“”बहुत अच्छा लगा आपसे मिलकर।” अनिकेत ने औपचारिकता निभाते हुए कहा।
“”धन्यवाद।” और अनिकेत को दोबारा बोलने का समय न देकर वह स्वयं ही बोलती चली गयी, “”मुझे भी लिखने का शौक है, परंतु किसी मार्गदर्शक की आवश्यकता है, जो मुझे लेखन की बारीकियों के विषय में बता सके।”
“”तो इसमें भला मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूँ? लिखिए।” अनिकेत ने बेरुखी अपनाते हुए जवाब दिया था, जिससे उर्वशी के मन को धक्का-सा लगा और उसकी खूबसूरत आँखों में उदासी उतर आयी थी।
बड़ी लेखिका बनी फिरती है अपने आपमें, भला लेखक बनना कोई आसान काम है। मन-कर्म-वचन पर नियंत्रण के सहारे तो हर कोई लेखक नहीं बन सकता। अनिकेत मन ही मन सोच रहा था। उसके व्यवहार से आहत हो उर्वशी उठकर जाने के लिए तैयार हो गयी थी। “”अच्छा तो मि. अनिकेत अब मैं विदा लेना चाहूंगी।” कहते हुए, वह कमरे से बाहर चली गयी।
सर्दी बढ़ने लगी थी। अनिकेत ने अंदर से दरवाजे की कुंडी लगाकर पर्दे खींच दिये। टी.वी. ऑन कर जैसे ही वह बेड पर लेटने के लिए मुड़ा तो उसकी ऩजर म़ेज पर रखे लिफाफे पर पड़ गयी। वह झट से पत्र खोलकर पढ़ने लगा, जिसमें लिखा था-
माफ करना मि. अनिकेत, कई बार दर्द और ़गम को सीने में छुपाकर हंसना पड़ता है, जो आपके सामने आज खुशी का इ़जहार कर रहा है, जरूरी तो नहीं कि उसका जीवन खुशियों का तराना हो। डॉक्टर ने कहा था कि दर्द की लहरों से निजात पाने के लिए हॅंसना होगा। हॅंसती हूँ तो सब ़गम हवा में उड़ जाते हैं वरना क्या रखा है जीने में?
आप भी मेरी एक बात मानिये। हंसकर देखिए, क्योंकि हंसना बहुत बड़ी औषधि है हजार बीमारियों का एक इलाज।
– उर्वशी।
पत्र पढ़कर अनिकेत को आत्मग्लानि होने लगी थी। उसने मन ही मन सोचा, मुझे उर्वशी के साथ इस प्रकार का व्यवहार नहीं करना चाहिए था। लेकिन वह तो जा चुकी थी। उसका पता या फोन नंबर कुछ भी तो नहीं था अनिकेत के पास।
अचानक उसके मन में एक विचार कौंधा और उसने मोबाइल से संपादक के ऑफिस का फोन नंबर डायल कर उर्वशी का पता और फोन नंबर पता कर लिया था। सब मिल जाने के बाद स्वयं को रोक पाना बहुत ही मुश्किल हो गया था। पूरे पंद्रह दिन अनिकेत ने किस तरह निकाले हैं, अनिकेत ही जानता है।..
