानी सियासत दो फाड़ हो गई। गौरतलब है कि नवाज शरीफ द्वारा सरकार से समर्थन वापसी के बाद यह दूसरा मुद्दा है जिस पर पाकिस्तानी राजनीति का ध्रुवीकरण हो रहा है।
यकीनन यह घटनााम अच्छी खबर नहीं है। लेकिन इससे भी अधिक गंभीर चिंता का विषय यह है कि आसिफ अली जरदारी जो कि मानसिक रोगी हैं, पाकिस्तान के नए राष्टपति बन गए हैं और कानूनन परमाणु हथियारों की चाबी उनके हाथ में आ जाएगी। ध्यान रहे कि जरदारी के मानसिक स्वास्थ्य के बारे में हकीकत उस समय सामने आयी जब उनके वकीलों ने लंदन के हाईकोर्ट में बहस की कि भ्रष्टाचार संबंधी मामले में जरदारी गवाही नहीं दे सकते क्योंकि वे बहुत बीमार हैं। बहस के दौरान वकीलों ने जरदारी की मेडिकल रिपोर्ट भी अदालत में पेश की, जिसमें बताया गया है कि वे डिमेंशिया, डिप्रेशन और पोस्टटोमेटिक स्टेस डिसऑर्डर से पीड़ित हैं। उन्हें यह मानसिक रोग उस समय लगे जब 8 वर्ष तक वे मुशर्रफ के शासन के दौरान जेल में रहे। न्यूयार्क के एक मनोचिकित्सक फिलिप सेल्टेल ने जरदारी की जांच की थी और पाया था कि भ्रष्टाचार संबंधी जांच ने उन्हें भावनात्मक रूप से असंतुलित कर दिया है जिससे उनकी याद्दाश्त कमजोर हो गई है और एकाग्रता में उन्हें समस्याएं आती हैं।
जाहिर है कि अमेरिका यह बिलकुल नहीं चाहेगा कि दिमागी रूप से बीमार जरदारी के हाथ में परमाणु कमांड आए। इसलिए यह प्रयास किए जा रहे हैं कि राष्टपति बनने के बाद भी परमाणु हथियारों का नियंत्रण सेना के पास ही रहे। गौरतलब है कि जरदारी की पत्नी बेनजीर भुट्टो 2 बार पाकिस्तान की प्रधानमंत्री रहीं, लेकिन दोनों ही बार सेना ने उन्हें परमाणु लूप से बाहर रखा। जरदारी की मानसिक स्थिति की खबर सामने आने के बाद अब उम्मीद की जा रही है कि उनको भी भुट्टो की तरह परमाणु लूप से अलग ही रखा जाएगा।
पाकिस्तान में आम चुनाव होने के बाद यह आभास हुआ था कि एक नया लोकतांत्रिक पाकिस्तान उभर कर सामने आएगा। लेकिन हाल-फिलहाल में जो बातें सामने आयीं हैं, जिनमें से कुछ का ऊपर जिा किया गया है, उनसे यही साबित होता है कि तथ्य नए पाकिस्तान के उदय को झुठलाते हैं। दूसरे शब्दों में मुशर्रफ के जाने के बाद स्थितियां बद से बदतर की ओर ही जा रही हैं और जल्द ही कोई सकारात्मक राजनीतिक पहल न की गई तो पाकिस्तान “बनाना स्टेट’ बनकर रह जाएगा।
– डॉ. एम.सी. छाबड़ा
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