क्या आप इसकी कल्पना भी कर सकते हैं कि हमारे देश में खड़ा होकर कोई “भारत की मौत आई, लश्कर आई लश्कर आई’, “जियो-जियो पाकिस्तान’ का नारा लगाए और हमारी पुलिस, अर्धसैनिक बल जड़वत् खड़ी सुनती रहे? नहीं न। कश्मीर में यही हो रहा है। बीते माह 18 अगस्त को श्रीनगर में इस्लाम के हरे झंडे के साथ पाकिस्तान का झंडा लहराने वालों का हुजूम सरेआम भारत विरोधी नारे लगाता घूमता रहा और प्रशासन मूकदर्शक की भूमिका में रहा। तब से लगातार यही ऩजारा वहॉं दिख रहा है। जबसे जम्मू में आर्थिक नाकेबंदी का झूठा हौवा खड़ा करके “मुजफ्फराबाद चलो’ का आठान हुआ है, अलगाववादियों को पर लग गए हैं। कुछ समय पूर्व हुर्रियत कॉनेंस के जो नेता बेकारी की हालत में थे, अचानक उनके चेहरे पर चमचमाहट आ गई है। उनको अलगाववाद की आग फैलाने का काम फिर मिल गया है। पूरे कश्मीर में अलगाववाद की लहर पैदा करने की कोशिश हो रही है। लोगों के अंदर यह बात बिठाने की भी कोशिश हो रही है कि भारत से अलग होने का यह सबसे माकूल समय है। इसी भावना के तहत संयुक्त राष्टसंघ पर्यवेक्षक कार्यालय के सामने अब तक की सबसे बड़ी भारत विरोधी रैली करके उसे ज्ञापन देकर आत्मनिर्णय के सिद्घांत को लागू करने की मांग की गई।
यह सब तब हुआ जब केन्द्र सरकार लगातार सर्वदलीय बैठकें कर रही थी। इसे विडम्बना ही कहेंगे कि एक ओर कश्मीर में भारत विरोधी हरकतों को चरम पर पहुँचाने का काम हो रहा है और दूसरी तरफ प्रधानमंत्री कश्मीर में शांति बहाली की अपील कर रहे हैं। इसका अर्थ क्या है? क्या प्रधानमंत्री मानते हैं कि “हमारी मंडी, हमारी मंडी, रावलपिंडी, रावलपिंडी’, “हमें क्या चाहिए आजादी’, “छीन के लेंगे आजादी’, “हम हिंद से कश्मीर को आजाद कराके रहेंगे, हम कौम के नौजवान हैं जेहाद करेंगे’… आदि नारे लगाने वाले उनकी अपील से शांति स्थापना के काम में लग जाएंगे? यह स्थिति एक दिन में पैदा नहीं हुई है। वैसे तो कश्मीर को असामान्य व विशिष्ट राज्य मानने वालों की संख्या भी कम नहीं है और वहॉं अलगाववाद की पुरानी पृष्ठभूमि है किंतु तत्काल श्रीअमरनाथ श्राइन बोर्ड जमीन आवंटन विवाद के साथ धीरे-धीरे अलगाववादियों एवं अतिवादियों ने स्थिति को यहॉं तक पहुँचा दिया है। 17 अगस्त को भी पैम्पोर के विरोध प्रदर्शन में ज्यादातर काले झंडे दिख रहे थे। एक दिन बाद ही उन काले झंडों का स्थान हरे एवं पाकिस्तानी झंडों ने ले लिया। ऐसा लगता है मानो प्रशासन ने अलगाववादियों को सरेआम भारत विरोधी गतिविधियां चलाने की छूट दे दी है। ऐसा यूं ही नहीं हो सकता। निश्र्चय ही सुरक्षा बलों को किसी प्रकार के बल प्रयोग न करने का निर्देश दिया गया होगा, अन्यथा वे अपनी आँखों के सामने इस प्रकार की हरकतें बरदाश्त नहीं कर सकते थे। कश्मीर के लोगों के विरोध प्रदर्शन के अधिकारों को नकारा नहीं जा सकता, किंतु विरोध प्रदर्शन की कुछ सीमाएं हैं। इसमें देश विरोधी हरकतों की छूट शामिल नहीं है। केवल भारत के जनमानस में ही नहीं, संविधान के अनुसार भी जम्मू-कश्मीर भारतीय भू-भाग का अभिन्न अंग है और वहॉं से अगर कोई भारत विरोधी तथा पाकिस्तान या आ़जादी के समर्थन में नारे लगाता है, भाषण देता है या भारत के खिलाफ विद्रोह करने के लिए लोगों को उकसाता है तो यह अपराध है और अलगाववादी नेता एवं उनके समर्थक यही कर रहे हैं। इन सबको सहन करने का अर्थ है ऐसी गतिविधियों को और बढ़ावा देना। एक बार लगाम हाथ से छूटने के बाद घोड़े को काबू में करना आसान नहीं रहता। सच कहा जाए तो सरकार के गलत रवैये के कारण कश्मीर ऐसी अवस्था में पहुँच रहा है जहॉं से उसे कुछ सप्ताह पूर्व की अवस्था में वापस लाना कठिन हो जाएगा। जो कुछ पिछले एक दशक में प्राप्त किया गया था उसे सरकार ने अपनी नाकामियों से गंवा दिया है। सरकार कह रही है कि ऐसे विरोधों द्वारा पाकिस्तान की योजना को अंजाम दिया जा रहा है। ऐसा है तो आप अंजाम देने वालों को कानून की जद में लाने का साहस क्यों नहीं