अपने प्रतिद्वंदियों से आगे निकलने की चाहत में बहुत से डेवलपर्स अब विदेश जा रहे हैं, ताकि नामचीन आर्किटेक्ट्स को अपने नये प्रोजेक्ट्स डिजाइन करने के लिए अनुरोध किया जा सके। हालांकि फिलहाल रियलटी सेक्टर में मंदी का दौर है। फिर भी नामवर डिजाइन कंपनियां जो दूसरे देशों की हैं, वह भारत में अपने दफ्तर खोल रही हैं ताकि रियल एस्टेट मार्केट की सेवा की जा सके।
गोदरेज प्रॉपर्टीज, यूनीटेक, ओमेक्स, हीरानन्दानी जैसी बड़ी कंपनियों ने विदेशी आर्किटेक्ट फर्मों को हायर किया है। पिछले साल गोदरेज ने सिंगापुर की डीपी आर्किटेक्ट को हायर किया, मुंबई में 50 मंजिला रिहायशी बिल्डिंग को डिजाइन करने के लिए। अमेरिका की हैलमुथ ओबाय कायावोम कंपनी पहले ही भारतीय बिल्डर्स जैसे यूनीटेक, हीरानन्दानी आदि के लिए काम कर चुकी है। विदेशी आर्किटेक्ट प्रोजेक्ट में ग्लोबल नजरिया और विभिन्न किस्म के कौशल लाते हैं।
इसमें शक नहीं है कि विदेशी डिजाइनरों और प्लानरों के अनेक लाभ हैं। लेकिन इसका एक नकारात्मक पहलू यह है कि कुछ मामलों में वह भारत में व्यापार करने की जटिलताओं को नहीं समझ पाते, जिनमें टैक्स नियम और संस्कृति शामिल है। लेकिन इस बात से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि डिजाइन जॉब लेने वाली देसी और विदेशी फर्मों में बहुत फर्क है। अंतर्राष्टीय फर्में डेवलपर्स की जरूरतों और महत्वाकांक्षाओं के प्रति अधिक सजग होती हैं। वे उस समाधान को निकाल लेती हैं, जो विशेष साइट, लोकेशन और लैंड के लिए आवश्यक होता है। भूमि इस्तेमाल की मांग के प्रति भी वह अधिक चौकन्ना रहती हैं। वह नये विचारों के लिए अधिक खुली रहती हैं। दूसरी ओर भारतीय फर्मों का डिजाइन और प्लानिंग के प्रति टायल व एरर का दृष्टिकोण रहता है। वह डेवलपर्स पर अपने विचार थोपने का भी प्रयास करती हैं।
सिंगापुर की आरएसपी आर्किटेक्ट्स भी भारत के कई बड़े शहरों में प्रोजेक्ट डिजाइन कर रही है और कई अन्य प्रोजेक्ट उसके हाथ में आ सकते हैं। इसलिए मुंबई, बैंगलोर और हैदराबाद में उसने अपने दफ्तर खोल लिए हैं। गौरतलब है कि बैंगलोर का अंतर्राष्टीय टैंक पार्क इसी ने डिजाइन किया था। विप्रो, सत्यम और माइाोसॉफ्ट जैसी बड़ी आईटी कंपनियों के ऑफिस भी इसी ने ही डिजाइन किये हैं।
दिलचस्प बात तो यह है कि डिजाइनिंग में अब अपने क्षेत्र की विभूतियों की भी मदद ली जा रही है। मसलन, ग्रेटर नोएडा में गोल्फ कोर्ट डिजाइन कराने के लिए यूनीटेक ने महान गोल्फर ग्रेग नॉरमैन की सेवाएं हासिल कीं। जाहिर है अपने प्रोजेक्ट आकर्षक बनाने के लिए भारतीय कंपनियां विदेशी फर्मों और विशेषज्ञों की मदद ले रही हैं।
कुछ भारतीय आर्किटेक्ट भी महसूस करते हैं कि प्रोजेक्ट डिजाइन करने में ग्लोबल फर्में वास्तव में अच्छी हैं। लेकिन कुछ मिस मैच की वह आलोचना करते हैं। कई मामलों में देखा गया है कि उनका शुरूआती डिजाइन अर्थहीन होता है और फिर भारतीय आर्किटेक्ट्स को उनकी खामियां दूर करने के लिए आमंत्रित किया जाता है।
बहरहाल, भारतीय रियल्टी सेक्टर में जब पैसा आ रहा है तो ग्लोबल आर्किटेक्चरल प्रेक्टिसिस और एक्सपर्टाइज का लाना लाजमी सा हो गया है। खासकर इसलिए भी क्योंकि ग्राहक विदेशी फर्मों के डिजाइनों को पसंद करते हैं। इसलिए डेवलपर्स के दृष्टिकोण से यह मार्केटिंग और सेल्स की नयी राहें खोलता है। विशेषज्ञों का कहना है कि प्रतिस्पर्धा के बढ़ने से ग्लोबल आर्किटेक्ट की मांग और बढ़ जायेगी। साथ ही विशेषज्ञों की भी। मसलन, ओमेक्स ने अपने रिहायशी प्रोजेक्ट्स में टेनिस कोर्ट डिजाइन करने के लिए लिएंडर पेस की सेवाएं हासिल की हैं।
कुछ डेवलर्स सिर्फ अपने बड़े प्रोजेक्टों के लिए ही विदेशी फर्मों को अनुबंध करते हैं। दरअसल, बड़े काम में ही विदेशी फर्म को बर्दाश्त किया जा सकता है। फिर बड़े काम में समय समस्या होती है और विदेशी फर्म अपने वायदे पर कायम रहती हैं। इसलिए कुछ लोगों का कहना है कि विदेशी फर्मों को प्रोजेक्ट मिलते तो रहेंगे मगर सीमित उद्देश्य वाले। वह प्रोजेक्ट का मास्टर प्लान तैयार करेंगी और योजना को लागू करने का काम भारतीय फर्मों के ही हाथ में होगा।
– प्रवेश कुमार सिंह
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