लिट्टे को लेकर भारत की दुविधा

भारत में प्रतिबंधित लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) श्रीलंका का ही नहीं, दुनिया का सबसे खूंखार विद्रोही गुट है। तमिलों के लिए अलग स्वतंत्र राज्य की मांग के लिए 30 वर्षों से खूनी लड़ाई लड़ रहे इस संगठन के साथ तमिलनाडु की जनता की सहानुभूति स्वाभाविक है। इसलिए वहॉं की लगभग हर पार्टी किसी न किसी रूप में लिट्टे से जुड़ी है और अपने-अपने हिसाब से इसका इस्तेमाल वोट की राजनीति के लिए करती रही है।

इसके बावजूद भारतीय पुलिस को पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के सिलसिले में लिट्टे सुप्रीमो वेलुपिल्लई प्रभाकरन की तलाश है, केंद्र सरकारों (भाजपा और राष्टीय मोर्चा गठबंधन समेत) ने लिट्टे के प्रति तथा तमिलनाडु की राजनीतिक पार्टियों के साथ-साथ श्रीलंका से संबंधों के मामलों में संभल-संभल कर कदम रखा। क्योंकि इन गठबंधनों ने डीएमके, पीएमके, एमडीएमके सरीखी तमिलनाडु की पार्टियों के सांसदों के समर्थन से सरकारें चलाई हैं जो लिट्टे को भुनाकर चुनाव जीतती हैं। लेकिन कांग्रेस को अपने कार्यकाल के अंतिम वर्ष में श्रीलंका के राष्टपति महिंदा राजपक्षे ने वैसी ही दिग्भ्रमित स्थिति में डाल दिया है, जिससे वे स्वयं उबर नहीं पा रहे हैं। कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार एक बार फिर उसी पशोपेश के दौर से गुजर रही है जब राजीव गांधी के शासनकाल में श्रीलंका के साथ सैनिक समझौता (1987) हुआ और उसके कुछ साल बाद कांग्रेस को अपने नेता राजीव गांधी की जान देकर उसकी कीमत चुकानी पड़ी। राजीव गांधी पूर्ण बहुमत से प्रधानमंत्री बने थे और उनके साथ ऐसी कोई मजबूरी नहीं थी कि तमिलनाडु की लिट्टे समर्थक पार्टियों को साथ लेकर सरकार चलाना पड़े। इसलिए उन्होंने श्रीलंका के तत्कालीन राष्टपति जूलियस जयवर्धने के साथ लिट्टे पर काबू पाने के लिए भारतीय सेना को श्रीलंका भेजने के लिए समझौता किया। राजीव गांधी ने बहुमत के मद में यह समझने की कोशिश नहीं की कि उनके अपने ही देश में लिट्टे की पकड़ कितनी गहराई तक है। कांग्रेसियों ने भी यह बात उस समय समझी जब राजीव गांधी की हत्या हुई।

श्रीलंका के विदेश मंत्री रोहित बोगोल्लागामा ने विगत सितम्बर माह की 12 तारीख को चेन्नई जाकर कहा कि श्रीलंकाई तमिलों के मामले के किसी भी हल में तमिलनाडु फैक्टर महत्वपूर्ण है। वे दिल्ली नहीं आए, वहीं से कोलंबो लौट गए। उसके दो दिन बाद महिंदा राजपक्षे ने लिट्टे को नेस्तनाबूद करने के अपने अभियान में भारत की “सहायता’ का जिा करते हुए कहा कि लिट्टे सुप्रीमो प्रभाकरन को अगर जीवित पकड़ लिया गया तो उसे भारत को सौंप दिया जाएगा। यह बयान श्रीलंकाई राष्टपति ने विदेशी संवाददाताओं से बातचीत के दौरान जारी किया, जिसमें उन्होंने इस बात पर ज्यादा जोर दिया कि लिट्टे के खिलाफ अब लड़ाई अंतिम दौर में है। उन्होंने भारत से प्राप्त सहायता के लिए भारत के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि प्रभाकरन को भारत को सौंप दिया जाएगा। उसी दिन (14 सितम्बर) श्रीलंकाई वायुसेना के एक प्रवक्ता ने दावा किया कि लिट्टे के गढ़ में हवाई हमले का लक्ष्य प्रभाकरन का ठिकाना है और दो भारतीयों के गंभीर रूप से घायल होने की भी जानकारी दी जो श्रीलंका वायुसेना की मदद के लिए गए थे। 15 सितम्बर को एमडीएमके नेता और कट्टर लिट्टे समर्थक वाइको ने चेन्नई में खुलेआम चेतावनी दी कि श्रीलंका को भेजी गई सैनिक सहायता केंद्र की कांग्रेस गठबंधन सरकार को महंगी पड़ेगी। उन्होंने इस संबंध में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को फैक्स किया गया पत्र संवाददाताओं को दिया, जिसमें लिखा गया है- श्रीलंकाई तमिलों के एक-एक बूंद खून के लिए केंद्र की कांग्रेस गठबंधन सरकार जिम्मेदार है और यह सौदा “महंगा’ पड़ेगा। इसी से मिलता-जुलता बयान दूसरी लिट्टे समर्थक पार्टी पीएमके नेता रामदास ने भी जारी किया। डीएमके प्रमुख और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि ने फिलहाल अभी चुप्पी साध रखी है, जिनका लिट्टे प्रेम प्रसिद्घ है। ये तीनों पार्टियां केंद्र के संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन में शामिल हैं।

