जिस तरह स्कूलों से लेकर कॉलेज कैंटीन तक जंक फूड का राज है, उसी तरह अब युवाओं के जीवन में कई और तरह के जंक भी महत्वपूर्ण जगह बनाने लगे हैं। चाहे जंक ई-मेल हों या एसएमएस। ताजा किस्सा जंक ज्वेलरी का है।
लेकिन जहां जंक फूड शरीर के लिए नुकसानदायक होता है, वहीं जंक ज्वेलरी न तो सेहत के लिए और न ही पॉकेट के लिए, किसी के लिए भी नुकसानदायक नहीं है। यही वजह है कि जंक ज्वेलरी के विरूद्घ न तो अखबारों में आर्टिकल लिखे जाते हैं और न ही टेलीविजन चैनलों में विशेषज्ञों को बुलाकर उनसे इसकी मजम्मत कराई जाती है। कुल मिलाकर जंक ज्वेलरी युवाओं को आकर्षित भी कर रही है, उसके नुकसान भी नहीं हैं और यह उनकी जेब के अनुकूल भी है।
जब इतनी सारी खूबियां एक साथ हों तो भला कोई चीज क्यों न लोकप्रिय हो। यही वजह है कि आजकल कॉलेज कैम्पस में जंक ज्वेलरी का जलवा खूब देखने को मिल रहा है। चाहे उत्तर हो या दक्षिण, पश्र्चिम हो या पूरब, देश के हर कोने में स्थित कॉलेजों व विश्र्वविद्यालयों का अब धीरे-धीरे रस और माहौल एक जैसा हो गया है। इसलिए पसंद-नापसंद भी एक जैसी हो गई है। कुल मिलाकर कहने की बात यह है कि जंक ज्वेलरी का जादू पूरे देश में छा रहा है।
जंक ज्वेलरी के इस तरह फैशन में आने की कई वजहें हैं। एक तो ये ज्वेलरी हर तरह की डेस के अनुकूल यानी हर किस्म के रंग और डिजाइन में मिल जाती है। लेकिन इससे भी बड़ी जो बात है वह यह है कि यह सस्ती है, लेकिन सस्ती होने का मतलब यह नहीं है कि यह फैशनेबल और स्टाइलिश नहीं है। इसमें सारी खूबियां एक साथ मिलती हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि यह आपकी कैसी भी त्वचा हो, उसके अनुकूल मिल जाती हैं। कागज, वाइट मैटल, लकड़ी, धागे, स्टोन, सिलवर और कई तरह की दूसरी धातुओं में यह ज्वेलरी खूब मिलती है। लाख दाना, तुलसी की लकड़ी आदि में तो मिलती ही है। यह ज्वेलरी काफी सस्ती होती है। 99 रुपये से लेकर 1000 रुपये के बीच लगभग सभी तरह की जंक ज्वेलरी मिल जाती है। हां, अगर हैवी स्टोन या कुंदन का काम हुआ तो थोड़ी महंगी हो जाती है। लेकिन फिर भी आमतौर पर 5-6 हजार रुपये महंगी तक ही यह ज्वेलरी बनाई जाती है।
सवाल है, आखिर एक ऐसे दौर में जब इतिहास के किसी भी समय से ज्यादा भारतीय उपभोक्ताओं के पास ाय-शक्ति हो, कॉलेज आधुनिक फैशन के प्लेटफॉर्म बन गए हों और पढ़ाई के दौरान ही अच्छी खासी नौकरी मिल जाती हो तो फिर इस कदर सस्ती ज्वेलरी चलन में क्यों है? इसके पीछे सबसे बड़ी वजह है युवाओं के लाइफस्टाइल में जबरदस्त सिंपलसिटी का आ जाना। युवा अब पहले से कहीं ज्यादा व्यावहारिक और सिंपलीसिटी पसंद करने वाले हो गए हैं। यही कारण है कि पारंपरिक हैवी ज्वेलरी अब कॉलेज की छात्राओं को नहीं भाती। न भाने के पीछे एक व्यावहारिक दिक्कत यह भी है कि रंगों में हुए ाांतिकारी विकास ने आज हजारों-लाखों किस्म के रंग बाजार में ला दिए हैं। जिस कारण अब पहनी जाने वाली डेस बिल्कुल नये-नये रंगों की हो चुकी है। या कहें कि उसमें बहुत सारे विकल्प हासिल हो गए हैं, लेकिन इन कंप्यूटर द्वारा विकसित रंगों के अनुकूल पारंपरिक धातुओं वाली महंगी ज्वेलरी नहीं मिलती। महंगी ज्वेलरी कुछ सीमित रंगों में ही होती है। जबकि युवाओं को आजकल मैचिंग का नशा है। उन्हें हर चीज मैचिंग की चाहिए। कमीज के साथ मैचिंग पेंडेंट, घड़ी, सैंडिल और बैग चाहिए। अब तो मैचिंग ज्वेलरी भी चाहिए।
