“सत्या’ और “पिंजर’

पहले बिहार से दिल्ली फिर दिल्ली से मुंबई पहुंचे अभिनेता मनोज वाजपेयी चाहे जितने व्यस्त हों, पर वे अपने दोस्तों के लिये समय निकाल ही लेते हैं। पहली बार टीवी शो किया तो लोगों से और ज़ुड गये, लेकिन कम या ज्यादा शो के बाद वे छोटे पर्दे पर फिर नहीं दिखे।

आप तो कहते हैं कि आप जुगाड़ से काम नहीं करते, पर आपकी तो फिल्म का नाम ही “जुगाड़’ है अब?

अरे नहीं। यह तो बस नाम “जुगाड़’ है, जैसे-मेरी अगली फिल्म का नाम “एसिड पैक्टी’ है। अब इसका मतलब यह तो नहीं कि मैं एसिड फैक्टी में चला गया हूँ। मैं आज भी काम के लिए जुगाड़ नहीं करता।

आपकी पिछली फिल्मों का हश्र अच्छा नहीं रहा, जबकि “स्वामी’ को तो समीक्षकों की प्रशंसा भी मिली?

ऐसा होता है। जबकि “स्वामी’ बहुत मीनिंगफुल फिल्म थी। इसी तरह 1971 भी बरसों बाद सागर बंधुओं की ऐसी फिल्म थी, जिससे सागर्स ने बड़े परदे पर वापसी की थी।

आपने भी तो छोटे परदे पर वापसी की थी, फिर आगे क्यों नहीं बढ़े?

मैं टीवी पर अभिनय करने नहीं आया था। मैंने टीवी पर कम या ज्यादा होस्ट किया था, बस! लेकिन, वह जल्दी बंद हो गया। वह रोमांचक शो था।

आपकी आने वाली फिल्मों में आप किस प्रकार की भूमिकाएं कर रहे हैं?

“जुगाड़’ में मैं दिल्ली के रिहायशी इलाकों में सीलिंगबंदी के विरोध में लड़ाई लड़ रहा हूँ और “हनी’ में पहली बार कॉमेडी कर रहा हूँ, जबकि “एसिड’ अंडरवर्ल्ड पर आधारित कहानी है।

“स्वामी’ में आप अकेले हीरो थे और “जुगाड़’ में भी हैं, लेकिन “हनी है’ और “एसिड’ में आप अकेले नहीं है। इसमें गोविंदा, सुनील शेट्टी और दूसरे लोग भी हैं?

अब सोलो हीरो के बल पर फिल्म चलाना चुनौती भरा काम है। पर जमेगा वही, जो बेहतर करेगा। मैं मल्टीस्टारर फिल्मों से नहीं घबराता। मैंने “अक्स’ जैसी फिल्म में बिग बी का सामना किया था और “स्वामी’ में जूही का।

आपकी छवि ऐसी नहीं है?

जब मैंने टीवी पर कम या ज्यादा किया, तो भी लोगों ने ऐसा ही कहा था। छवियां लोग बनाते हैं। मैं तो माध्यम भर बदलता हूँ। मैं काम करते समय टीवी या फिल्म के बारे में नहीं सोचता। जो अच्छा लगता है, मैं बस कर लेता हूँ।

पिछले कुछ समय से आपने काफी कम फिल्में कीं या वे, जिनमें आप फिट नहीं होते?

नहीं, वे फिल्में मैंने केवल ब्रेक के लिए की थीं, ताकि कुछ अलग होता रहे।

फिर भी “सत्या’ या “पिंजर’ जैसी फिल्में करने वाले अभिनेता को “बेवफा’ या “फरेब’ जैसी फिल्में करने की क्या जरूरत है?

मैं जरूरत के हिसाब से नहीं, भूमिका के हिसाब से काम करता हूँ।

लेकिन, “सत्या’, “शूल’, “पिंजर’ और “अक्स’ की सफलता दोहरायी नहीं जा सकी?

आपको ऐसा नहीं लगता कि जिस आदमी को फिल्मों में आए हुए दस साल भी न हुए हों, उसने एक साथ आधा दर्जन से ज्यादा हिट फिल्में पहले ही दे दी हैं? फिर ऐसी फिल्में दुबारा नहीं बनतीं।

इसे आप फिल्मों की सफलता मानते हैं एक अभिनेता की नहीं। क्या आप चूक रहे हैं?

मुझे नहीं लगता। मैं अभी भी उतनी ही मेहनत से काम कर रहा हूँ। मैंने जो काम किया, मन लगाकर किया।

 

मनोज बाजपेयी

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