लिट्टे के खिलाफ हवाई हमले के दौरान गंभीर रूप से घायल दो भारतीय सैनिक टेक्नीशियनों में से एक राडार विशेषज्ञ बताया जाता है, जिसके बारे में श्रीलंका के सरकारी अखबार “डेली न्यूज’ में छपा है कि उसे लिट्टे के कब्जे वाले इलाके में देखा गया था। भारत के रक्षा मंत्री ए.के. एंटनी को, 1987 के भारत-श्रीलंका सैनिक समझौते के तहत श्रीलंका भेजे गए सैनिकों में से बचे-खुचों को वापस भेजे जाने के बाद राष्टपति जयवर्धने के इस आरोप को नहीं भूूलना चाहिए कि भारतीय सैनिकों ने लिट्टे के बहाने उल्टे श्रीलंकाई सैनिकों पर हमला किया था। जबकि सच्चाई यह है कि अगर भारतीय सैनिक अपने प्रधानमंत्री (राजीव गांधी) के काम में चूक करते तो लिट्टे राजीव गांधी पर जानलेवा हमला क्यों करता। एंटनी नपा-तुला बयान देकर पलायन करना चाहते हैं लेकिन श्रीलंका सरकार ने भारत को फंासने की वह चाल चली है, जिसकी काट खोजना आसान नहीं होगा। रक्षामंत्री ने कहा कि 2002 में लिट्टे के साथ हुआ युद्घविराम समझौता रद्द करना श्रीलंका सरकार के लिए उचित कदम नहीं था, लेकिन लिट्टे के खिलाफ चल रही सैनिक कार्रवाई को भी उचित ठहराया। उन्हें अच्छी तरह पता होगा कि 2002 में श्रीलंका के प्रधानमंत्री रानिल विामसिंघे ने लिट्टे के साथ युद्घविराम समझौता इसलिए किया क्योंकि उसके पहले की सभी सरकारें युद्घ के जरिए लिट्टे पर काबू पाने में असफल रहीं। वह समझौता भी नार्वे और जापान की मध्यस्थता में हुआ। शांति और सुव्यवस्था लाने के वायदे पर विामसिंघे की यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) को तमिल वोट मिले। महिंदा राजपक्षे यूएनपी को हटाकर राष्टपति बने। पहले उन्होंने यूएनपी को तोड़ा और उल्लंघन का आरोप लगाकर युद्घविराम समझौता रद्द कर दिया। महिंदा राजपक्षे के लिट्टे से संबंधित कदमों के पीछे भारत की तमिलनाडु से जुड़ी कमजोर नस को उभारना मुख्य मकसद प्रतीत होता है। उन्होंेने ऐसे समय में इस पेचीदे मुद्दे को अपने हिसाब से मरोड़ने की कोशिश इसलिए की है ताकि भारत सरकार अभी चुप रहकर अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में तमिलनाडु की जनता को आश्र्वस्त न कर सके।

कांग्रेस के अंदर लिट्टे को लेकर काफी समय से खलबली मची है। सत्ता में होने की वजह से श्रीलंका को उसे भुनाने में आसानी होती है। पिछले वर्ष नवम्बर में लिट्टे के राजनीतिक प्रमुख एसपी तमिलसेल्वन की मृत्यु के शोक में तमिलनाडु में सारे सरकारी कार्यालय बंद रहे। सभा में सम्मिलित होकर कविता प़ढ़ी गई। उसी महीने कांग्रेस की राष्टीय कार्यकारिणी बैठक में करुणानिधि के लिट्टे “प्रेम’ के विरोध में प्रस्ताव पारित करके निंदा की गई। करुणानिधि की पार्टी डीएमके के साथ तमिलनाडु में कांग्रेस का तालमेल है, जिनका नाम राजीव गांधी हत्याकांड की जॉंच करने वाले जैन आयोग की रिपोर्ट में संदिग्धों की सूची में ऊपर है। कांग्रेस प्रभाकरन की आदमकद तस्वीर के साथ प्रचार करके चुनाव जीतने वाले वाइको और रामदास से तालमेल कर सरकार चला रही है, जिस कांग्रेस की सुप्रीमो सोनिया गांधी तथा उनकी पुत्री प्रियंका को राजीव गांधी पर जानलेवा हमला करने वाली उम्रकैद काट रही नलिनी के प्रति बहुप्रचारित “हमदर्दी’ उपजी है, वह कांग्रेस पार्टी या सरकार के रूप में लिट्टे के बारे में किसी ठोस नतीजे पर कैसे पहुँच सकती है, भारत की इस दुविधा को श्रीलंका सरकार बखूबी समझ रही है। श्रीलंका के लिए लिट्टे सुप्रीमो को जिंदा या मुर्दा पकड़ना संभव नहीं है, लेकिन अगर भविष्य में ऐसा हुआ तो तमिलनाडु को भारतीय संघ में कायम रखना मुश्किल हो सकता है।

 

– शशिधर खां

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