इसीलिए पारंपरिक ज्वेलरी अब युवाओं की कम पसंद रह गई है। उन्हें जंक ज्वेलरी भाती है, क्योंकि एक तो जंक ज्वैलरी में हर तरह के रंग की ज्वेलरी मिल जाती है। फिर यह ज्वेलरी काफी हल्की होती है, वजन में भी और कीमत में भी। इसलिए इसकी अपनी एक अलग ही पहचान है। लेकिन इस ज्वेलरी का संबंध पारंपरिक ज्वेलरी के किसी भी रूप में नहीं है। उदाहरण के लिए पारंपरिक धातुओं, सोने और चांदी के गहने इसलिए भी लोग खरीदते और बनवाते रहे हैं कि वह एक तरह से इन्वेस्टमेंट भी होता है। कहने का मतलब यह है कि कभी अगर दुर्दिन आ जाएं तो ऐसी मुसीबत के समय ये गहने बेचकर समस्या का समाधान किया जा सके। लेकिन जंक ज्वेलरी की कोई रीसेल वैल्यू नहीं होती। हां, अगर जंक ज्वेलरी कुंदन व हैवी स्टोन वाली है तो जरूर उसे बेचने पर 50 फीसदी तक की रीसेल वैल्यू हासिल हो जाती है।
बहरहाल, रीसेल वैल्यू के लिए यह ज्वेलरी नहीं खरीदी जाती। यह ज्वेलरी तो वास्तव में आजकल मॉडर्निटी और एथनिक लुक के प्रति सजग होने की निशानी है। खाते-पीते मिडिल क्लास घरों की लड़कियां सोने और चांदी या दूसरी महंगी ज्वेलरी से ऊब चुकी हैं, क्योंकि उनकी एक तो देख-रेख बहुत करनी पड़ती है, फिर उन्हें पहनने में दिक्कत यह होती है कि लूटपाट का डर भी बना रहता है और पुरानेपन का एहसास जो होता है वह अलग। यही कारण है कि युवा लड़कियों को सिंपल, सस्ती जंक ज्वेलरी खूब भा रही है।
कॉलेज के बाहर भी हिट है जंक ज्वेलरी
शुरूआत भले कैंपस से हुई हो, लेकिन हकीकत यह है कि आजकल जंक ज्वेलरी कॉलेज के बाहर भी खूब हिट हो रही है। चाहे पेज-3 की पार्टियां हों, पब हों, विभिन्न किस्म के अवसर हों या बाजार और शादी-ब्याह के मौके। हर जगह आजकल युवा लड़कियां व महिलाएं जंक ज्वेलरी पहने हुए मिल जाएंगी। प्रसिद्घ अभिनेत्री रानी मुखर्जी को भी जंक ज्वेलरी खूब भाती है। वो कहती हैं, “”जंक ज्वेलरी स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है, क्योंकि इसमें बहुत ही प्राकृतिक और सस्ती चीजों का इस्तेमाल होता है। यह हाइटेक नहीं होतीं, इस वजह से इनके रासायनिक दुष्प्रभाव भी ज्यादा नहीं होते। इस कारण मुझे ये ज्वेलरी खूब पसंद है।” गौरतलब है कि रानी मुखर्जी सैकड़ों रंग की वुडेन रिंग अपने पास रखती हैं और मौके के मुताबिक उसे पहनती हैं।
एक अंग्रेजी अखबार की युवा पत्रकार सीमा भी जंक ज्वेलरी की दीवानी हैं। वह कहती हैं, “”जो चमक, जो प्राकृतिक एहसास और जो एथनिक लुक जंक ज्वेलरी से मिलती है, वैसा और किसी से नहीं मिलता। इसीलिए मुझे यह पसंद है।”
एक जमाने में जंक ज्वेलरी एक खास तरह की बीमारियों से भी निजात दिलाने का बढ़िया जरिया होती थीं। अब हालांकि लकड़ी, लाख, सूखे फल, कागज जैसी जंक ज्वेलरी का इस्तेमाल बतौर उपचार तो नहीं होता, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं है कि औषधीय गुणों वाली लकड़ियों की बनी ज्वेलरी कई किस्म की एलर्जी से बचाव करती है। मसलन, तुलसी की माला। दुनिया में जिस तरह से हर्बल उत्पादों के इस्तेमाल पर जोर बढ़ा है, उसे देखते हुए भी विभिन्न प्राकृतिक औषधीय पदार्थों से बनी इस तरह की ज्वेलरी स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक है।
– प्रज्ञा गौतम
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