बिंदास महिलाओं की दो विशेषताएं होती हैं- स्थायी प्रवृत्ति और स्थिर विचार। इनकी बदौलत वे अधिक वफादार और समर्पित मानी जाती थीं। लेकिन आजकल इस आदर्श व्यक्तित्व का भी मेकओवर हो रहा है। क्यों? दरअसल, महिलाओं के पास आज विकल्पों की भरमार है। इनमें से किसे चुनें और किसे छोड़ें, यह समस्या एक किस्म का सिरदर्द बन गयी है। जब वह एक विकल्प का चयन करती हैं, तो यह सोचने पर मजबूर हो जाती हैं- क्या मुझे वास्तव में यही चाहिए था? या मैं कुछ इससे बेहतर कर सकती थी?
वैरायटी यानी बहुत सारे विकल्प जीवन को म़जेदार बना देते हैं। ऐसा लगता है, जैसे जीवन में रंगों की बहार आ गयी हो। हर मूड के मुताबिक ची़जें उपलब्ध हैं, इसलिए महिलाओं का प्रसन्न होना स्वाभाविक है। लेकिन मल्टीनेशनल कंपनी में सलाहकार मधु अग्रवाल कहती हैं, “”बहुत सारे विकल्पों ने हमें बिगाड़ दिया है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि हमें अपने लिए जो सबसे अच्छा विकल्प संभव हो वह चाहिए। इन विकल्पों की बदौलत हमें प्रयोग करने का मौका मिल जाता है। लेकिन इससे उलझन भी पैदा होती है। जब मैं शॉपिंग के लिए जाती हूं, तो बहुत ज्यादा खरीदने की इच्छा होती है और बहुत बार ऐसा भी होता है कि मैं वह ची़जें खरीद बैठती हूं जिनकी वास्तव में मुझे जरूरत नहीं होती।”
जबकि इसी सिलसिले में मीडियाकर्मी तानिया चटर्जी का कहना है, “”मैं खुश हूं कि मेरे पास चुनने के लिए इतने सारे विकल्प हैं। इसके साथ ही हमारा सकारात्मक दृष्टिकोण भी होना चाहिए। मेरे लिए, इसका अर्थ यह नहीं है कि सिर्फ आनंद के लिए मैं सभी विकल्पों में हाथ आजमाऊंगी। फिट रहने के लिए मैं जिम जा सकती हूं या एयरोबिक्स क्लासेस ज्वाइन कर सकती हूं या योग कर सकती हूं, लेकिन मैं अपने दोस्तों के साथ टेनिस या बैडमिंटन खेलना पसंद करूंगी, क्योंकि इससे मुझे संतुष्टि मिलती है। इसलिए मुझे इतने सारे विकल्प परेशान नहीं करते।”
विकल्पों का होना और उनमें से अपने मन के मुताबिक कुछ चुनना बहुत बड़ी बात है, रंगकर्मी शालिनी ़जुबिन कहती हैं, “”मैं वास्तव में यह तय कर सकती हूं कि मेरे लिए क्या अच्छा है। हर चीज मुझे अपनी पसंद और स्तर की चाहिए। मैं एक खास व्यक्ति के साथ सम्बंध का चयन कर सकती हूं और यह भी फैसला कर सकती हूं कि वह सम्बंध किस दिशा में जा रहा है। उस व्यक्ति से मेरा तालमेल कैसा बैठ सकता है, इस बात को टाय और टेस्ट कर सकती हूं ताकि नाकामी से बच सकूं। इससे मुझमें जिम्मेदारी का अहसास आता है, आखिरकार मैं जो कुछ कर रही हूं, उसके लिए मैं ही तो जिम्मेदार हूं। इससे मैं एक ऐसी महिला बन जाती हूं जो खुश है, क्योंकि मैंने प्रसन्न रहने के लिए विकल्प का चयन किया है। इसलिए मैं यकीन के साथ कह सकती हूं कि अगर हम महिलाओं के पास इतने सारे विकल्प न होते, तो जीवन बहुत कठिन हो जाता, वैसे भी विकल्पों का अभाव जीवन में एकरूपता व नीरसता भर देता है।”
जबकि इसी बहस को आगे बढ़ाते हुए मॉडल रमा पारिख कहती हैं, “”वह दिन हवा हुए, जब महिलाओं के पास विकल्प नहीं थे। आज की महिलाएं आत्मविश्र्वास से भरी हैं और पर्याप्त स्वतंत्र भी कि अपना फैसला करें और उसे मनवायें भी। लेकिन बहुत सारे विकल्प उलझन व जटिलताएं भी उत्पन्न कर देते हैं। फिर भी मेरा मानना है कि जितने अधिक विकल्प होंगे, उतना ही अच्छा होगा। हम ऐसे समाज में रह रहे हैं, जहां बहुआयामी विकल्प हैं। हर खरीदारी के बाद हमें इस यकीन की जरूरत होती है कि हमने सबसे अच्छा विकल्प चुना या हमने जल्दबाजी कर दी या इससे भी अच्छे विकल्प की तलाश की जा सकती थी। लेकिन साथ ही मुझे इस बात का भी गर्व है कि मैंने वह चुना जो मैं चाहती थी और इस तरह मैं इस स्वतंत्रता का भरपूर आनंद ले रही हूं।”
बिना विकल्पों के जीवन साधारण और बहुत अधिक उबाऊ हो जाता है। जीवन या तो बहुत साधारण होता है या बहुत ही उत्सुकता भरा। लेकिन गृहिणी शालू वैद्य को नीरस जीवन नहीं चाहिए। जिसमें उत्साह न हो, वह ़िंजदगी उनके लिए अर्थहीन है। वे कहती हैं, “”मैं विकल्पों में से चयन करना चाहती हूं, क्योंकि मैं यह अपराधबोध बर्दाश्त नहीं कर सकती कि मेरे पास अवसर थे और मैंने उनका फायदा नहीं उठाया। एक महिला के लिए अपराध बोध से अधिक खतरनाक कोई ची़ज नहीं हो सकती। हमें अपने विकल्पों का ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाना चाहिए और उलझन में गुमराह नहीं होना चाहिए। आखिरकार ़िंजदगी क्या है सिवाय सही विकल्प चुनने के और इसी को कहते हैं- यही है राइट च्वाइस, बेबी।”
– राजकुमार “दिनकर’
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