टन-टन अचानक दीवार घड़ी ने दो बजे जाने का घंटा बजाया तो अनिकेत वर्तमान में लौट आया और मन में सुबह उर्वशी से मिलने जाने का दृढ़-संकल्प करके सो गया।
अगले दिन ही वह उर्वशी के पते पर पहुँच गया कॉल-बेल का बटन दबाने पर एक बुजुर्ग महिला ने दरवाजा खोला, जिसकी आँखों में प्रश्र्न्नसूचक चिह्न थे।
“”जी मैं अनिकेत, क्या उर्वशी…?” “”हां, हां आइये। उर्वशी… देखो तुमसे कोई मिलने आया है।” मां की आवाज सुनते ही उर्वशी लगभग भागती हुई-सी दरवाजे पर आ गयी। अनिकेत को देखते ही उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा।
“”मॉं, यह प्रसिद्घ लेखक अनिकेत हैं, बहुत दूर से आये हैं।” उर्वशी ने अनिकेत का संक्षिप्त-सा परिचय मां से करवाते हुए कहा। कुछ औपचारिक चर्चा के पश्र्चात उर्वशी अनिकेत को पार्क में घुमाने के लिए ले गयी।
“”बुरा न मानो तो एक बात पूछ सकता हूं उर्वशी?” अनिकेत ने सकुचाते हुए बातों ही बातों में पूछ लिया।
“”पूछो।” उर्वशी बोली।
“”तुमने अब तक शादी क्यों नहीं की?”
इस अप्रत्याशित प्रश्र्न्न को सुनकर उर्वशी खामोश-सी हो शून्य में ताकने लगी।
“”कुछ तो बोलो उर्वशी।” अनिकेत ने अपना प्रश्र्न्न दोहराया।
“”क्या सहन कर सकेंगे मेरे जीवन का कड़वा सत्य?” उर्वशी ने पलट कर पूछा।
“”कड़वा सत्य से तुम्हारा क्या अभिप्राय है, निःसंकोच बताओ।” अनिकेत ़िजद पर अड़ गया।
“”मेरे अतीत का काला पन्ना यह है कि मैं सामूहिक बलात्कार की शिकार एक ऐसी लड़की हूं, जिसके पास स्वयं को खत्म करके सिवाय कोई विकल्प शेष नहीं था। मेरे पिता जी भी इसी दुःख में चल बसे। ” कहते हुए वह सुबकने लगी। उसके जीवन में बहारें आने से पहले ही पतझड़ आ गया था। एक कली को खिलने से पहले ही रौंद डाला था दरिंदों ने। उर्वशी के साथ हुए हादसे के विषय में कल्पना कर अनिकेत का मन रोष से भर उठा और उसकी मुट्ठियां भिंचने लगीं
“”चुप हो जाओ उर्वशी, भला इसमें तुम्हारा क्या दोष! राह चलते अगर अचानक ठोकर लग जाये तो क्या कदम मंजिल की ओर बढ़ना बंद कर देते हैं?”
“”मुझे गर्व है कि तुमने जीवन से हार नहीं मानी, दुःखों से घबराकर अपना साहस नहीं खोया।”
“”हां अनिकेत, मैं अपने जीवन की खाली तस्वीर को रंगों से भर लेना चाहती थी। मैंने कंप्यूटर साइंस के साथ-साथ स्कैच आर्टिस्ट का भी कोर्स किया और धीरे-धीरे यह काम मेरी पहचान बनता चला गया।” उर्वशी अपनी कहानी बयान करती चली गई।
अनिकेत जोश और जज्बे से भरपूर उस लड़की को अपलक निहारने लगा, जिसने मजबूत इरादों के साथ जीना सीख लिया था।
“”अब आगे क्या विचार है?” अनिकेत ने प्रश्र्न्न किया।
“”किस विषय में?” उर्वशी ने पूछा।
“”शादी के विषय में?” अनिकेत ने स्पष्ट किया।
“”भला कौन करेगा मुझ जैसी लड़की से शादी?” उर्वशी ने पूछा।
“”मैं करूंगा तुमसे शादी, उर्वशी” कहते हुए अनिकेत ने उर्वशी का ठंडा हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहा, “”विगत बातों को भूल जाओ और चांद की ओर देखो, जो आज कुछ ज्यादा ही चमक रहा है। लगता है मुस्कुराना चाहता है वह तुम्हारी तरह।” कहते हुए अनिकेत ने उर्वशी को प्यार से बांहों में ले लिया। आसमान में चमकता चांद मुस्करा उठा, वर्षों लम्बा पतझड़ समाप्त हो गया। (समाप्त)
– यशेंद्र भारद्वाज
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