करते? पाकिस्तान अपनी योजना को कामयाब करने में सफल हो रहा है तो यह किसकी विफलता है? यह बात सही है कि कश्मीर के हालात पर पाकिस्तान की ओर से हाल में जैसी टिप्पणियां की गई हैं उनका असर यहॉं पड़ा है। पाक विदेश मंत्रालय ने संयुक्त राष्टसंघ से हस्तक्षेप करने का औपचारिक अनुरोध करने का बयान दिया और इस बयान के तुरंत बाद अलगाववादियों ने संयुक्त राष्टसंघ पर्यवेक्षक कार्यालय के सामने प्रदर्शन एवं ज्ञापन देने का निश्चय किया। पाकिस्तान ने इस्लामी सम्मेलन संगठन या ओआईसी एवं मानवाधिकार संगठनों से वहॉं ध्यान देने की अपील की और घाटी में भी यह अपील गूंज रही है। अलगाववादियों की मंशा जानते समझते हुए भी प्रशासन ने सख्ती क्यों नहीं बरती? क्यों नहीं श्रीनगर की ओर बढ़ते, भारत के खिलाफ नारे लगाते हुजूम को रोका गया? अगर प्रशासन ने ठीक से प्रबंध किया होता तो इतना बड़ा भारत विरोधी प्रदर्शन संभव नहीं हो सकता था। सुरक्षा बलों की ज्यादती का हम भी समर्थन नहीं करते, लेकिन अगर कोई स्वयं को देश का वासी ही मानने को तैयार नहीं, यहॉं के संविधान एवं कानून को ठेंगे पर रखने की हरकत करता है तो उसके खिलाफ सख्त व्यवहार ही एकमात्र विकल्प बचता है। देश की एकता एवं अखंडता सर्वोपरि है। एकता और अखंडता पर खतरा उत्पन्न करने वाले वास्तव में देश के खिलाफ विद्रोह कर रहे हैं और उनके साथ वैसा ही व्यवहार करना चाहिए जैसा देशद्रोहियों के साथ होता है। आखिर “भारत का यार गद्दार, गद्दार’ जैसे नारे को हम कैसे सहन कर सकते हैं? इन सबको सहन करने का अर्थ है भारत के साथ लगाव रखने वालों को कमजोर करना। ऐसी ही स्थिति 20 वर्ष पहले कायम हुई थी जिसमें कई लाख कश्मीरी पंडितों को घाटी से पलायन करना पड़ा था और घाटी पर आतंकवादियों का वर्चस्व स्थापित हो गया था। प्रशासन मूकदर्शक रहकर अलगाववादियों का हौसला बढ़ा रहा है और भारत समर्थक कमजोर हो रहे हैं। यह आत्मघाती रवैया है। वास्तव में कश्मीर ऐसी स्थिति की ओर बढ़ रहा है जहॉं भारत के समर्थन में बात करने से लोग डरने लगेंगे।
यह तो हुर्रियत नेताओं का आपसी विरोध है जिस कारण वे एक साथ ज्यादा देर नहीं रह सकते। सैयद अली शाह गिलानी खुलेआम कह रहे थे कि हम पाकिस्तानी हैं और पाकिस्तान हम ही हैं, क्योंकि हम इस्लाम के बंधन से बंधे हैं। इस पर उनके समर्थकों ने नारा लगाया, “हम पाकिस्तानी हैं, पाकिस्तान हमारा है।’ उन्होंने कहा कि कश्मीर का पाकिस्तान में विलय ही एकमात्र रास्ता है। इतना बड़ा समूह इस प्रकार का भाषण सुनने के बाद वापस जाकर क्या करेगा? वस्तुतः चारों ओर भारत विरोधी माहौल बनाने की कोशिश हो रही है। हुर्रियत के नेताओं के बीच पाकिस्तान के साथ विलय एवं आजादी को लेकर आपस में मतभेद हैं, इसी कारण उनके बीच पूर्ण एकता नहीं हो पाती है। आजादी समर्थकों ने लगातार गिलानी के पाकिस्तान-प्रेम का विरोध किया है। नेतृत्व को लेकर भी इनके बीच मतभेद हैं। हुर्रियत की रैली में गिलानी ने उपस्थित जन समुदाय से जब यह पूछा कि क्या उनके नेतृत्व पर उन्हें विश्र्वास है? इसके विरोध में मीरवायज उमर फारुख, शब्बीर शाह, यासिन मलिक आदि मंच से उतरकर चले गए। वास्तव में प्रशासन की इसमें कोई भूमिका नहीं थी। प्रशासन ने तो उन्हें जैसा चाहें वैसा करने की अघोषित छूट दे रखी थी। इस शर्मनाक बेचारगी का अंत होना चाहिए। भारत विरोध की आग जितनी विकराल हो रही है वह भयभीत करने वाली है। सरकार को यह विचार करना चाहिए कि यह किसी की भावना का या मानवाधिकार का ध्यान रखने का विषय नहीं है। इस समय देश की एकता, अखंडता कायम रखने के साथ संप्रभुता साबित करने का प्रश्र्न्न सामने है। ये अलगाववादी भारत की जमीन से पाकिस्तान, आतंकवाद एवं आजादी के समर्थन में नारे लगाकर देश की एकता, अखंडता के साथ राज्य की संप्रभुता को ही नकारने पर तुले हैं और इसकी रक्षा के लिए कोई भी कीमत कम है।
– अवधेश कुमार
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